गांवों में लोग न कोविड टेस्ट करा रहे, न इलाज मिल रहा, बस मौत हो जा रही

कोविड महामारी को अभी भी बड़े शहरों से ही जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि गांवों में इसका असर कितना और कैसा है, इसकी चर्चा तक नहीं हो रही है। गांव कनेक्शन ने जब देश के अलग-अलग राज्यों के ग्रामीणों से बात की, तो जो तस्वीर सामने आयी, वह चिंताजनक है।
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“कहां नहीं ले गए उसे, छोटा भाई था। मेरे सामने ही उसकी सांसे रुक गईं। मैं उसके सिरहाने बैठा था। मरते हुए देखता रहा, लेकिन कुछ कर नहीं पाया।” यह कहते हुए राम बहादुर मिस्त्री रोने लगे और फोन काट दिया।

उत्तर प्रदेश के जिला अंबडेकर नगर के तहसील अकबरपुर के गांव शहजादपुर में रहने 50 वर्षीय राम बहादुर के भाई लाल बहादुर (42) की मौत 23 अप्रैल को हो गयी। वे लगभग एक हफ्ते से बीमार चल थे। गुरुवार 22 अप्रैल की रात अचानक से उनकी तबियत बिगड़ गई, उन्हें अस्पताल तो ले गए लेकिन बचाया नहीं जा सका।

फोन काटने के लगभग एक घंटे बाद राम बहादुर ने खुद फोन किया और बताया, “कई दिनों से उसे (लाल बहादुर) हल्का बुखार था। पास के बाजार में एक डॉक्टर से दवा ली थी तो उसे आराम था, लेकिन मंगलवार को उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी।”

राम बहादुर ने आगे कहा, “लक्षण तो सारे कोरोना वाले ही थे। सामान्य अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं मिला। वह सांस नहीं ले पा रहा था। फिर जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज (पीजीआई) ले गए तो उन्होंने एडमिट नहीं लिया। डॉक्टर बोले कि यहां उसे ही ऑक्सीजन मिलेगा जो कोरोना पॉजिटिव होगा। थक हारकर हम उसे घर ले आए। ऑक्सीजन ढूढ़ते रहे, लेकिन मिला नहीं और अगले दिन सुबह उसकी मौत हो गयी।”

भारत में कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़े डराने लगे हैं। नए संक्रमित मरीजों के साथ ही रोजाना होने वाली मौतों की संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है। पिछले 24 घंटे में देशभर में कोरोना के लगभग 3.70 लाख से ज्यादा मामले सामने आए, जिससे एक्टिव केसों की संख्या अब 30 लाख से ज्यादा हो गई है। पिछले 24 घंटे में करीब 3645 लोगों की मौत भी हुई है।

इस महामारी की विभीषिका को हम बस शहरों से जोड़कर देख रहे हैं, गांव में क्या हो रहा? वहां क्या स्थिति है, इसकी खबर ही नहीं है।

देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि लोग बीमार होने के बावजूद कोविड टेस्ट नहीं करा रहे हैं। ऐसे में स्थिति बिगड़ने पर कोविड अस्पताल उनका इलाज करने से यह कहकर मना कर रहे हैं कि यहां तो बस कोविड पेशेंट का इलाज हो रहा है। ऐसा एक नहीं, कई परिजन आरोप लगा रहे हैं। परिजनों का कहना हैं कि उनके मरीज को इलाज और ऑक्सीजन मिल गया होता तो शायद उनकी जान बच जाती।

कई ऐसी शिकायतें भी आ रही हैं, जिनमें मरीज की कोविड रिपोर्ट निगेटिव थी, इस कारण कोविड डेडिकेटेड अस्पतालों में उनका इलाज नहीं हुआ और न ही ऑक्सीजन मिला, जिसकी वजह से मरीज की जान चली गयी।

