इन उपायों से बचा सकते हैं धान की फसल को बौना रोग से

किसान धान की खेती की तैयारी कर रहे हैं। पिछले साल कई राज्यों में इस फसल में लगे बौना रोग ने काफी नुकसान पहुंचाया था। इस बार फिर फसल इससे प्रभावित न हो, इसके लिए ज़रूरी है किसान शुरू में ही कुछ सावधानी बरत लें।
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पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में धान की फसल में ‘सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस’ ने पिछले साल किसानों की नींद उड़ा दी थी। इस बीमारी से 20-30 दिन बाद ही धान के पौधे बौने रह जाते हैं। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है।

किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते पूसा समाचार जारी करता है। इस हफ्ते आईएआरआई के निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह धान को सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस से बचाने की सलाह दे रहे हैं।

धान की फसल मे पिछले साल आई इस बीमारी के कारण बिल्कुल बौने पौधे और उनकी संख्या अलग किस्मों मे पाँच से लेकर के 20 प्रतिशत तक पाई गई थी। शायद ही ऐसी किस्म थी जिनमें उनकी संख्या मे इसका प्रभाव देखने को नहीं मिला था।

पिछले साल उत्तराखंड के उधमसिंह नगर के जसपुर के किसान पीसी वर्मा अपने धान के खेत में लगे रोग को दिखाते हुए। फाइल फोटो

पिछले साल उत्तराखंड के उधमसिंह नगर के जसपुर के किसान पीसी वर्मा अपने धान के खेत में लगे रोग को दिखाते हुए। फाइल फोटो

यह वायरस एक पौधे से दूसरे पौधे मे फैलता है। तेला या चेपा जिसे हम विशेष रूप से व्हाइट ब्लैक हॉपर कहते हैं यह सफेद रंग का फुदका कीट होता है। इसके पीठ पर सफेद रंग के धब्बे पाए जाते हैं बाकी इसका रंग भूरा होता है।

जब एक वायरस ग्रसित पौधे का रस किसी स्वस्थ्य़ पौधे पर जाता है, तो उसमें भी ये वायरस फैल जाता है। 25 से 30 दिन की फसल पर इसका प्रकोप ज्यादा देखने को मिला है। हो सकता है कि संक्रमण पौध शाला से भी आया हो।

डॉ अशोक कुमार सिंह कहते हैं, “जो ये सफेद रंग का तेला है व्हाइट ब्लैक प्लांट हॉपर, दक्षिण के राज्यों में भी है। वो एक सीजन से दूसरे सीजन तक लगातार अपनी जनसंख्या को बनाए रखता है। जब बरसात होती है, हवा चलती है तो उसके साथ ही ये उत्तर भारत में आकर यहां पर भी अपना प्रभाव डालता है। इसलिए जरूरी है जब हम पौधशाला की तैयारी कर रहे हैं, नर्सरी लगा रहे है तो उस समय इसका नियंत्रण करें।”

डॉ सिंह के मुताबिक इस खास किस्म के कीट या तेला, चेपा की रोकथाम के लिए डाइनोटफ्यूरान 20 एसजी 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर या ट्राई फ्लुओपाइरम 10 एससी 235 मिली प्रति हेक्टेयर या फिर पाइमेट्रोजिन 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करनी चाहिए। पौधों की जड़ों के पास पेक्सालॉन दवा 94 मिली 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव कारगर होता है।

किसानों को एक बात का और ध्यान रखना चाहिए। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया है कि दूब और मोथा घास पर यह कीट जिंदा रहता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि नर्सरी के अगल-बगल घास को न उगने दें, समय-समय पर सफाई करते रहें।

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