लखनऊ। पशुओं को लेकर जारी हुई 20वीं पशुगणना के मुताबिक भारत में घोड़े, गधे और खच्चरों की संख्या में भारी गिरावट आई है। पिछले सात साल (2012-19) में इनकी संख्या में 6 लाख की कमी दर्ज की गई है।
बढ़ते मशीनीकरण, आधुनिक वाहन और ईट-भट्ठों में काम न मिलने की वजह से लोगों ने इन्हें पालना कम कर दिया है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में गधे की संख्या इसलिए घट रही है क्योंकि चीन में गधों की खाल की मांग तेजी से बढ़ रही है। उनका कहना हैं कि चीन में पारंपारिक दवा बनाने में इनका प्रयोग किया जाता है।
देश में हर छह साल में पशुओं की गणना होती है। पशुगणना 2019 में के मुताबिक देश में 5 लाख 40 हज़ार अश्व (घोड़े, टट्टू,गधे और खच्चर) हैं, जिनकी संख्या पशुगणना 2012 में 11 लाख 40 हजार थी। यानि पिछले सात साल में इनकी संख्या में 51.9 फीसदी की गिरावट आई है, जो कि संख्या में 6 लाख है।
भारत के कई राज्यों में पशु मेले लगते हैं, जिसमें लगातार घोड़े, गधे और खच्चरों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के देवा में इनकी घटती संख्या का नजारा साफ देखा जा सकता था। देवा मेले में अपने खच्चरों को बेचने आए राजकुमार (60 वर्ष) हाथों के इशारे से बताते हैं “इस मेले में अब सिर्फ चार आने ही पशु आते हैं। आज से दो-तीन साल पहले मैदान भरा रहता था। बस पिछली साल की तरह इस साल जानवर वापस न ले जाने पड़ें क्योंकि धीरे-धीरे इनकी खरीद-बिक्री कम हो रही है।”
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बाराबंकी जिले के देवा में हाजीवारिस अली शाह के पिता कुर्बानअली शाह की याद में हर साल मेला लगता है। इस मेले के शुरू होने के एक हफ्ते पहले ही यहां घोड़े, गधे और खच्चरों का बड़ा बाजार सज जाता है, जिसकी खरीद-बिक्री के लिए दूर-दराज से व्यापारी आते हैं। राजकुमार भी एक व्यापारी हैं जो इस बार 22 खच्चर लेकर आए थे लेकिन अभी तक उनके 5 खच्चर ही बिक पाए।
राजकुमार बताते हैं, “पहले ईंट-भट्ठों पर काम मिल जाता था लेकिन अब वहां ज्यादातर ट्रैक्टर ट्रॉली का इस्तेमाल होता है और गाँवों में भी बुग्गी अब कम हो गई है, लोग ई-रिेक्शा से ही आते जाते हैं।” राजकुमार समेत इसको पालने वाले लाखों परिवारों के लिए भी इनकी घटती संख्या चिंता का विषय है। ज्यादा गरीब परिवार टट्टू, गधे और खच्चर पालते हैं लेकिन इनकी संख्या में लगातार गिरावट आ रही है।
20 वीं पशुगणना के मुताबिक देश में घोड़े और टट्टू की संख्या 3 लाख 40 हज़ार है जो पहले 6 लाख 40 हज़ार थी। वहीं खच्चरों की संख्या 80 हजार रह गई है जो पहले 2 लाख है। रिपोर्ट के मुतबिक गधों की संख्या में भारी कमी आई है देश में 2019 की पशुगणना के मुताबिक गधों की संख्या एक लाख 20 हजार है जो पहले 3 लाख 20 हजार थी।
देवा मेले में आए लखनऊ जिले के इंदिरा नगर में रहने वाले बाबू कुमार बाल्मीकि पिछले कई वर्षों से इस मेले में आ रहे हैं। बाल्मीकि बताते हैं, “जब मैं छोटा था तब से इस मेले में खच्चर बेचने आ रहे हैं। बाजार में अब लोग खरीदने नहीं आते है और इनको पालने का काम भी कम हो गया। इसलिए बिक्री भी कम होती है।”
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आधुनिक वाहन के अलावा लगातार घट रही चरागाह की जमीन और महंगे चारे की वजह से भी अब लोग इनको पालने से कतराने लगे है। लखनऊ जिले के गांधीनंगर गाँव से आए जगराज बताते हैं, “पहले हमारे गाँव में ही एक परिवार के पास 15 पशु थे लेकिन अब सिर्फ 4 से 5 पशु ही है क्योंकि उनको चराने के लिए जमीन है लोगों ने खेतों में ब्लेड वाले तार लगा रखें चरते-चरते पशु घायल हो जाते है। बाजार में भूसा, चोकर महंगा हो गया है।”
ज्यादा गरीब परिवार अश्व पालन व्यवसाय से जुड़े हुए है। इन परिवारों को अश्व में होने वाली बीमारियों और उनके रख-रखाव के लिए जागरूक करने के भारत में ब्रुक संस्था बड़ी भूमिका निभा रही है। इस संस्था में लखनऊ जिले में वरिष्ठ पशुचिकित्साधिकारी के पद पर काम कर रहे डॉ मनीष राय बताते हैं, “घोड़े गधे खच्चरों की संख्या लगातार घट रही है क्योंकि अब इनके कई विकल्प आ गए है। तांगों की जगह ई-रिक्शा आ गया है। पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर कई ईंट-भट्ठे बंद हो गए और जहां है वहां ज्यादातर ट्रैक्टर ट्रॉली का प्रयोग होता है, जिससे इनको काम मिलने में दिक्कत होती है।”
अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ राय ने आगे कहा, “पहाड़ी क्षेत्रों में टट्टू और खच्चरों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अब धीरे-धीरे वहां भी संख्या घट रही है। रास्ते बन रहे तो गाड़ियां आसानी से चली जाती है।” आंकड़ों के मुताबिक खच्चरों की संख्या में जम्मू कश्मीर में 54 फीसदी, उतराखंड में 2 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 12 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 59 फीसदी गिरावट आई है।