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“मेरे पापा को तो कोरोना भी नहीं था। उनकी सभी रिपोर्ट निगेटिव आयी थी, हमने अस्पतालों को दिखाया तो उन्होंने कहा हम एडमिट नहीं करेंगे। न तो किसी सरकारी अस्पताल ने एडमिट लिया और न ही प्राइवेट। हम रातभर पापा को लेकर भटकते रहे और सुबह पांच बजे उनकी मौत हो गयी”, जगापुर के नितिन पांडेय ने कहा।

उत्तर प्रदेश के जिला भदोही के मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर जंगीगज के गांव जगापुर में रहने वाले 18 वर्षीय नितिन पांडेय जब फोन पर यह सब बता रहे थे तो वे बार-बार यह पूछ रहे थे कि आप सरकार की तरफ से हैं क्या, मुझे बताना है कि मेरे पापा बच सकते थे, लेकिन मेरे ही जिले के सरकारी अस्पतालों ने उनका इलाज नहीं किया।

ग्रामीण क्षेत्रों में जाँच कैसे हो रही है, उसके लिए यह वीडियो देखा जा सकता है

नितिन के पिता प्रभाकर नाथ पांडेय (55) 19 अप्रैल से बीमार थे। यहां-वहां से दवा लेकर खा रहे थे, लेकिन 23 अप्रैल को उन्हें बुखार हुआ और फिर सांस लेने में दिक्कत होने लगी। इस दौरान उन्होंने कोविड टेस्ट भी कराया था, जिसकी रिपोर्ट निगेटिव थी।

“पहले तो उन्हें पास के कुछ निजी अस्पतालों में ले गया। फिर लगा कहीं ऐसा तो नहीं है कि पापा की कोरोना रिपोर्ट गलत आयी हो। फिर उन्हें जिले के सरकारी अस्पताल ज्ञानपुर और भदोही लेकर गया। बताया कि पापा को बस साँस लेने में परेशानी है। ऑक्सीजन दे दीजिए, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। सब बोले कि यहां बस कोरोना के मरीजों को ऑक्सीजन मिलेगा।” नितिन आगे बताते हैं। 

ऐसा नहीं है कि ऐसी स्थिति बस उत्तर प्रदेश के गांवों में ही है। राजस्थान के जिला नागौर के ब्लॉक सुजानगढ़ के गांव यशवंत नगर में रहने वाले इरशाद खान (21) छात्र हैं और उनकी टीम महामारी के इस दौर में गांवों में जरूरतमंदों कोजरूरी चीजें उपलब्ध करा रही है।

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अपने गांव की स्थिति के बारे में वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “कुछ दिन पहले मेरे पड़ोस के गांव में रह रहे चाचा (नाम छापने से मना किया है) की तबियत रात में अचानक से ख़राब हो गयी। उन्हें साँस लेने में दिक्कत थी। लक्षण सारे कोरोना के थे। जिला अस्पताल ले गए, लेकिन वहां बोला गया कि कोविड होगा तभी एडमिट करेंगे। उन्होंने जांच नहीं कराई थी तो रिपोर्ट थी नहीं। घर लेकर आए और सुबह उनकी मौत हो गयी।”

गांवों में लोग टेस्ट क्यों नहीं करा रहे?

अब सवाल यह है कि लोग अगर बीमार हो रहे हैं तो टेस्ट क्यों नहीं करा रहे? गुजरात के जिला कच्छ के तालुका मुंद्रा के गांव देशलपर में रहने वाले महेश माहेश्वरी (27) जो खुद कोविड पॉजिटिव हैं, यही सवाल हमने उनसे भी पूछा। अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए वे कहते हैं, “20 अप्रैल को पता चला कि मुझे और मेरे परिवार के दो लोगों को कोरोना हो गया है। गांव में दूसरे लोगों की तरह हम भी बीमार थे, लेकिन हमने टेस्ट करवाने का फैसला किया। एंटीजन टेस्ट में मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई, जबकि पापा की रिपोर्ट निगेटिव आई।”

