खोरी गांव में लोग अपने टूटे घरों से बची हुई ईंटें बेचकर कर रहे हैं गुजारा

Pratyaksh Srivastava | Aug 10, 2021, 11:00 IST
फरीदाबाद के खोरी गांव में अतिक्रमण हटाने का जो अभियान चल रहा है, उससे लगभग 50,000 लोगों का जीवन अनिश्चितता और निराशा से भर गया है। कई लोग तो अभी ढहाये गये घरों में रह रहे हैं। बिना पानी, बिजली के लोग तिरपाल के नीचे रहकर संघर्षपूर्ण जीवन जी रहे हैं।
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कमजोरी, भूख, बुखार और खाने के बारे में अनिश्चितता से 38 वर्षीय सुनीता देवी दिन भर परेशान रहती हैं। खोरी गाँव में मलबे के ढेर के बीच बैठ, वह अपना पूरा दिन अपने टूटे घर की ईंटों को निकालने में बिताती हैं, जिसे बाद में वह एक रुपए प्रति ईंट की कीमत पर बेच देती हैं। इन दिनों यही उनकी आय का एकमात्र जरिया है।

विधवा, सुनीता और उनकी 19 वर्षीय बेटी, चूर-चूर हो चुके अपने घर के मलबे पर बने तिरपाल के अस्थायी घर के नीचे किसी तरह रात गुजारती हैं। "भैया, या तो मैं पागल हो जाऊंगी थोड़े दिन में ये जहर खा के मार जाऊंगी, बस यही दो चीजें समझ आ रही हैं मुझे, "सुनीता ने पांच अगस्त को गांव कनेक्शन से बात करते हुए कहा।

सुनीता और उनकी बेटी की तरह, हरियाणा के फरीदाबाद के खोरी गांव के 50,000 से अधिक लोग हैं, जिन्होंने अपना घर और सामान खो दिया है और अब 'अमानवीय' परिस्थितियों में रह रहे हैं।

7 जून सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि खोरी गाँव वन भूमि पर 'अवैध रूप से' बसा है। फरीदाबाद नगर निगम ने अवैध रूप से हुए निर्माणों को ढहा रहा है। अपनी हालिया सुनवाई में अदालत ने यह भी कहा कि पात्र लोगों के पुनर्वास की संभावना है, लेकिन अतिक्रमणकर्ता या भूमि हथियाने वालों को यह सुविधा नहीं मिलेगी।

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भारतीय वन अधिनियम, 1927, वन क्षेत्र के भीतर किसी भी निर्माण को रोकता है और खोरी गांव अरावली जंगलों के वन क्षेत्र में स्थित है जो हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गांव और मेवात जिलों में 448 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

हालांकि, खोरी के निवासियों का दावा है कि उन्होंने स्थानीय भू-माफिया से खरीदे गए घरों के लिए अपने जीवनभर की कमाई खर्च कर दी है।

भू-माफिया का झांसा

सुनीता देवी ने गांव कनेक्शन को बताया कि वह पिछले 10 साल से खोरी में रह रही हैं और उन्होंने एक स्थानीय डीलर से घर खरीदा था।

खोरी गांव में अपने निवास के सबूत के बारे में पूछे जाने पर, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास के लिए अनिवार्य आवश्यकता बताया है, सुनीता ने बताया कि यह मलबे के भीतर पड़ा है, क्योंकि दो सप्ताह पहले उनके घर को गिरा दिया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि घरों को गिराने से पहले निवासियों को पहले से कोई चेतावनी भी नहीं दी गई।

"मेरा सारा निजी सामान, मेरी अलमारी, मेरे पास जो नकदी थी, मेरे कपड़े, पहचान प्रमाण पत्र मलबे के अंदर दब गए हैं।" सुनीता ने अफसोस जताया।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इलाके में बिजली और पानी की आपूर्ति में भी रोक दी गई है।

सुनीता के दावों में कितनी सच्चाई है, सह जानने के लिए गांव कनेक्शन ने फरीदाबाद के नगर निगम के कार्यालय में बार-बार फोन किया लेकिन किसी ने फोन नहीं उठा। कोई जवाब मिलते ही खबर को अपडेट किया जायेगा।

सुनीता देवी जहां अपने ध्वस्त घर की ईंटें इकट्ठा करने बैठी थी, उससे ज्यादा दूर नहीं 45 वर्षीय शकुंतला देवी भी थोड़े पैसे कमाने के लिए इसी तरह के काम में लगी थीं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि वह पिछले आठ साल से खोरी गांव में रह रही हैं। उनके घर को भी नगर पालिका के तोड़फोड़ दस्ते ने तोड़ दिया है।

