#civilservicesday पर सलाम उन अधिकारियों को जिन्होंने लीक से हटकर काम किया.. #Rajasthan में चित्तौड़गढ़ डीएम इंद्रजीत सिंह ने लड़कियों की शिक्षा के लिए खास मुहिम शुरु की है, जिसमें जनता भी उनकी भागीदार है
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के जिलाधिकारी ने बालिका शिक्षा पर जोर देते हुए ‘उड़ान’ नाम के अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के तहत हर ग्राम पंचायत में शिक्षा चौपाल लगती है जिसमें ग्रामीणों सहित जिलाधिकारी इन्द्रजीत सिंह भी शामिल होते हैं। जनता के सहयोग से इस अभियान को गति देने के लिए अब तक आठ करोड़ रुपए इकट्ठा हो चुके हैं।
बेटियों को बेहतर शिक्षा मिल सके इसके लिए किसी ने अपनी बकरी बेचकर पैसे दिए तो किसी ने अपने बेटे का मृत्युभोज न कराकर पैसे दिए, तो किसी ने मजदूरी करके पैसे जमा किए। ये राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के लोग हैं, एक समय था जब यहां के लोग अपनी बेटियों को पढ़ाने की बजाए बाल विवाह कर देते थे या फिर घर पर छोटे बच्चों की देखरेख करवाते थे। जिलाधिकारी के प्रयासों से शुरू हुआ ये अभियान आज जनमानस का हिस्सा बन गया है। यहां के आदिवासी लोग अब अपनी बेटियों को स्कूल भेजने लगे हैं। सरकारी विद्यालयों की शिक्षा प्रणाली बेहतर हो इसे अपनी जिम्मेदारी मानने लगे हैं।
चित्तौड़गढ़ की एक शिक्षिका ऊषा वैष्णव ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, “एक गांव के एक बुजुर्ग ने अपनी बकरियां बेचकर 30 हजार रुपए बेटियों की शिक्षा के लिए दान दिए। इन बाबा की तरह ऐसे तमाम लोग हैं जो बहुत गरीब हैं पर उन्हें शिक्षा की दिशा में जिलाधिकारी सर की कोशिश बहुत अच्छी लगी, इसलिए अब लोग इसे अपनी जिम्मेदारी समझकर सहयोग कर रहे हैं।” वो आगे बताती हैं, “सरकारी विद्यालयों में अब कान्वेंट स्कूलों के बच्चे भी आने लगे हैं। शिक्षा चौपाल में लड़कियों को शिक्षित होना कितना जरूरी है इस पर पूरी बातचीत की जाती है। गांव के लोग मोटिवेट होते हैं और सहयोग करते हैं।” ऊषा की तरह तमाम सरकारी और कान्वेंट विद्यालयों के शिक्षक इस अभियान को अपने सहयोग से गति दे रहे हैं।
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यहां के जिलाधिकारी इंद्रजीत सिंह गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “वैसे तो ये जिला डेवलप है, लेकिन यहां स्कूल जाने में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या बहुत कम है। ये संख्या मैं बढ़ाना चाहता था, कुछ प्रशासनिक अधियारियों और आम जनमानस की सहभागिता से इस मुद्दे पर मैंने बातचीत की।आखिर यहां के लोग बेटियों को स्कूल क्यों नहीं भेजते इसकी कई वजहें निकलकर आयीं। उनको ध्यान में रखते हुए एक कार्ययोजना बनाई गई जिसमें शिक्षा चौपाल करने की बात हुई।” वो आगे बताते हैं, ” हर चौपाल में मैं पहुंचूं ये कोशिश रहती है, बेटियों को पढ़ाना कितना जरूरी है, शिक्षा चौपाल में उनके माता-पिता और बेटियों को इकट्ठा करके चर्चा की जाती है। जो जागरूकता की इनमे कमी थी अब वो शिक्षा चौपाल लगने से बढ़ रही है,अबतक 100 ग्राम पंचायतों में सभी के सहयोग से आठ करोड़ की धनराशि इकट्ठा हो गयी है। जिसमें दो करोड़ नगद जमा हुआ और छह करोड़ लोगों ने देने की घोषणा की है, जो जल्द ही जमा हो जायेगा।”
