कैसी है ग्रामीण भारत में इस भीषण गर्मी में काम कर रहे मजदूरों की ज़िंदगी

शहरों में जब लोग एसी के रिमोट से टेंपरेचर ऊपर-नीचे कर रहे होते हैं, उसी दौरान मजदूर कहीं खेत या किसी घर की दीवारों की ईंट उठाते हुए पसीना बहा रहे होते हैं। बढ़ती गर्मी ने न केवल दिहाड़ी और खेतिहर मजदूरों की सेहत पर असर डाला है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित किया है।

Divendra SinghDivendra Singh   26 Jun 2024 12:36 PM GMT

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कैसी है ग्रामीण भारत में इस भीषण गर्मी में काम कर रहे मजदूरों की ज़िंदगी

पिछले कई महीनों से आईएमडी हीटवेव अलर्ट जारी कर लोगों को घरों के अंदर रहने की चेतावनी दे रहा है। इन सभी चेतावनियों का विमला देवी के लिए कोई मतलब नहीं है। भले ही कितनी भी गर्मी क्यों न हो, उन्हें हर दिन इसी गर्मी में काम करना है। सभी तस्वीरें: दिवेंद्र सिंह

जून की तपती दोपहरी में घर की पुरानी दीवार से ईंटें निकाल रहीं विमला देवी को लगा कि वो चक्कर खाकर गिर जाएँगी, लेकिन अपनी लाल साड़ी से पसीना पोछते हुए काम करती रहीं, क्यों उन्हें जल्द से जल्द काम पूरा करना था।

मई-जून की गर्मी में जब मौसम विभाग लोगों को बाहर न निकलने की सलाह दे रहा है, उसी चिलचिलाती धूप में निर्माण, खेतिहर और मनरेगा मजदूर 45-50 डिग्री में काम कर रहे हैं।

46 साल की विमला देवी भी उन्हीं मजदूरों में से एक हैं, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के भिखनापुर गाँव की रहने वाली विमला देवी के घर में सिर्फ वही कमाने वाली हैं, इसलिए इस गर्मी में काम करना पड़ रहा है। लेकिन आने वाले साल में शायद इस गर्मी में काम करना आसान न रहे।


एक के ऊपर एक ईंट रखते हुए विमला देवी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "गर्मी तो है, लेकिन क्या कर सकते हैं, जहाँ काम मिलता है करते हैं; पहले इतनी गर्मी नहीं होती थी, लेकिन इस बार तो बहुत गर्मी पड़ी है, कई बार तो ऐसा लगता है कि चक्कर खाकर गिर जाऊँगी।"

देश में भयंकर गर्मी पड़ रही है इस बार प्रतापगढ़ में तापमान 45 डिग्री तक पहुँच गया, और देश के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है। मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग प्रति दशक 0.26 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रही है - रिकॉर्ड रखने के बाद से यह सबसे अधिक दर है।

पिछले कई महीनों से आईएमडी हीटवेव अलर्ट जारी कर लोगों को घरों के अंदर रहने की चेतावनी दे रहा है। इन सभी चेतावनियों का विमला देवी के लिए कोई मतलब नहीं है। भले ही कितनी भी गर्मी क्यों न हो, उन्हें हर दिन इसी गर्मी में काम करना है।


इतनी मेहनत के बाद विमला देवी ढंग से सो नहीं पाती हैं, विमला देवी कहती हैं, "रात भर बत्ती (बिजली) आती-जाती रहती है, किसी तरह से इस गर्मी में रात काटते हैं। पंखे की हवा भी गर्म लगती है, जैसे लू चल रही हो।"

वन अर्थ द्वारा 2022 में 68 देशों में किए गए अध्ययन जिसका शीर्षक Rising Temperatures Erode Human sleep है, के अनुसार विश्व स्तर पर लोगों की नींद प्रभावित हुई, जिससे पता चला है कि गर्म तापमान की वजह से लोग कम नींद ले पाते हैं। बुजुर्ग, महिलाएँ और कम आय वाले देशों के लोग इससे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। 2099 तक, बढ़ता तापमान एक साल में प्रति व्यक्ति की 50-58 घंटे की नींद कम कर सकता है।

