इंजीनियरिंग और एमबीए करने वाले युवाओं को एलोवेरा में दिख रहा कमाई का जरिया

Aloe vera

लखनऊ। नोएडा में पिछले कई वर्षों से प्रोफेसर मदन कुमार शर्मा अब खेती भी करने लगे हैं, वहीं बरेली की आंचल जिंदल बीटेक व एमबीए करके बैंगलोर में जॉब छोड़कर अब बरेली में एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहती हैं।

मदन और आंचल की तरह ही 23 और भी लोग सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान में प्रशिक्षण ले रहा कि कैसे एलोवेरा का प्रसंस्करण कर सकता है। पिछले कुछ वर्षों में देश में सौन्दर्य प्रसाधनों के साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में भी एलोवेरा की मांग तेजी से बढ़ी रही है, जिससे लोगों का रुझान भी बढ़ा है।

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अलीगढ़ जिले के खैर तहसील के मदन कुमार शर्मा ग्रेटर नोएडा में गलगोटिया इंजीनियरिंग कालेज में कम्युटर साइंस के प्रोफेसर हैं, लेकिन साथ ही अपने गाँव में एलोवेरा की खेती भी शुरु कर दी है। मदन बताते हैं, “पढ़ायी के बाद यहां पर जॉब करने लगा हूं, घर में शुरु से खेती होती आ रही है, लेकिन धान, गेहूं, आलू जैसी परंपरागत फसलों की खेती होती है, इसलिए मैंने एलोवेरा की शुरु की है।”

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वो आगे बताते हैं, “एलोवेरा में पता किया तो पता चला कि राजस्थान में कई किसान एलोवेरा की खेती कर रहे हैं, नागौर जिले से खरीदकर फसल लगायी है, अब यहां पर पूरी ट्रेनिंग लेने आया हूं और बेहतर ढ़ग से एलोवेरा की खेती के साथ ही प्रोसेसिंग भी कर सकूं, जिससे दूसरे किसानों को भी बेहतर प्लेटफार्म दे पाऊंगा।”

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान में आयोजित चार दिवसीय एलोवेरा प्रसंस्करण तकनीक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन भारत के विभिन्न राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान से कुल 23 प्रतिभागियों ने भाग लिया है।

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प्रशिक्षण में एलोवेरा की खेती से लेकर उसकी प्रोसेसिंग और उसके उत्पाद और उसकी मार्केटिंग की जानकारी दी जा रही है। प्रशिक्षण के समन्वयक, प्रमुख वैज्ञानिक इंजी. सुदीप टंडन बताते हैं, “सीमैप में समय-समय पर ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किये जाते हैं, जिसमें किसानों को औषधीय और सगंध पौधों की खेती और प्रोसेसिंग की जानकारी दी जाती है। इस कार्यक्रम में अभी तक खेती जूस, सैप, जेल और क्रीम बनाने की तकनीकी के बारे में विस्तार से बताया गया है।”

गुजरात के राजकोट जिले के धोराजी गाँव के किसान हरसुख भाई पटेल पिछले 17 वर्षों से 45 एकड़ में औषधीय और सगंध पौधों की खेती कर रहे हैं। हरसुख भाई पटेल कहते हैं, “2001 में सीमैप के वैज्ञानिक अहमदाबाद में ट्रेनिंग देने गए थे, वहीं पर खेती की ट्रेनिंग लेने गया था। तब से पामारोजा, लेमनग्रास, मेंथा, तलसी, खस, सिट्रोला, नेपाली सतावर के साथ ही एलोवेरा की खेती शुरु की है।”

वो आगे बताते हैं, “अभी तक एलोवेरा की खेती कर कंपनियों को पत्तियां दिया करता था, लेकिन अब पल्प बेचना शुरु किया है, यहां पर आकर और बेहतर ढंग से ट्रेनिंग ले रहा हूं, ताकि और बेहतर काम कर सकूं।”

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देश की कई बड़ी आयुर्वेदिक कंपनियां किसानों के साथ कंट्रैक्ट कर एलोवेरा की खेती करा रही हैं, इसमें कंपनी किसानों को पौध देकर खेती कराती हैं और किसानों से उत्पाद भी खरीद लेती हैं।

बरेली की रहने वाली आंचल जिंदल (28 वर्ष) इंजीनियरिंग करने के बाद एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट शुरु करना चाहती हैं। आंचल बताती हैं, “यहां से ट्रेनिंग लेने के बाद मैं प्रोसेसिंग यूनिट शुरु करना चाहती हैं, देश में अब लोगों का रुझान खेती की तरफ बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री भी खेती पर जोर दे रहे हैं, अब हमें भी इस पर कुछ करना चाहिए।”

लखनऊ के मनु अग्रवाल बीटेक और एमबीए के बाद एलोवेरा की ट्रेनिंग करने आए हैं। मनु बताते हैं, “एलोवेरा की तरफ मेरी रुचि पतंजलि से आयी, एलोवेरा की मांग कितनी बढ़ गयी है, मुझे लगा आजकल की जेनरेशन को भी करना चाहिए, इंटरनेट पर पता किया तो सीमैप के बारे में पता चला कि यहां पर फार्मिंग और प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग दी जाती है।”

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