आपने अपने आस -पास देखा होगा कुछ लोग एकदम अकेले, तन्हा रहते हैं। बाहर से सामान्य से दिखने वाले ये लोग अंदर गहरे अवसाद से जूझ रहे होते हैं। भारत सहित पूरी दुनिया में लोग इस समय अकेलेपन से जूझ रहे हैं। ब्रिटेन में तो अकेलेपन का शिकार लोगों के लिए एक मंत्रालय तक बनाया गया है। इस बीच आप पढ़िए हमारे देश सहित कैसे दुनिया के बाकी देशों में लोग अकेलेपन का शिकार हैं, इसके क्या कारण है और इससे कैसे बचा जा सकता है…
एक ख़बर इस समय मीडिया में सुर्खियां बनी हुई है – ‘अकेलेपन से निपटने के लिए ब्रिटेन में मंत्रालय का गठन’। बीते बुधवार को ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने अकेलेपन और अवसाद से निपटने के लिए नए मंत्रालय का गठन किया और खेल व सिविल सोसायटी मंत्री ट्रेसी काउच को इस मंत्रालय का भी कार्यभार सौंपा। ब्रिटेन में ये मंत्रालय लेबर पार्टी के सांसद जो कॉक्स की याद में बनाया गया जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी अकेलेपन से जूझ रहे लोगों के लिए समर्पित कर दी थी। ब्रिटेन की इस पहल ने तेज़ी से बढ़ रही एक बीमारी की ओर सबका ध्यान खींचा है।
इस नए मंत्रालय के मुताबिक, अकेले ब्रिटेन में ही 90 लाख लोग अकेलेपन और डिप्रेशन के शिकार हैं। इनमें से करीब दो लाख बुजुर्ग अपने दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ एक महीने में बात भी नहीं कर पाते हैं और 18 से 34 की उम्र के करीब 85 फीसदी विकलांग युवा अकेलेपन की बीमारी से ग्रस्त हैं।
ब्रिटिश सरकार की इस पहल की सराहना होनी चाहिए। पिछले कुछ साल में अकेलेपन की समस्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। कभी पढ़ाई तो कभी नौकरी की तलाश में युवा अपने घर से दूर जा रहे हैं। बड़े – बड़े महानगरों में जितनी तेज़ी से अकेले रहने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है, शहरों और गाँवों में उतनी ही तेज़ी से अकेले बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। ये हाल सिर्फ ब्रिटेन का ही नहीं है। पूरी दुनिया में अकेलेपन का शिकार लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।
क्या होता है अकेलापन
अकेलेपन पर ज़्यादा बात करने से पहले हमें ये जान लेना चाहिए कि आख़िर ये होता क्या है? आगरा के मनोवैज्ञानिक डॉ. सारंग धर बताते हैं, ” जो व्यक्ति अकेलेपन का शिकार होता है उसे ऐसा महसूस होता है जैस कि वो इस दुनिया का हिस्सा है ही नहीं, तब भी जब वह भीड़ में होता है, जब किसी व्यक्ति को लगता है कि उसे सबने छोड़ दिया है। अकेलापन कई बार तनाव, घबराहट जैसी बीमारियों को भी जन्म देता है।
दुनियाभर का यही हाल
नई दिल्ली के एजवेल फाउंडेशन ने बीते साल भारत के 15,000 बुजुर्गों पर एक सर्वे किया जिसमें से 47.49 फीसदी बुजुर्ग अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे हैं। शहरों में ये संख्या ज़्यादा है। शहरों के 3,205 बुजुर्गों में से 5000 बुजुर्ग अकेलापन महसूस करते हैं।
सर्वे के मुताबिक, शहरों में 64.1 प्रतिशत तो गाँवों में 39.19 प्रतिशत बुजुर्ग अकेलेपन का शिकार हैं। ज़्यादातर मामलों में अकेला रहना ही अकेलेपन को महसूस करने का कारण है।
नवंबर 2017 में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार जापान में एक पीढ़ी अकेलेपन से जूझते हुए मर रही है। इसमें बताया गया है कि कैसे जापान के शहरों में सामाजिक अलगाव से जूझ रहे बुजुर्ग बड़े – बड़े अपार्टमेंट्स में अकेले रहते हैं। हालात की भयावहता इस बात से पता चलती है कि वहां के लोगों ने कुछ कोड बना रखे हैं जिससे ये पता चलाया जा सके कि किसी फ्लैट में रह रहा व्यक्ति मर गया या ज़िंदा है, जैसे खिड़कियों को खुला छोड़ देना। जापान की एक मैगज़ीन में छपे लेख के मुताबिक, वहां एक हफ्ते में अकेलेपन से जूझते हुए 4,000 लोगों की मौत हो गई।
