पूर्वांचल: क्या जांच कम होने से घट रहे कोरोना के नए मामले?

उत्तर प्रदेश में कोरोना के नए मामले बढ़ते जा रहे हैं लेकिन पूर्वांचल के कुछ जिलों में कोरोना के नए मामलों में कमी आई है, लेकिन क्या ऐसा जांच कम होने की वजह से हुआ है?
COVID19

उत्तर प्रदेश में कोरोना का कहर जारी है। मंगलवार चार मई को नए मामले कुछ कम हुए थे लेकिन अगले ही दिन नए मामलों में हुई बढ़ोतरी ने प्रदेश सरकार की फिर चिंता बढ़ा दी है। प्रदेश सरकार ने तीन मई को रिकॉर्ड टेस्ट कराने का दावा किया, संक्रमण के नए मामले भी बढ़ रहे हैं, लेकिन प्रदेश के पूर्वी जिलों यानी पूर्वांचल की स्थिति क्या है? क्या इस क्षेत्र के जिलों में पर्याप्त जांचें हो रही हैं? पूर्वांचल के कुछ जिलों में कोविड 19 के नए मामलों में कमी कैसे आई?

मऊ जिले के ब्लॉक घोषी के गांव माहुर भोज में रहने वाले शिव शंकर यादव वैसे तो प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहते हैं, लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए वे गांव लौट आये। उन्हें उम्मीद थी कि गांव में हमेशा की तरह इस बार भी सब ठीक रहेगा, लेकिन उन्हें अब पछतावा हो रहा है।

वे कहते हैं, “27 अप्रैल को एक 70 वर्षीय बुजुर्ग रिश्तेदार की तबियत ख़राब हो गई। टेस्ट कराया था लेकिन रिपोर्ट आई नहीं थी। ऑक्सीजन लेवल 75 तक आ गया था। शाम 8 बजे से लेकर सुबह 9 बजे तक उन्हें अस्पताल दर अस्पताल लेकर भटकते रहे। दिक्क़त बस ऑक्सीजन की थी। जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल ने उन्हें एडमिट नहीं लिया।”

वे आगे बताते हैं, “सुबह किसी तरह एक निजी अस्पताल एडमिट करने के लिए तैयार हुआ तो उसने कहा पहले 40 हजार रुपए जमा करिये। हम मरीज को छोड़कर पहले पैसे का इंतजाम करने लगे। अभी तो वे ठीक हैं लेकिन गांवों में स्थिति बहुत ख़राब है। आसपास गांवों में रोज कोई न कोई मर रहा है। अस्पतालों में जगह नहीं है। बाजार में कहीं भी न तो ऑक्सीजन सिलेंडर मिल रहा और न ही रिफलिंग हो रही है। बीमार होने पर लोग मरीज को यहां से लगभग 120 किमी दूर बीएचयू (वाराणसी) लेकर जा रहे हैं।”

उत्तर प्रदेश में बुधवार 5 मई को कोरोना के 31,165 नए कोरोना केस सामने आए और इस दौरान 357 लोगों की मौत भी हो गयी। इससे एक दिन पहले मंगलवार 4 मई को 25,858 नए मामले सामने आए थे, जबकि 3 मई को प्रदेश में 29,19 2 मामले सामने आये थे।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 10 से ज्यादा जिले हैं। इन जिलों की ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण भारत कोविड से कैसे लड़ रहा हैं, गांव कनेक्शन लगातार इस पर खबरें कर रहा है। इसी कड़ी में गांव कनेक्शन ने पूर्वांचल के कुछ जिलों के लोगों से बात की और वहां कोविड जांच की स्थिति भी जानने की कोशिश की।

पूर्वांचल के कुछ जिलों में कोरोना संक्रमण के नए मामले घटे हैं, लेकिन यह हुआ कैसे? 

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जिला प्रशासन मऊ की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार जिले की 22 लाख से ज्यादा है। जिले में 4 मई को कोरोना संक्रमण के कुल 45 नए मामले सामने आये जबकि इससे एक दिन पहले 3 मई को 112 और 2 मई को 256 मामले सामने आये थे। मतलब अगर पिछले तीन दिन की रिपोर्ट देखें तो मामले प्रतिदिन आधे से कम होते गए हैं।

लेकिन इस दौरान जिले में जांचों की स्थिति क्या रही? 1, 3 और 4 मई को जिले में कितनी जांचें हुईं इसकी रिपोर्ट नहीं मिल पाई लेकिन 2 मई को जिले में 687 सैम्पल लिए गए जिसमें 360 आरटीपीसीआर और 476 एंटीजन टेस्ट हुए। 687 जांचों में 256 पॉजिटिव मामले मिले मतलब एक जांच की अपेक्षा एक तिहाई पॉजिटिव मामले मिले।

