लखनऊ। आए दिन सुनने में आता है कि ब्राजील में भारतीय गाय तीस लीटर दूध दे रही है, वही गायें जल्द ही स्वदेश वापस आकर अपने पूर्वजों की नस्ल सुधारेंगी।
ब्राजील में सौ साल पहले भारतीय गायों भेजा गया था, जब ये गायें ब्राजील पहुंची, तो वहां लोगों को अहसास हुआ कि इन गायों मे कुछ खास बात हैं और वे दुग्ध उत्पादन का बेहतर स्रोत हो सकती हैं। भारतीय नस्ल की ये गाय दुनिया की सबसे नंबर गाय बन गई है। अब ये गाय भारत लौटकर अपने पूर्वजों की नस्लों को सुधारेंगी।
हाल ही में ब्राजील के उबराबा में आयोजित एक्सपो जेबू में कामधेनु शाला का उद्घाटन किया गया। इसका उद्घाटन ब्राजील के राष्ट्रपति मिशेल तेमेर ने किया। इस मौके पर हरियाणा के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ भी रहे।
उन्होंने इस कार्यक्रम कहा कि ब्राज़ील ने 1850 से भारतीय गिर, रैड सिंधी, कांकरेज, नैलोरी, ओंगले, पुंगानूर, कांगायम नस्लों को 1850 से ब्राजील ले जाना प्रारंभ किया तथा 1960 तक यह क्रम चलता रहा। ब्राज़ील ने इन पर कार्य करते हुये, इन्हें विकसित किया। अब ये गाय भारत लौटकर अपने पूर्वजों की नस्लों को सुधारेगी।
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हमारी गाय दूध मे 75 लीटर प्रतिदिन तक देने में विकसित हैं। ब्राज़ील की आबादी बीस करोड़ है, ब्राज़ील में गोधन की आबादी भी बीस करोड़ है। भारतीयों के हैरान करने वाला आंकड़ा ये है कि इनमें 17 करोड़ भारतीय नस्ल की हैं।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 19 करोड़ गोपशु हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत विदेशी नस्ल की गायें हैं जबकि 80 प्रतिशत देसी नस्ल की। देश में कुल दूध उत्पादन में विदेशी नस्ल की गायों का योगदान 80 प्रतिशत हैं, जबकि देसी नस्ल का 20 प्रतिशत है।
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इसके साथ ही एबीसीजेड ब्राज़ील के साथ हरियाणा पशुपालन विभाग की और ब्राज़ील मे विकसित भारतीय नस्लों का हमारी नस्लों के सुधार के लिए उत्कृष्टता केंद्र खोलने व उनके सीमन, सैक्सड सीमन, जैनेटिक मैटेरियल को हरियाणा में नस्ल सुधार के लिए हरियाणा लाने के आश्यपत्र पर हस्ताक्षर भी हुए। हरियाणा की ओर से पशुपालन मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ व ब्राज़ीलियन गाय ब्रीडर एसोसिएशन के अध्यक्ष की ओर से निदेशकों जैबरियल गरेशिया, रिवालडो मैचाडो, अडवारडो फालकावो ने हस्ताक्षर किए।
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