सतना (मध्य प्रदेश)। बहुत से युवाओं का सपना होता है कि वो आर्मी ज्वाइन करके देश की सेवा करें, लेकिन अगर सही राह नहीं मिलती तो बहुत से कम लोग आगे बढ़ पाते हैं। ऐसा ही इस गाँव में भी है, जहां पर युवा सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहते हैं, लेकिन इन्हें राह दिखाने वाला भी मिल गया है। तभी तो पिछले दो साल में कई युवाओं का आर्मी में चयन हो गया है।
इन युवाओं को राह दिखा रहे हैं 22 साल के दीपेंद्र सिंह, जिनकी खुद की उम्र तो अभी बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन हौंसला बड़ा है।
दीपेंद्र मध्य प्रदेश के सतना जिले में आने वाले गांव अटरा (उचेहरा) के निवासी हैं। वह जब सातवीं में थे तभी थ्रेसर में हाथ फंस गया था। इससे उनके बाएं हाथ की अंगुलियां कट गई। इसी वजह से उनका चयन सेना में नहीं हो सका और वह गांव के युवाओं को सेना के लायक बनाने में जुट गए।
दीपेन्द्र सिंह अपने बाएं हाथ की अंगुलियों को दिखाते हुए गांव कनेक्शन से बताते हैं, “बड़ा होते-होते यह सपना देखा था कि आर्मी में जाऊंगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। किसान परिवार का बेटा हूं तो खेती में भी मदद करता। एक दिन पिता जी को थ्रेसर में फसल काटते देखता था तो मैं भी थ्रेसर में फसल काटने लगा। थोड़ी देर में उसमें हाथ फंस गया। जिससे बाएं हाथ की तीन अंगुलियां कट गई। यह बात तब की है जब मैं कक्षा सातवीं में पढ़ता था। उम्र थी 12 साल। उस समय बहुत तकलीफ हुई। इलाज हुआ और सब ठीक चल रहा था।”
सेना भर्ती में चयन न होने के बाद लिया संकल्प
कक्षा सातवीं से ही दीपेंद्र ने आर्मी की तैयारी शुरू कर दी थी। वह दौड़ते और शरीर को चुस्त दुरुस्त रखने कसरत भी करते थे लेकिन उन्हें 12वीं कक्षा के दौरान भर्ती प्रक्रिया में फेल हो जाने के बाद पता चला कि वह कभी आर्मी में नहीं जा सकते। यह बात उनके दिल-दिमाग दोनों को झकझोर गई।
“कक्षा 12वीं (वर्ष 2017 में पढ़ रहे थे) पहुंचा तो आर्मी की भर्ती में गया। उस समय तक यह नहीं पता था कि मेडिकल अनफिट हो जाऊंगा। भर्ती अनूपपुर जिले (सतना ज़िला मुख्यालय से लगभग 250 किलोमीटर है) में थी वहां दौड़ तो निकल गया लेकिन मेडिकल जांच में अनफिट कर दिया गया। वहीं ऑन द स्पॉट फैसला कि मेरा चयन ना सही अपने गांव और आसपास के गांव के लड़कों को आर्मी के लिए तैयार करूँगा और तब से इसी पर लगे हुए हैं, “दीपेंद्र सिंह ने अपनी बातों में आगे जोड़ा।
काम आई बड़े भाई की प्रेरणा
हाथ की तीन अंगुलियों के कट जाने का कारण आर्मी की भर्ती के लिए अनफिट हुए दीपेंद्र का हौसला टूट चुका था। बड़े भाई ने न केवल हौसला अफजाई की बल्कि प्रेरणा भी दी।
दीपेंद्र बताते हैं, “भैया ने मेरी आर्थिक और मानसिक रूप दोनों से मदद की। वह कहते रहे कि आर्मी में न सही स्पोर्ट्स में भी संभावनाएं हैं। इसके बाद भी फिजिकल ट्रेनिंग भी दे सकते हो। तो फिर वही किया।”
सतना जिले के उचेहरा तहसील के गांव बिहटा की रघुवर शरण सिंह शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में बतौर अतिथि शिक्षक पदस्थ बड़े भाई ज्ञान सिंह (29 वर्ष) ने ‘गाँव कनेक्शन’ को बताया, “दीपेंद्र हमेशा से अपनी फिटनेस पर ध्यान देता था। इसलिए सबको लगा कि वह आर्मी में लिए सही रहेगा। हमारी आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं है कि कोचिंग वगैरह करें। लेकिन पिता जी और मैं मिलकर दीपेंद्र के लिए पैसों का इंतजाम करते रहे और उसे हिसार और रोहतक की स्पोर्ट्स एकेडमी में किसी तरह भेजा। ताकि उसने जो खोया उसमें से कुछ तो हासिल कर सकेगा।”
स्पोर्ट्स एकेडमी में 15 हज़ार रुपये महीने की फीस लगी
