तरुण चौहान की गाय को पिछले एक दो-दिनों से शरीर में कई सारी गांठें बन गईं हैं, जब उन्होंने डॉक्टर दिखाया तो पता चला कि उनकी गाय को लम्पी स्किन डिजीज नाम की बीमारी हो गई है।
46 वर्षीय तरुण चौहान उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पाली गांव के रहने वाले हैं। तरुण गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “अभी चार महीने पहले हरियाणा के करनाल की एक डेयरी से 51 हजार रुपए में साहिवाल गाय लाया हूं, एक दो दिन से उसकी शरीर में कई जगह पर गांठ जैसी बन गई है, इसलिए डॉक्टर को फोटो भेजी तो पता चला है कि यह तो लम्पी स्किन डिजीज है।”
तरुण चौहान को इस बात का भी डर है कि दो महीने पहले उनके गांव से कुछ ही दूर पर एक गाय की मौत इस लाइलाज बीमारी से हो गई थी।
यूपी के बागपत की तरह ही पिछले दो सालों में यह बीमारी तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक, केरल, असम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों में पशुओं में देखी गई है।
भारत में सबसे पहले ये बीमारी साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखी गई थी। इस वायरस का अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार पर दवा दी जाती है।
लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी होती है, जो गाय-भैंसों में होती है। लम्पी स्किन डिज़ीज़ में शरीर पर गांठें बनने लगती हैं, खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आसपास। धीरे-धीरे ये गांठे बड़ी होने लगती हैं और घाव बन जाता है। पशुओं को तेज बुखार आ जाता है और दुधारु पशु दूध देना कम कर देते हैं, मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है, कई बार तो पशुओं की मौत भी हो जाती है। एलएसडी वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे खून चूसने वाले कीड़ों से आसानी से फैलता है। साथ ही ये दूषित पानी, लार और चारे के माध्यम से भी फैलता है।
पिछले महीने सितंबर में उत्तराखंड उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर में डेयरी फार्म में गायों में इस बीमारी का लक्षण दिखा था, जिसके बाद पशुओं का सैंपल बरेली स्थित भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान में भेजा गया, जहां से इस बीमारी की पुष्टि हुई।
उधम सिंह नगर के जिला पशु चिकित्साधिकारी डॉ. गोपाल सिंह धामी बताते हैं, “पहली बार इसे उत्तराखंड में देखा गया है, हमारे करीब 250 गाय-भैंसों में इस रिपोर्ट किया गया था। यह वायरल डिजीज है, हो सकता है कि यह उत्तर प्रदेश के रास्ते यहां आया हो। हमने लक्षण के हिसाब से उनका इलाज किया था, अभी तो पशु ठीक हो गए हैं।
यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैल गई, साल 2015 में तुर्की और ग्रीस और 2016 में रूस जैसे देश में इसने तबाही मचाई। जुलाई 2019 में इसे बांग्लादेश में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, लम्पी स्किन डिज़ीज़ साल 2019 से अब तक सात एशियाई देशों में फैल चुकी है, साल 2019 में भारत और चीन, जून 2020 में नेपाल, जुलाई 2020 में ताइवान, भूटान, अक्टूबर 2020 वियतनाम में और नंवबर 2020 में हांगकांग में यह बीमारी पहली बार सामने आई।
जनवरी 2021 में इस बीमारी को तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में देखी गई थी। लम्पी स्किन डिजीज को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने नोटीफाएबल डिज़ीज़ घोषित किया है, इसके अनुसार अगर किसी भी देश को इस रोग के बारे में पता चलता है तो विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (ओआईई) को जल्द सूचित करें।
20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोधन (गाय-बैल) की आबादी 18.25 करोड़ है, जबकि भैंसों की आबादी 10.98 करोड़ है। जो कि दुनिया में पहले नंबर पर है। देश की एक बड़ी आबादी पशुपालन से जुड़ी है, ऐसी बीमारी से पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के पशु रोग अनुसंधान और निदान केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ केपी सिंह इस बीमारी के बारे में बताते हैं, “पूरे देश में इस बीमारी को रिपोर्ट किया जा रहा है, अगर यूपी की बात करें तो सुलतानपुर और जौनपुर जिलों से भी सैंपल आए, वहां पर भी इसकी पुष्टि हुई है।”
वो आगे कहते हैं, “यह एलएसडी कैप्रीपॉक्स (Capripox) से फैलती है, अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है, क्योंकि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल जाती है।”
लम्पी स्किन डिजीज से बचने के उपाय के बारे में वो कहते हैं, “अभी तक इस बीमारी का टीका नहीं बना है, लेकिन फिर भी ये बीमारी बकरियों में होने वाली गोट पॉक्स की तरह ही है, इसलिए अभी गाय-भैंस को भी गोट पॉक्स का टीका लगाया जा रहा है, जिसका अच्छा रिजल्ट भी आ रहा है। इसके साथ ही दूसरे पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए संक्रमित पशु को एकदम अलग बांधें और बुखार और लक्षण के हिसाब से इलाज कराएं।”
“आईवीआरआई में इस बीमारी से बचने का टीका बनाया जा रहा है, आने वाले एक साल में इसका टीका आ सकता है, “उन्होंने आगे बताया।