“एक हफ्ते बाद जब आरटी-पीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट आयी तब पता चला कि पापा भी पॉजिटिव हैं। वे गंभीर अवस्था में आईसीयू में हैं। आप विश्वास नहीं करेंगे, 21 अप्रैल को जब हम मुंद्रा स्वास्थ्य केंद्र में जांच कराने गए थे तब हमें 5 घंटे लग गए थे टेस्ट कराने में। इतनी भीड़ थी कि लग रहा था हम किसी मेले में आए हैं। भीड़ और रिपोर्ट में देरी आने के कारण भी गांव के लोग टेस्ट कराने नहीं जा रहे। जबकि अगर मेरे गांव में ही सबकी जाँच हो जाए तो हर घर में कोविड पॉजिटिव पेशेंट मिलेगा।” महेश आगे कहते हैं।

उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र से सटे राज्य झारखंड के जिला गढ़वा के प्रखंड खरौंदी के मनोज दुबे कोविड पॉजिटिव हैं और घर में ही आइसोलेट हैं। गांवों में लोग बीमार होने पर भी जांच क्यों नहीं करवा रहे हैं? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ” गांव में अभी भी लोगों को लगता है कि कोरोना जैसी कोई बीमारी है ही नहीं। लोगों को बुखार है, खांसी है, लक्षण कोरोना के हैं फिर भी घरों में शादियां हो रही हैं।”

ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के एक सामुदायिक केंद्र की है जहां ग्रामीण कोविड टेस्ट कराने के लिए कतार में खड़े हैं। (फोटो- अरेजमेंट)

“रही बात जांच कराने की तो जांच होगी कहां ? गांव के ज्यादातर लोगों को तो पता ही नहीं है। इसके अलावा लोग सरकार की जांच पर विश्वास भी नहीं कर रहे हैं। किसी की पहली रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है तो किसी की दूसरी। ऐसे में लोग कह रहे हैं की कोरोना तो सरकार का किया कराया है।”

मध्य प्रदेश के जिला टीकमगढ़ के ब्लॉक जतारा के गांव तिगौड़ा में रहने वाले शैलेन्द्र सिंह घोष गांव की स्थिति के लिए प्रशासन को जिम्मेदार बताते हैं। वे कहते हैं,”मेरे आसपास के गांवों में कई मौत हो चुकी है। क्यों हुईं, यह किसी को नहीं पता। जिससे पूछिए, वह यही कहता है कि कुछ नहीं हुआ था, बस साँस लेने में दिक्कत हुई और मौत हो गई। सब यही कह रहे हैं, लेकिन उन्हें कोरोना था कि नहीं, यह किसी को नहीं पता।”

“टेस्ट सब करा लेंगे, लेकिन इतना डर फ़ैल गया है कि लोगों को लग रहा कि जाँच कराने जाएंगे तो पक्का ही कोरोना हो जायेगा, क्योंकि वहां इतनी भीड़ रहती है और सब बीमार ही आते हैं वहां। जाँच कराने में कम से कम 4-5 घंटे लग जाते हैं। इसलिए लोग जांच नहीं करा रहे हैं” शैलेन्द्र ने आगे कहा।

उत्तर प्रदेश की राजधानी में लखनऊ के मेयो अस्पताल में प्रेक्टिस कर रही डॉ. सीमा जायसवाल कोविड पॉजिटिव हैं और इस समय अपने उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के तमकुही रोड के अपने गांव में हैं। गांवों में लोग जांच क्यों नहीं करा रहे हैं, इसके बारे में वह बताती हैं, “मेरे आसपास के गांवों में रोज किसी न किसी के मरने की खबर आ रही है। बावजूद इसके लोग शादियों में जा रहे हैं, कार्यक्रम कर रहे हैं। जिले में जांच की कोई व्यवस्था ही नहीं है। एंटीजन टेस्ट होता है तो उसमें रिपोर्ट कुछ भी आ जा रही है और आरटी-पीसीआर टेस्ट यहां से 90 किलोमीटर दूर गोरखपुर में होता है।”

“स्थिति इतनी बदतर है, ऐसे में टेस्टिंग की व्यवस्था सही करनी चाहिए। इतना दूर लोग जांच कराने कैसे जायेंगे। यही कारण है कि बीमार होने पर आसपास के डॉक्टर से दवा ले रहे हैं, लेकिन जांच नहीं करा रहे हैं।”

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