पिछले महीने अप्रैल 30 को कुल 667 सैम्पल लिए गए जिसमें से 170 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। 29 अप्रैल 529 सैंपल लिए गए जिसमें से 81 पॉजिटिव मिले थे। इससे एक दिन पहले 28 मई को 901 जांचें हुई थीं तब कुल 213 पॉजिटिव मामले सामने आये थे। 1, 3 और 4 को जिले में कितनी जांचें हुईं, यह जानने के लिए गांव कनेक्शन ने सीएमओ को कई बार फोन किया, मैसेज किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

जिले में 28 मई को तो 901 सैम्पल लिए गए लेकिन उसके बाद कभी भी इतनी संख्या में नमूने नहीं लिए गये।

वाराणसी से लगभग 50 किमी दूर भदोही में एक मई को कोविड जांच के लिए 586 सैम्पल लिए गए जिसके बाद 106 पॉजिटिव मामले मिले। इसके अगले दिन 2 मई को कुल 279 सैम्पल ही टेस्टिंग के लिए गए जिसमें से 29 मामले पॉजिटिव मिले, जबकि 3 मई को जांच थोड़ी रफ़्तार थोड़ी बढ़ी और कुल 660 सैम्पल लिए गए और जिसमें 97 पॉजिटिव मामलों की पुष्टि हुई। 27 अप्रैल को जिलेभर से 712 नमूने लिए थे।

मतलब जांचों की संख्या बढ़ते ही नए मामले भी बढ़ गए, लेकिन क्या ये जांचें भी पर्याप्त हैं? 

भदोही के सामाजिक कार्यकर्ता हरीश सिंह जांचों को लेकर सवाल खड़े करते हैं। वे कहते हैं, “आप महीनेभर का रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिये, जब-जब जांच ज्यादा हुयी है, नए मामले बढ़े हैं, लेकिन प्रशासन पर्याप्त संख्या में जांच ही नहीं कर रहा। गांवों में चले जाइये, हर घर में लोग बीमार हैं। लेकिन केंद्र पर जाने पर पता चलता है कि किट ही खत्म हो गई है। संक्रमित मामलों की संख्या बहुत है, बशर्ते सरकार जांच तो बढ़ाये।”

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“2011 में हुई मतगणना के अनुसार जिले की आबादी 20 लाख से ज्यादा है। ऐसे में जब हर घर में कोई न कोई बीमार है 500-600 सैम्पल लिए जा रहे हैं तो संक्रमण के मामलों की संख्या तो घट ही जाएगी, जबकि सच्चाई कुछ और है ही। जिला प्रशासन को जांचों की संख्या जल्द से जल्द बढ़ानी चाहिए।” हरीश आगे कहते हैं।

इस बारे में हमने भदोही मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ लक्ष्मी सिंह से भी बात की। उन्होंने कहा, “हम जिले जांचों की संख्या लगातार बढ़ा रहे हैं। दो मई पंचायत चुनाव की मतगणना थी इसलिए उस दिन जांच कम हो पाई। और अब हम तो गांव-गांव जाकर लक्षण वाले मरीजों का टेस्ट करेंगे। इसके बाद जांच संख्या में निश्चित बढ़ोतरी होगी।”

प्रदेश सरकार ने गांव-गांव में कोविड टेस्टिंग का अभियान चलाने का फैसला लिया है। पांच मई से शुरू होने वाले इस अभियान के तहत गांवों में दस लाख से अधिक एंटीजन टेस्ट करने का लक्ष्य है।

भदोही से सटे जिला जौनपुर में भी कोविड के मामले बहुत आ रहे हैं लेकिन उस हिसाब जाँच नहीं हो रही। जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार जिले में 1 मई को 2533 सैम्पल लिए गए जिसमें से 478 मामले पॉजिटिव मिले। इसके बाद 2 मई को 1222, 3 मई को 2079 और 4 मई को 2420 नमूने जांच के लिए गए। इस दौरान क्रमशः 510, 268 और 199 पॉजिटिव मामले मिले। एक मई के जांचों की संख्या कम हुई है।

4 मई, जौनपुर की रिपोर्ट

जौनपुर के मड़ियाहूं के रहने वाले हिमांशु विश्वकर्मा मड़ियाहूं के सदर अस्पताल कोविड टेस्ट के लिए पहले 28 अप्रैल को जाते हैं, फिर 30 अप्रैल को जाते हैं लेकिन दोनों ही बार उन्हें निराश होकर लौटना पड़ता है। वे बताते हैं, “कुछ दिनों से बीमार था, इसलिए टेस्ट कराना चाह रहा था। कोई भी टेस्ट हो जाता, एंटीजन या आरटीपीसीआर, लेकिन दोनों बार मेरा नंबर आने से पहले ही किट ख़त्म हो गई। मैं फिर नहीं गया। दवा खा रहा हूँ, पहले से ठीक हूँ।”

