मध्य प्रदेश: आंवला मुरब्बा से पन्ना जिले के छोटे से गांव को मिली नई पहचान

कोरोना काल में जब दूसरे उत्पादों की बिक्री पर असर पड़ा, आंवला मुरब्बे की बिक्री इस समय बढ़ गई है।
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पन्ना (मध्यप्रदेश)। हीरे की खदान, मंदिरों और जंगलों के लिए मशहूर पन्ना जिला अब आंवले के मुरब्बों के लिए जाना जाने लगा है, एक छोटे से गाँव की भगवती यादव इन मुरब्बों से अपने साथ ही जिले का भी नाम कर रही हैं।

पन्ना जिले के छोटे से गाँव दहलान चौकी भगवती यादव (60 वर्ष) एक पैर से दिव्यांग हैं, लेकिन उनके मुरब्बा बनाने के हुनर ने उन्हें कमाई का जरिया भी दे दिया है।

भगवती की कामयाबी से गांव की अन्य दूसरी महिलाएं भी स्वावलंबी बनने की राह पर चलने के लिए प्रेरित हुई हैं। जिला मुख्यालय पन्ना से महज 10 किलोमीटर दूर पन्ना-अजयगढ़ मार्ग पर सड़क के किनारे दहलान चौकी गांव स्थित है। अब यह छोटा सा गांव आंवला मुरब्बा के लिए जाना जाता है। यहां निर्मित स्वादिष्ट और जायकेदार मुरब्बा को खरीदने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

सड़क किनारे “मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह का बोर्ड” लगा है, जिसकी अध्यक्ष भगवती यादव हैं। एक पैर से दिव्यांग होने के बावजूद काम के प्रति इनकी लगन व मेहनत देखने काबिल है। सड़क मार्ग के किनारे टेबल पर आंवला मुरब्बा के पैक डिब्बे रखकर उनकी बिक्री करते भगवती यादव अक्सर ही नजर आ जाती हैं। यहां से गुजरने वाले यात्री अपना वाहन रोककर आंवला मुरब्बा खरीदते हैं और अपने आगे के सफर पर निकल जाते हैं। घर के पास टेबल में सजी इस छोटी दुकान से ही कई क्विंटल मुरब्बा बिक जाता है।

भगवती यादव

भगवती यादव कहती हैं, “बड़ी-बड़ी मैडमें कार से आती हैं और यहां से मुरब्बा लेकर जाती हैं। कोरोना महामारी के इस दौर में भी आंवला मुरब्बा की मांग घटी नहीं, बल्कि बढ़ी है। लॉकडाउन के बावजूद घर से 15 कुंतल मुरब्बा बिका है।”

दहलान चौकी गांव में इस समूह ने आंवला मुरब्बा बनाने का काम लगभग दस साल पहले शुरू हुआ। समूह को मिली कामयाबी से प्रेरित होकर गांव की अन्य महिलाएं भी इस राह पर चल पड़ीं। फलस्वरुप दहलान चौकी गांव आंवला मुरब्बा के लिए जाना जाने लगा। मौजूदा समय इस गांव में 10 महिला स्वयं सहायता समूह हैं, जो आंवला मुरब्बा व आंवले से बनने वाले अन्य उत्पाद बनाते हैं। इन समूहों में सौ से भी अधिक महिलाएं काम करती हैं।

भगवती यादव के काम में हाथ बंटाने वाले उनके पति दशरथ यादव बताते हैं, “इस साल आंवले की फसल कमजोर थी। जंगल के आंवले लोग जल्दी तोड़ लेते हैं, जिनका उपयोग हम मुरब्बा बनाने में नहीं करते। किसानों के निजी आंवला बगीचों से आंवला खरीदते हैं। जिनकी तुड़ाई आंवला नवमी के बाद की जाती है।”

दशरथ यादव ने बताया कि अच्छे आंवला फलों की उपलब्धता पर निर्भर होता है कि कितना मुरब्बा बनेगा। हमारा समूह औसतन 30-40 क्विंटल मुरब्बा हर सीजन में तैयार करता है। मुरब्बा के अलावा आंवला अचार, आंवला कैंडी, आंवला सुपारी, आंवला चूर्ण व आंवले का रस भी हम तैयार करते हैं। समूह ने भोपाल, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद व त्रिमूल (केरल) में आंवला उत्पाद का प्रदर्शन मेलों में किया है, जहां कई पुरस्कार भी मिले हैं।

दशरथ यादव ने बताया कि आंवला मुरब्बा 150 से 160 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है।

सात समुंदर पार विदेशों में पहुंचेगा पन्ना का मुरब्बा

मध्य प्रदेश सरकार ने पन्ना के आंवला मुरब्बा को एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल कर लिया है।

पन्ना जिले के कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा बताते हैं, “शासन की यह परिकल्पना है कि औषधीय गुण वाले आंवले से बने मुरब्बे व अन्य उत्पादों को देश के साथ-साथ सात समुंदर पार विदेशों में भी भेजा जाये। जिले में 45 प्रतिशत जंगल है, यह जंगल जिले की 11 लाख 26 हजार आबादी के लिए वरदान है।”

पन्ना जिले के जंगलों में आंवला बहुतायत से पाया जाता है। आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश बनाने के लिए एक जिला एक उत्पाद योजना प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई है। इस योजना के तहत पन्ना जिले में आंवला उत्पाद को चुना गया है। कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्रा ने कहा कि आंवला उत्पाद से पन्ना की पहचान पूरे देश में स्थापित हुई है।

किसानों को आंवला लगाने किया जा रहा प्रेरित

सहायक संचालक उद्यान महेंद्र मोहन भट्ट ने गांव कनेक्शन को बताया कि किसानों को अपने खेतों व खाली पड़ी जगह पर आंवला के पौधे लगाने को प्रेरित किया जा रहा है। जंगल के अलावा निजी भूमि पर पांच सौ हेक्टेयर क्षेत्र में आंवला के बगीचे जिले में हैं। बड़ी संख्या में किसान अब खेतों में पौधरोपण भी कर रहे हैं।

उद्यान विभाग के अनुसार आंवले से बनने वाली सामग्री का उत्पादन जिले में बड़े पैमाने पर प्रारंभ करने की योजना तैयार की गई है। पन्ना जिले को सही अर्थों में आंवला जिला बनाने की दिशा में प्रयास शुरू किए गए हैं।

महेंद्र मोहन भट्ट ने बताया कि विभाग द्वारा महिलाओं को आंवला उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण भी दिलाया जा रहा है। प्रशिक्षण लेने वाली महिलाएं अपने घर में ही आंवला उत्पाद बनाकर आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन सकेंगी।

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