फॉर्च्यून डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में एक चौथाई जनसंख्या अकेले रह रही है। यूएस में शादी और बच्चों की संख्या में भी कमी आ रही है। अमेरिका में 45 साल से ऊपर के 42.6 मिलियन लोग अकेलेपन से जूझ रहे हैं।
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अकेलेपन का सेहत पर प्रभाव
अकेलेपन का असर सिर्फ मानसिक ही नहीं शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। सामाजिक अलगाव व अकेलेपन से जूझ रहे लोगों के जल्दी मरने की संभावना उतनी ही होती है जितना एक दिन में 15 सिगरेट पीने वाले व्यक्ति की। इसके अलावा मोटापा, अनिद्रा, तनाव, अवसाद जैसी और भी कई बीमारियों का कारण अकेलापन होता है। अमेरिका में अकेलेपन पर हुए 148 अध्ययनों में 3,00,000 से ज़्यादा लोगों पर किए गए शोध के मुताबिक, अकेले रहने वाले लोगों में समय से पहले मौत की संभावना 50 फीसदी बढ़ जाती है। इसके अलावा 70 अध्ययनों में शामिल 34 लाख लोगों की रिपोर्ट भी सामने आई। ये अध्ययन उत्तरी अमेरिका, एशिया यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में किए गए थे, जिनके मुताबिक, सामाजिक अलगाव, अकेलापन और अकेले रहना तीनों से एक जल्दी मौत का ख़तरा एक बराबर बढ़ता है।
क्या होते हैं कारण
सामाजिक अलगाव और अकेलापन महसूस होने के कई कारण हो सकते हैं। किसी ख़ास व्यक्ति की मौत, अपने साथी से क़ानूनी, शारीरिक अलगाव, किसी कारण अपनों से दूर रहना, नौकरी चले जाना या सेवानिवृत्त हो जाना, किसी एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट होना, किसी तरह की हिंसा या भेदभाव का शिकार होना। डॉ. सारंग धर बताते हैं, ”जब आपकी उम्मीदें पूरी नहीं होती हैं तो सामाजिक अलगाव उत्पन्न होता है, आपको लगता है कि आपको ज़रूरी सम्मान नहीं दिया गया है, आपके भाई-बहन को माता – पिता आपसे ज़्यादा प्यार करते हैं, या जब आपके दोस्त और सहकर्मी आपको उनकी योजनाओं में शामिल नहीं करते हैं तो व्यक्ति अकेला रहना पसंद करने लगता है और कई बार ये आदत इतनी बढ़ जाती है कि कब वह बीमारी बन जाती है पता ही नहीं चलता।
तकनीक भी है एक वजह
सोशल मीडिया और गैजेट्स का बढ़ता इस्तेमाल भी अकेलेपन का कारण बनता जा रहा है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अकेलेपन से निपटने के लिए सोशल मीडिया और दूसरे गैजेट्स का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इनके ज़्यादा इस्तेमाल से अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। शुरुआत में जब कोई सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करता है तो आभासी दुनिया में उसके दोस्त बनने लगते हैं, उसका आभासी दायरा बढ़ने लगता है लेकिन धीरे – धीरे ये कम होने लगता है। इस बीच के वक्त में लोग अपनी असली दुनिया के लोगों से कट जाते हैं और दोबारा उनसे घुलना – मिलना उनके लिए आसान नहीं हो पाता, ऐसे में लोग अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं।
किस तरह निपटें अकेलेपन से
डॉ. सारंग धर बताते हैं कि अकेलेपन से जूझ रहे लोगों के लिए सबसे ज़रूरी है कि वे खुद को किसी न किसी काम में व्यस्त रखें। अगर उनके परिवार के लोग उनके साथ नहीं रहते तो आस-पास के लोगों से पड़ोसियों से मिलें, उनसे बात करें। सुबह शाम का कुछ समय पार्क में बिताएं। अपनी परेशानियों को मन में रखने के बजाय उन्हें किसी से बांटें। किसी तरह की एक्टिविटी जैसे योगा, डांस क्लास, क्लब, किटी या कुछ भी जिसमें आपका मन लगे वो ज्वाइन कर लें। परिवार से दूर रहते हैं तो ऐसी जगह कमरा लें जिसमें आपको रूम मेट मिल जाए।