"पहले मैं नोएडा (उत्तर प्रदेश) में रहती थी। मैं आठ साल पहले अपने बेटे और अपने पति के साथ यहां आई थी। मेरा बेटा अब अपनी शादी के बाद अलग रहता है और मैं यहां अपने पति के साथ रहती हूं जो घर उजड़ने से पहले सब्जियां बेचते थे, " शकुंतला ने गांव कनेक्शन को बताया।

"मैंने नोएडा में अपना पिछला घर बेच दिया और एक एजेंट को साढ़े तीन लाख (350,000 रुपए) रुपए देकर यहां एक नया प्लॉट खरीदा। हमें खोरी में अपने घर बनाने के लिए दो लाख पचहत्तर हजार (275,000 रुपए) खर्च करने पड़े, "45 वर्षीय शकुंतला कहती हैं।

"हमने अपना घर बनाने में जीवनभर की बचत लगा दिया। अब सरकार ने सब कुछ खत्म कर दिया है। मैं पूरी तरह से असहाय महसूस करती हूं, "उन्होंने आगे कहा।

रहने की स्थितियां खराब हैं

खोरी में विस्थापित ग्रामीणों का नेतृत्व कर रही खोरी बचाओ आंदोलन की नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मीनू वर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया कि यहां रहने वाले लोगों की स्थिति बेहद दयनीय है, जबकि ये इंसानों के रहने लायक नहीं है।

वर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया, "इन लोगों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है और दो टाइम के खाने की व्यवस्था भी बड़ी मुश्किल से हो पा रही है। यहां रह रहे लोग सामाजिक कार्यकर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों पर निर्भर हैं।"

खोरी में रहने वाले लोगों का दावा है कि वे खाने की कमी का सामना कर रहे हैं और अक्सर यह नहीं पता होता कि वे अगली बार खाना कैसे खाएंगे, या उन्हें कहां से मिलेगा। सुनीता ने गांव कनेक्शन को बताया कि उनके खाने में नमक, पानी में उबला हुआ चावल होता है।

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सामाजिक कार्यकर्ता इन ग्रामीणों को जमीन बेचने वाले भूमाफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

सुनीता कहती हैं, "कमजोरी लगती है, बुखार आता है। मैं एक डॉक्टर के यहां गई थी दिखाने के लिए लेकिन वे मिले नहीं।"

वर्मा के अनुसार खोरी में COVID-19 की जांच तक नहीं हुई जबकि कई लोगों को बुखार हो रहा था और COVID जैसे लक्षण दिखाई दे रहे थे। "कई महिलाएं गर्भावस्था के अपने आठवें या नौवें महीने में हैं। हमारे लिए तो खाना ही दुर्लभ हो गया है, चिकित्सा व्यवस्था ही की तो बात ही ना करिये।" वे आगे कहती हैं। मॉनसून का मौसम और बारिश ने बेघर हुए लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

सुनीता ने शिकायत की कि खोरी गांव में दो महीने से अधिक समय से पानी और बिजली की आपूर्ति काट दी गई है और ग्रामीणों को जीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

शकुंतला ने बताया कि नहाने और धोने के लिए भी ग्रामीणों को अरावली के एक छोटे से तालाब के पानी का उपयोग करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिसमें बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है।

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खोरी के निवासियों का दावा है कि वे खाने की कमी का सामना कर रहे हैं और अक्सर यह नहीं जानते कि अगला खाना कहां से आएगा।

वर्मा ने कहा, "ये लोग गंदे पानी को कपड़े से छानकर लाते हैं और फिर हर दस दिनों में एक बार नहाने की व्यवस्था करते हैं।"

"लगभग 20 फीसदी विस्थापित ग्रामीण तुगलकाबाद, लालकुआं और संगम विहार जैसे आसपास के इलाकों में चले गये हैं।" वर्मा ने कहा।

"गांव के पास एक राधा स्वामी सत्संग (एक धार्मिक मण्डली) में एक अस्थायी शिविर बनाया गया है जहाँ कुछ ग्रामीण मवेशियों की तरह रह रहे हैं। लेकिन सत्संग भवन इन लोगों को अपने सामान के साथ परिसर में रहने की इजाजत देने की स्थिति में नहीं है।" उन्होंने आगे कहा।

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से विस्थापित लोगों की पुनर्वास नीति पर अपने फैसले में तेजी लाने को कहा है। सामाजिक कार्यकर्ता इन ग्रामीणों को जमीन बेचने वाले भूमाफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनकी शिकायत है कि किसी भी जमीन डीलर को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

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