मल्टीलेयर फार्मिंग: एक एकड़ में गोभी धनिया समेत 3 फसलें, 4 लाख की कमाई, जानिए पूरा गणित

बदलता इंडिया में आज पढ़िए मध्य प्रदेश में धार जिले के किसान सीताराम निगवाल की कहानी, जो सिर्फ 2 एकड़ में मल्टीलेयर फार्मिंग से सालाना 7-8 लाख रुपए कमाते हैं। कमाई बाजार के भाव और उत्पादन के हिसाब से कम ज्यादा होती रहती है।
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धार (मध्य प्रदेश)। देश में लघु और सीमांत किसानों की संख्या लगभग 86 फीसदी के आसपास है। कम जमीन होने के कारण खेती के सहारे ऐसे किसानों के सामने अपने परिवार को गुजारा करना आसान नहीं होता है। ऐसे किसानों के लिए मल्टीलेयर फार्मिंग मॉडल (Multilayer Farming Model) बेहद कारगर हो सकता है। मध्य प्रदेश के धार जिले के आवलिया गांव के किसान सीताराम निगवाल पिछले 6 सालों से सब्जियों की मल्टीलेयर फार्मिंग कर रहे हैं और सालाना अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। नए तरीके से खेती के लिए उन्हें आईसीएआर (ICAR) की तरफ से एक लाख का नगद ईनाम भी मिल चुका है।

धार जिले के किसान सीताराम निगवाल। सभी फोटो-श्याम दांगी, गांव कनेक्शन

2 एकड़ जमीन से गुजारा मुश्किल था

53 वर्षीय सीताराम निगवाल के पास परिवार में बंटवारे के बाद उनके हिस्से में दो एकड़ जमीन आई थी। जिसमें वे सोयाबीन, ज्वार, मक्का, गेहूं और चना की परंपरागत खेती करते थे। कम उत्पादन और अधिक लागत के कारण परिवार का गुजारा भी कठिन था। परंपरागत खेती में अधिक श्रम, खर्च और समय लगता लेकिन अपेक्षित मुनाफा नहीं मिल पाता था। कई सीजन तो फसल की लागत भी नहीं मिल पाती थी। थक हारकर उन्होंने कुछ नया करने की ठानी और सहफसली बहुफसली यानि एक साथ कई सब्जियों की खेती शुरु की।

सीताराम निगवाल गांव कनेक्शन को बताते हैं, “जमीन कम थी और खेती जो कर रहे थे उससे परिवार नहीं चल रहा था। 6 साल पहले हमने धार स्थित कृषि विज्ञान केंन्द्र से संपर्क किया। संस्थान के वैज्ञानिकों ने कम जमीन को देखते हुए सब्जियों की मल्टीलेयर फार्मिंग (multilayer farming) की सलाह दी। कुछ सालों तक मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से खेती करने में कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन आज इस मॉडल से सब्जियां उगाकर अच्छी कमाई कर रहा हूँ।”

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कौन सी सब्जियां उगाते हैं सीताराम

सीताराम आगे बताते हैं, ” मैं टमाटर के साथ पत्तागोभी, खीरा ककड़ी, गिलकी (तरोई) और धनिये की एक साथ खेती करता हूं। इस समय हमारे यहां लगभग एक एकड़ में सब्जियां लगी है। सबसे ऊपर गिलकी, खीरा या अन्य बेल वाली सब्जी हैं। वहीं ढाई-तीन फीट पर टमाटर हैं। बेड पर पत्ता गोभी तथा सबसे नीचे धनिया आदि बोई है। दस फीट की ऊंचाई गिलकी, तोरई, करेला, लौकी आदि लगा देते हैं।”

सीताराम अपनी खेती में रायायनिक खादों की जगह जैविक खादों का प्रयोग करते हैं। उनके मुताबिक वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करने से उत्पादन ज्यादा मिलता है। वे खेतों में जैविक कीटनाशकों का ही इस्तेमाल करते हैं।