दीपेंद्र के पिता के पास वर्तमान में साढ़े चार एकड़ खेती की जमीन है। यह उनके परिवार के भरण पोषण का एकमात्र साधन है। इसलिए दीपेंद्र को स्पोर्ट्स एकेडमी भेजना जोखिम से भरा था लेकिन पिता और बड़े भाई ने मिलकर यह जोखिम उठाया।
पिता लाल मणि सिंह (55 साल) ने बताया, “खेती से सब कुछ चल रहा है। कई बार सब्जियां भी उगाई ताकि परिवार चल सके। इन्हीं सब से जो बचाया उसे सी दीपेंद्र की फीस दी। भाई ज्ञान सिंह ने बताया कि दीपेंद्र की स्पोर्ट्स एकेडमी का खर्च करीब 15 हज़ार रुपये का महीने का खर्च आता था।”
वो आगे कहते हैं, “वह जुलाई 2018 से अगस्त 2019 तक मिल्खा सिंह स्पोर्ट्स/एथलेटिक्स अकादमी हिसार में एथलेटिक्स और डिफेंस की ट्रेनिंग की। ट्रेनिंग कोच पवन सिंह लांबा की देखरेख में हुई। इसके अलावा अगस्त 2020 से मई 2021 तक रोहतक के श्री बाबा मस्त नाथ एथलेटिक्स सेंटर बोहर रोहतक में कोच संजीव नंदल की देख रेख में ट्रेनिंग की। वर्तमान में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से बीपीएड (बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन) की पढ़ाई कर रहे हैं।
किसान पिता भी गए थे भर्ती में लंबाई कम थी चयन नहीं हुआ
दीपेन्द्र के पिता ने भी सेना भर्ती के लिए प्रयास किया था लेकिन लंबाई से मात खा गए। यही टीस थी कि एक बेटे को आर्मी में भेजेंगे लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका।
पिता लालमणि सिंह ने आगे जोड़ते हुए कहते हैं, “विद्यार्थी जीवन के दौरान साथ में पढ़ने वाले 15-20 साथी सेना भर्ती के लिए गए थे। इसमें मैं भी शामिल था लेकिन मेरी लंबाई कम थी जिस कारण मैं बाहर हो गया। संकल्प लिया था कि एक न एक बेटे को सेना में भर्ती करूंगा लेकिन यह भी न हो सका।”
“देश के सेवा का विचार पिता जी राम सजीवन सिंह के कारण आया। पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। इस लिए मैं चाहता था कि देश की सेवा में यह पीढ़ी भी हो। मैं और मेरे बच्चे भी न जा सके, “लालमणि सिंह ने आगे कहा।
ट्रेनिंग बिल्कुल फ्री, मैदान के लिए आपस में करते हैं चन्दा
दीपेंद्र आसपास के गाँव के युवाओं को मुफ्त में ट्रेनिंग दे रहे हैं केवल मैदान की सफाई आदि के लिए आपस में चंदा इकठ्ठा करते हैं। ट्रेनिंग कैम्प अटरा गांव से करीब चार किलोमीटर दूर पिथौराबाद गांव के स्टेडियम में लगा रहे हैं। बाकी की जरूरतों की पूर्ति पिता खेती से अर्जित पैसों से करते हैं।
दीपेंद्र बताते हैं, “ट्रेनिंग तो बिल्कुल ही फ्री है। हाँ, मैदान की सफाई और मरम्मत के लिए आपस में चंदा कर लेते हैं। इसके अलावा कोई ट्रेनिंग फीस नहीं है।
पिता लालमणि सिंह ने कहा कि दीपेंद्र की कोचिंग में ट्रेनिंग बिल्कुल फ्री है। बाकी जो भी जरूरतें होती हैं वह मैं जो पैसा खेती से बचा लेता हूं उसी से पूरा करता हूँ।
2 सालों में 5 लड़कों का सेना में हुआ चयन, 40 और हो रहे तैयार
फिजिकल ट्रेनर दीपेंद्र हिसार और रोहतक से फिजिकल की ट्रेनिंग कर लौटे तो गांव में ही रह गए। पिछले सालों से अटरा गांव में ही रह रहे हैं।
“करीब-करीब दो साल हो गए अटरा, पिथौराबाद, अतरवेदिया, तुर्री, भर्री, मैहर और उचेहरा से भी युवा आ रहे हैं। तब से अब तक में 4 युवाओं का चयन आर्मी में हुआ। उनमें आशीष सिंह पोड़ी, अमितेश जैसवाल, अजय सिंह, प्रकाश सिंह और अनुराग कुशवाहा आदि का चयन हुआ है। वह इस समय ट्रेनिंग में। इसके अलावा मौजूदा समय में 40 युवा और तैयार हो रहे हैं।
आशीष सिंह ने टेलीफोन पर गांव कनेक्शन को बताया, “पहले केवल सड़क पर की दौड़ का अभ्यास करता था। बाद में पता चला कि दीपेंद्र भइया अलग तरह से फिजिकल ट्रेनिंग दे रहे हैं। तो मैंने उनकी फ्री कोचिंग जॉइन कर ली और आज मैं सेना में हूं।”