इस विषय पर गांव कनेक्शन ने जौनपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ राकेश कुमार से बात की। उन्होंने गांव कनेक्शन को फ़ोन पर बताया, “इधर चुनाव और मतगणना की वजह से जांचों में कुछ कमी आई थी, फिर भी हम तय लक्ष्य से ज्यादा जांच कर रहे हैं। आज (5 मई से) हम अब गांव-गांव जाकर जांच कर रहे हैं। इसके लिए जिले में 2 टीमें बनाई गयी हैं जो एक ब्लॉक के पांच-पांच गांवों में जाएगी। इसके बाद जांचों की संख्या अब और बढ़ेगी।”

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उत्तर प्रदेश का मिर्ज़ापुर जिला जिसकी कुल आबादी लगभग 25 लाख है, यहां 2 मई को कोविड जाँच के लिए मात्र 1123 सैंपल लिए गए जिसमें आरटीपीसीआर टेस्ट की संख्या महज 363 रही, हालाँकि 3 मई को जांच की रफ़्तार थोड़ी बढ़ी और कुल 1610 सैम्पल लिए गए।

मिर्ज़ापुर में 3 मई को 1610 कोविड टेस्ट हुए

वहीं जिले में 30 अप्रैल को रिकॉर्ड 5658 नमूने लिए गए थे। इससे एक दिन पहले 29 अप्रैल को 2198 सैम्पल लिए गए थे। फिर अचानक से जांचों की संख्या में कमी क्यों आई? 

30 अप्रैल को मिर्ज़ापुर में 5000 से ज्यादा सैम्पल लिए गए थे। 

इस बारे मिर्ज़ापुर के सीएमओ डॉ विधु गुप्ता का कहना है कि हमारे यहां कई स्टाफ कोविड पॉजिटिव हैं जिस कारण टेस्ट कम हो पा रहा है।

बलिया में 6500 से जांच सीधे 2300 पर आ गई

वाराणसी से लगभग 160 किमी दूर जिला बलिया की रिपोर्ट देखें तो इस महीने के शुरुआती चार दिनों में जांचों की संख्या आधी हो गयी। जिला प्रशासन के हेल्थ बुलेटिन के अनुसार जिले 1 मई को 6572 सैंपल लिए गए और 326 पॉजिटिव मरीज मिले। इसके अगले दिन 2 मई को जाँचों की संख्या 2008 पर आ गई और दिन कुल 283 नए मामले मिले। जिले में 3 और 4 मई को 2189 और 2315 सैम्पल लिए गए और इस दौरान 43 और 489 पॉजिटिव मामले मिले।

बलिया में 1 मई को 6 से ज्यादा सैम्पल लिए गए। 

जिले में जांचों की संख्या आधी कम क्यों हो गयी? यह जानने के लिए गांव कनेक्शन ने बलिया के सीएमओ डॉ राजेंद्र प्रसाद से बात करने की कोशिश की, लेकिन वे मीटिंग में व्यस्त थे जिस कारण बात उन्होंने बात नहीं की। इसके बाद कई बार फोन किया लेकिन फोन नहीं उठा।

स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े और इस क्षेत्र में लम्बे समय से काम कर रहे वाराणसी के डॉ ज्ञान मिश्रा कहते हैं कि प्रदेश सरकार का गांवों में जांच बढ़ाने का फैसला सराहनीय है। अब निश्चित रूप से नए मामलों की संख्या भी तेजी से बढ़ेगी।

1 मई को जहाँ से 6 हजार से जांचें हुई थीं तो वहीं 4 मई को महज 2315 जांचें ही हुईं।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “ग्रामीण उत्तर प्रदेश में अब कोरोना के नए बहुत तेजी से बढ़ेंगे, क्योंकि अभी तक तो पर्याप्त जांचें ही नहीं हो रही थीं। लोग सेंटर पर जाते थे लेकिन बिना जांच वापस लौट आते थे। भी भी बहुत कम संख्या में जाँच हो रही है। गांवों को बचाना है तो जांचों की संख्या भी बढ़ानी होगी।”

हमने जिन-जिन जिलों में बात की या रोज होनी वाली जांचों के आंकड़ों को जब देखा तो पाया कि ज्यादातर जिलों में जांच बढ़ने की बजाय कम हुई है। 

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