खीरा और गिलकी के अच्छे दाम मिलने की उम्मीद

जिले के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुके सीताराम के मुताबिक इस बार उनकी सब्जी एक सवा महीने की हो गई है। कुछ दिनों गिलकी और खीरा की तुड़ाई शुरू हो जाएगी। इस बार खीरा और गिलकी के अच्छे दाम मिलने के आसार हैं।

सीताराम दूसरे किसानों को सलाह देते हुए कहते हैं, “सब्जियों की खेती में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। लेकिन इसके लिए लगातार खेती करना होती है। कई किसान एक बार नुकसान उठाने के बाद सब्जियां उगाना छोड़ देते हैं। लेकिन यदि सब्जियां उगाने में निरंतरता बरकरार रखी जाए तो इससे कम खेती होने के बाद भी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।”

सीताराम अपने गांव के करीब की धामनोद मंडी में सब्जियां बढियां पैकिंग के साथ बेचते हैं। उनका मानना है कि अगर आपकी सब्जियां गुणवत्तापूर्ण हैं तो दाम भी अच्छे मिलेंगे।

सालाना 7 से 8 लाख रुपए का मुनाफा

सीताराम के पास करीब दो से ढाई एकड़ जमीन है। जिसमें वे सालभर सब्जियों की खेती करते हैं। वे सब्जियों के अलावा प्याज की खेती भी करते हैं। अपनी आमदनी को लेकर सीताराम कहते हैं, “सालाना 7-8 लाख रुपये की कमाई हो जाती है। हालांकि आमदानी सब्जियों के भाव पर निर्भर करती है। कई बार दाम अच्छे मिलते हैं तो आमदानी बढ़ जाती है। वहीं कई बार दाम घट जाते हैं। सब्जियों की खेती लगातार करना पड़ती है। एक बार नुकसान होने पर उसे छोड़ना नहीं चाहिए। तभी अगले सीजन में उस सब्जी के अच्छे दाम लिए जा सकते हैं।”

अपनी खेती लागत और मुनाफे की बात आगे बढ़ाते हुए सीताराम बताते हैं कि सालाना सब्जियों की खेती में खाद, बीज, दवाईयां और मजदूरी में 2 लाख-2.5 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। अच्छे भाव मिलने पर कमाई दो एकड़ से 8 से 10 लाख तक पहुंच जाती है। ऐसे में यदि 2 लाख का खर्च हटा दें तो सालाना 7-8 लाख का शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं।”

तरोई के लिए स्टेकिंग तैयार करते हुए।

एक लाख रुपए का मिल चुका है पुरस्कार

खेती में नवाचार को देखते हुए उन्हें दिल्ली स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च ने साल 2018 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय कृषि के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था, जिसके तहत उन्हें एक लाख रूपए का नगद पुरस्कार मिला था। इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं।

सीताराम का मानना है कि खेती मेहनत के साथ सही तरीके करना आवश्यक होता हैं। समय-समय पर वैज्ञानिकों के सुझाव मानना जरुरी हैं। लगातार खेत में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से खेती की उर्वरक क्षमता घट रही है। लगातार यूरिया के उपयोग से जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती जा रही है, जो स्वास्थ्य के लिहाज से भी नुकसानदायक है। ऐसे सब्जियों को उगाने में कम से कम रासायनिक उर्वरक का उपयोग करना चाहिए।

वे बताते हैं, “सब्जियों में कम बीमारी लगे और खरपतवार कम हो इसके लिए मल्चिंग करता हूं। इससे कीटनाशक का खर्च भी बचता है। ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत होती है।”

सीताराम सब्जियों में टमाटर, मिर्ची, करेले, गिलकी, तोरई, लौकी, खीरा, मुली आदि की खेती करते हैं। इसके अलावा वे पपीता, प्याज आदि उगाते हैं। उनकी आधुनिक खेती से प्रभावित होकर समय समय पर उनके खेत पर कृषि अधिकारी देखने आते हैं। आज वे दूसरे किसानों के लिए किसी प्रेरणा स्त्रोत से कम नहीं है।

क्या है मल्टीलेयर या बहुमंजिला या बहुफसली खेती?

