विलुप्त हो रही छोटी नस्ल की गाय पुंगनुर का संरक्षण कर रही आंध्र प्रदेश की ये गौशाला

आंध्र प्रदेश की पुंगनुर नस्ल की गाय दुनिया की सबसे छोटी गायों की नस्ल में शामिल है। गाय की इस नस्ल की कीमत लाखों में होती है।
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भारत में गायों की 50 देसी नस्लें हैं, हर एक नस्ल की अपनी खासियतें हैं, ऐसी ही एक विलुप्त होती नस्ल है पुंगनूर है, जो अपनी छोटे कद के लिए मशहूर है। इसी नस्ल का संरक्षण कर रहे हैं कृष्णम राजू।

आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के लिंगमपट्टी गाँव में 4 एकड़ में फैली पुंगनूरू गोशाला में पुंगनूर गायों में 300 से अधिक गोवंश हैं, जिसे करीब 15 साल पहले कृष्णम राजू ने एक गाय से शुरू किया था।

गोशाला शुरू करने के बारे में डॉ कृष्णम राजू बताते हैं, “शुरू से ही मुझे गायों से लगाव था, फिर मुझे पुंगनूर के बारे में पता चला। शुरू में एक गाय लेकर आया, जिसका गुंटूर के सरकारी फार्म पर कृत्रिम गर्भाधान (आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन) कराया था, उसके बाद फिर तो इनकी संख्या बढ़ने ही लगी।

वो आगे कहते हैं “पुंगानुरू एक प्राचीन नस्ल है, यह एक ऋषि-मुनि भी इस नस्ल को पालते थे, इस छोटी गाय को ज्यादा खिलाना भी नहीं होता, जबकि इसका दूध भी बढ़िया होता है। लेकिन धीरे-धीरे विदेशी नस्लों के आने के बाद से हमारी देश की पुरानी नस्ले विलुप्त होने लगी, उन्हीं में से एक पुंगानुर भी थी।”

केरल की वेचुर गाय भी दुनिया की छोटी गायों की नस्ल में शामिल है। वेचुर से पुंगानूर का अंतर समझाते हुए कृष्णम बताते हैं, “वेचुर की हाइट 3 से 4 फीट तक होती है, लेकिन पुंगानुर की ऊंचाई इससे भी कम होती है। हमारे यहां की गायों की ऊंचाई 1 से 2 फीट तक है।”

पुंगानुरू मुख्य रूप से दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले की नस्ल है, गाय की इस नस्ल का नाम दक्कन पठार के दक्षिण-पूर्वी सिरे पर स्थित चित्तूर जिले के पुंगनूर के नाम पर रखा गया है। पुंगनूर नस्ल के दूध में वसा की मात्रा अधिक होती है और यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है। गाय के दूध में सामान्य रूप से वसा की मात्रा 3 से 3.5 प्रतिशत होती है, जबकि पुंगनूरू नस्ल के दूध में 8 प्रतिशत वसा होता है।

गाय की औसत दूध उपज 3-5 लीटर/दिन होती है और यह एक दिन में लगभग 5 किलो चारा ही खाती हैं। इसकी सबसे अच्छी बात यह नस्ल सूखा प्रतिरोधी किस्म होती है, इसलिए दक्षिण भारत में इसे लोग पालते थे।

नस्ल सर्वेक्षण के आधार पर नस्लवार पशुधन जनसंख्या-2013 के अनुसार आंध्र प्रदेश में पुंगानुर गायों की संख्या सिर्फ 2,772 थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पुंगानुरू नस्ल के संरक्षण पर काम हो रहा है। जबकि साल 2019 में की गई 20वीं पशुधन‍संगणना और‍ एनबीएजीआर के अनुसार पुंगानुर गोवंश की संख्या 13275 है। यह देश में सबसे कम संख्या वाली गोवंश नस्लों में तीसरे नंबर है। सबसे कम संख्या वाली गायों की बात करें तो बेलाही नस्ल की गायों की संख्या सबसे कम 5264 है। दूसरे नंबर पर पणिकुलम (13934) तीसरे नंबर पर पुंगानुर (13275) चौथे पर वेचुर (15181) और पांचवे नंबर पर डागरी (15000) है।

आंध्र प्रदेश सरकार ने साल 2020 में पुंगानुर नस्ल के संरक्षण के लिए ‘मिशन पुंगानुरू’ शुरू किया है, जिसमें पांच सालों के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने इस परियोजना के कार्यान्वयन के लिए 69.36 करोड़ रुपये मंजूर किए है। वाईएसआर कडप्पा जिले का श्री वेंकटेश्वर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय इस पर काम कर रहा है।

कृष्णम के अनुसार उनकी गोशाला दुनिया की सबसे बड़ी पुंगानुरू नस्ल की गोशाला है। वो बताते हैं, “हमारे अभी 300 से ज्यादा गाय हैं यह दुनिया की सबसे छोटी की सबसे बड़ी पुंगनूर गोशाला है।”

पुंगानुर के छोटे कद की वजह से इसे काफी लोग पसंद करने लगे हैं। कृष्णम राजू बताते हैं, “ये पूरे देश में किसी भी राज्य में सर्वाइव कर सकती है, दिल्ली, यूपी, बिहार, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्यों के लोग भी लोग गाय ले गए हैं।”

गायों की कीमत के बारे में बताते हैं, “इसका एक जोड़ा 1 लाख से 25 लाख तक में बिकता है, जितनी छोटी गाय होगी, उतना ही ज्यादा इसका दाम होगा।”

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