आधिकारिक तौर पर 23 जनवरी 2017 को बालिका दिवस के मौके पर उड़ान अभियान की शुरूवात की गयी थी। जिले में 20 प्रतिशत लड़कियां स्कूल नहीं जाती थी।इस अभियान के शुरू होने के बाद ऑन रिकॉर्ड 13 प्रतिशत बालिकाएं स्कूल जाने लगी हैं। जिनकी उम्र पांच से चौदह वर्ष है। शिक्षा चौपालों में जो पैसा लोग देते हैं उससे सरकारी स्कूल की बिल्डिंग से लेकर उसके रख-रखाव पर खर्च किए जा रहे हैं,जिससे विद्यालय साफ़-सुथरा दिखे और बच्चियों को स्कूल आने में कोई असुविधा न हो। ‘उड़ान’ कोई सरकारी योजना नहीं है, ये यहां के जिलाधिकारी द्वारा शुरू किया गया एक जनमानस अभियान है, जिसमें हर कोई अपनी बेटियों की बेहतर शिक्षा के लिए आगे आ रहा है ।
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बैसोड़गढ़ ब्लॉक की प्रधान (ब्लॉक प्रमुख)वीना बसोदरा का कहना है, “हमारे ब्लॉक में 60 प्रतिशत आदिवासी रहते हैं, इनकी बेटियां या तो मजदूरी करती थी या फिर बकरियां चलाती थी। पिछले साल से हमारे ब्लॉक की 100 प्रतिशत बेटियां स्कूल जा रही हैं। हर योजना सरकार बनाए या बजट दे ऐसा बिल्कुल जरूरी नहीं है। हम सब भी अपने क्षेत्र के हिसाब से इस तरह की योजना बना सकते हैं।” वो आगे बताती हैं, ” लोग चंदा देंगे ऐसी इस अभियान की मांग नहीं थी लेकिन अभियान शुरू होने के बाद हम सबको लगा विद्यालय की शिक्षा से लेकर भवन निर्माण तक में सुधार की जरूरत है। शुरुवात कुछ लोगों ने की अब ये अभियान सभी का हिस्सा बन गया है। एक शिक्षा चौपाल में डेढ़ से दो लाख रुपए जमा हो जाते हैं।”
उड़ान अभियान के सक्रिय कार्यकर्ता ललित सिंह राव जो सरकारी शिक्षक हैं,इस अभियान में जुड़ने की वजह साझा करते हैं, “मेरी बड़ी बहन किन्हीं कारणों से पढ़ नहीं पायी, उनके शिक्षा न पाने का दर्द मुझसे देखा नहीं जाता,अब वो हम सबसे शिकायत करती है कि मुझे क्यों नहीं पढ़ाया गया। अपनी बहन को तो नहीं पढ़ा सका पर राजस्थान की तमाम बहनों को पढ़ाना चाहता हूँ जिससे वो शिक्षा से वंचित न रहे और मेरी बहन की तरह बाद में उनके मन में न पढ़ने का पछतावा नर हे।” ये बताते हुए वो फोन पर भावुक हो गये, “कई बार दिन में तीन से चार चौपालें लगती हैं,एक चौपाल में पूरी पंचायत के लगभग डेढ़ से दो हजार लोग शामिल होते हैं। अभियान का मुख्य उद्देश्य सौ प्रतिशत नामांकन,शिक्षा की गुणवत्ता,बेटियों का स्कूल में ठहराव,विद्यालय में उन्हें किसी तरह की कोई असुविधा न हो, इन चार बातों का पूरा ध्यान रखा जाता है।”