धार कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीएस गाठिए बताते हैं, “उद्यानिकी फसलों के लिए मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक काफी कारगर है। इसमें बेड और ड्रिप लगाकर बेल वाली सब्जियों को सबसे ऊपर लगाया जाता है। बेल वाली सब्जियों को बांस लगाकर मचान के ऊपर फैला दिया जाता है। बेलवाली सब्जियों में गिलकी, तोरई, लौकी आदि सबसे ऊपर लगा सकते हैं। मध्यम ऊंचाई की सब्जियों में टमाटर और चवला फली लगा सकते हैं। सबसे नीचे जमीन पर पत्ता गोभी, फूल गोभी और धनिया लगा सकते हैं। एक ही खेत में किसान चार प्रकार की सब्जियां आसानी से उगा सकता है।”

लघु और सीमांत किसानों के लिए मल्टीलेयर फार्मिंग काफी फायदेमंद है। इससे कम क्षेत्र फल में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। वहीं अधिक मुनाफा भी मिलता है। उन्होंने बताया कि धार जिले में बदनावर, नालछा समेत कई क्षेत्रों के एक हजार से अधिक किसान मल्टीलेयर फार्मिंग करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। मल्टीलेयर फार्मिंग में एक एकड़ में तकरीबन सवा लाख रूपए का खर्च आता है। वहीं 4 से 5 लाख रूपए तक का मुनाफा हो सकता है।

वहीं सामान्य तरीके से सब्जियों की खेती करने पर एक एकड़ में 25 से 60 हजार रूपए का खर्च आता है, जबकि मुनाफा एक से डेढ़ लाख रूपए तक होता है। उन्होंने बताया कि मल्टीलेयर फार्मिंग के तहत परवल, हल्दी, चवला फली और धनिया की खेती एक साथ कर सकते हैं। धनिए की जगह पालक, शलजम और गाजर आदि लगा सकते हैं। अभी रबी सीजन आने वाला है इसमें किसान एक बेल वाली सब्जी के साथ टमाटर तथा मटर, धनिया, मैथी, पालक आदि लगा सकते हैं।

सीताराम निगवाल के खेत पर अक्सर कृषि अधिकारी और दूसरे जिलों के किसान आते रहते हैं।

सब्जी उत्पादन में भारत का स्थान

सब्जी उत्पादन में भारत, चीन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा देश है। भारत में दुनिया की 15 फीसदी सब्जियों का उत्पादन होता है। बागवानी फसलों (फल-सब्जी) के दूसरे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक देश में 2020-21 में वर्ष बागवानी उत्पादन 329.86 मिलियन टन (अब तक का सबसे अधिक) होने का अनुमान है, जिसमें 2019-20 की तुलना में करीब 9.39 मिलियन टन (2.93%) की वृद्धि अनुमानित है। 15 जुलाई को अपने बयान में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि फलों का उत्पादन वर्ष 2019-20 में प्राप्त 102.08 मिलियन टन की तुलना में इस साल 102.76 मिलियन टन होने का अनुमान है। सब्जियों का उत्पादन पिछले वर्ष के 188.28 मिलियन टन की तुलना में 196.27 मिलियन टन (4.42 प्रतिशत की वृद्धि) होने का अनुमान है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, साल 2019-20 में देश में लगभग कुल 10303 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर सब्जियां उगाई गई थी, जिससे कुल 188.9 मिलियन टन सब्जियों का उत्पादन हुआ था। वहीं साल 2020-21 में 10711 हजार हेक्टेयर रकबे पर सब्जियां उगाने का अनुमान है, जिससे 193.609 मिलियन टन उत्पादन प्राप्त होने की संभावना है। इस साल आलू, टमाटर, प्याज, फूल गोभी समेत विभिन्न सब्जियों के बंपर उत्पादन की संभावना है।

वहीं राज्यों की बात की जाए तो 2018-19 के मुताबिक पश्चिम बंगाल सब्जी उत्पादन में अव्वल था। यहां देश की 15.9 फीसदी सब्जी का उत्पादन हुआ था। इसके बाद दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश था जहां कुल देश का 14.9 फीसदी उत्पादन हुआ था। सब्जी उत्पादन में मध्य प्रदेश का तीसरा स्थान है, 9.6 फीसदी उत्पादन हुआ था।

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