विमला देवी सुबह तीन-चार बजे तक उठ जाती हैं, उनके पास एक भैंस और गाय है। वैसे तो इनके दूध को बेचकर भी कमाई हो जाती है, लेकिन गर्मी की वजह से दूध उत्पादन पर भी असर पड़ा है।

गर्मी का असर मनरेगा मजदूरों पर भी पड़ रहा है। आसमान से बरसती आग में मनरेगा मजदूर अपना पसीना बहा रहे हैं। विमला देवी की पड़ोसी सुशीला इन दिनों मनरेगा के तहत तालाब की खुदाई कर रही हैं, लेकिन गर्मी की वजह से उनका काम भी प्रभावित हुआ है। सुशीला देवी कहती हैं, "गर्मी में मनरेगा का काम और बढ़ जाता है, क्योंकि बरसात से पहले सब खत्म करना होता है; इस गर्मी में काम करना मुश्किल हो रहा है, लेकिन काम करना मजबूरी है।"


गर्मी की वजह से मजदूर दिन भर काम नहीं कर पा रहे हैं। लगातार बढ़ती गर्मी से लोगों का रोजगार भी प्रभावित हो रहा है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) की 2019 की रिपोर्ट - वर्किंग ऑन ए वार्मर प्लेनेट - द इम्पैक्ट ऑफ़ हीट स्ट्रेस ऑन लेबर प्रोडक्टिविटी एंड डिसेंट वर्क - में चेतावनी दी गई है कि भारत में हीट स्ट्रेस के कारण 2030 में 5.8 प्रतिशत काम के घंटे कम होने की उम्मीद है। अपनी बड़ी आबादी के चलते देश 2030 में 3.4 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियाँ खोनी पड़ सकती हैं।

सुशीला आगे कहती हैं, "कई बार तो ऐसी जगह काम करना होता है, जहाँ दूर-दूर तक कोई पेड़ भी नहीं होता है, जिसके नीचे थोड़ा सुस्ता लें; हमारे गुट में इस महीने कई लोग गर्मी से बीमार हुए हैं, कई लोग तो यहीं चक्कर खाकर गिर गए थे; पता नहीं आगे कैसे काम कर पाएँगे।"

सुशीला का डर लाज़िमी भी है, क्योंकि विश्व बैंक की 2022 की एक और रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2030 तक, पूरे भारत में सालाना 16 से 20 करोड़ से ज्यादा लोगों के घातक गर्मी की चपेट में आने की संभावना है।

निर्माण और मनरेगा मजदूरों के साथ खेतिहर मजदूरों का भी यही हाल है, उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के रवि पाल खेत में काम करते हैं, इस समय खेत में उड़द, मूँग, मक्का के साथ ही गेंदा जैसी बागवानी फ़सलें हैं, लू के चलते बार सिंचाई करनी पड़ रही है और खरपतवार बढ़ने से खेत में ज्यादा समय देना पड़ रहा है।


रवि पाल बताते हैं, "इतनी गर्मी में खेत में काम करना आसान नहीं होता है, इस समय मजदूर बहुत मुश्किल से मिलते हैं; डर लगता है कि इस गर्मी में उन्हें कुछ हो न जाए, लेकिन अगर ऐसा करेंगे तो खेती का नुकसान होगा।"

अध्ययन बताते हैं कि भारत में 2000-2004 और 2017-2021 के बीच भीषण गर्मी के कारण होने वाली मौतों में 55 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। गर्मी की चपेट में आने से 2021 में भारतीयों के बीच 167.2 बिलियन संभावित श्रम घंटे का नुकसान हुआ। इसकी वजह से देश की जीडीपी के लगभग 5.4 प्रतिशत के बराबर आय का नुकसान हुआ है।

भारत मई से ही हीटवेव का सामना कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार गर्मी ने 100 से ज़्यादा लोगों की जान ले ली है और देश भर में हीट स्ट्रोक के लगभग 40,000 संदिग्ध मामले दर्ज किए गए हैं। पिछले हफ्ते सरकार ने एक सलाह जारी की, जिसमें लोगों से दोपहर से शाम 3 बजे के बीच बाहर जाने से बचने का आग्रह किया गया, जो दिन का सबसे गर्म समय होता है।

अब तो इन लोगों को बस बारिश का इंतज़ार है कि कब बारिश हो और इस गर्मी से छुटकारा मिले, लेकिन डर भी है कि आने वाले सालों में कैसे काम कर पाएँगे?

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