मोहाली (पंजाब)। भारत दूध के उत्पादन में नंबर एक है। लेकिन यहां पिछले कई वर्षों से किसान दूध के रेट के लिए परेशान हैं। कामधेनु समेत कई डेयरी परियोजनाएं खुलने के कुछ दिनों बाद ही बंद हो जाती हैं। सिर्फ भारत ही नहीं, अमेरिका और न्यूजीलैंड तक में छोटे डेयरी फार्म बंद हो रहे हैं। यूरोपियन देश जर्मनी में उस वक्त हंगामा खड़ा हो गया था जब एक किसान ने डेयरी फार्म बंद करके बीयर फैक्ट्री खोल ली थी। डेयरी सेक्टर की समस्याओं को लेकर गांव कनेक्शन से देश के जाने-माने निर्यात एवं खाद्य नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा से बात की।
“अमेरिका में पिछले 10 वर्षों में 30 हजार डेयरी फार्म बंद हुए हैं। ब्रिटेन में भी पिछले 3 वर्षों में बहुत सारे छोटे किसानों को नुकसान के चलते डेयरी बंद करनी पड़ी। जर्मनी में तो किसान ने डेयरी फार्म को बंदकर बीयर फैक्ट्री खोल ली थी। सच्चाई यही है कि भारत समेत पूरी डेयरी सेक्टर में नुकसान हो रहा है।” देविंदर शर्मा कहते हैं।
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भारत, अमेरिका, जर्मनी, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया दूध कारोबार में बड़े नाम हैं। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादन करता है। हालांकि प्रति पशु दूध के उत्पादन मामले में भारत की स्थिति खराब है। भारत में करीब 8 करोड़ परिवार दुग्ध व्यवसाय से जुड़े हुए है, इनमें भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों की संख्या सबसे अधिक है। पिछले कुछ वर्षों से किसान लगातार दूध की कीमतें बढ़ाने की मांग करते रहे हैं। महाराष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश और राजस्थान तक के किसान सड़क पर उतर चुके हैं।
देविंदर शर्मा कहते हैं, “भारत हो या कोई दूसरा देश हर जगह इस पर जोर रहा कि ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हो। गाय-भैंसों को मशीन बना दिया गया था। दूध उत्पादन के अनुपात में मार्केट नहीं खोजी गई। कहने का मतलब उसके प्रोसेसिंग पर जोर नहीं दिया गया। इसलिए ज्यादातर देशों में समस्या हो रही।’
देश में डेयरी उद्योग करीब 6 लाख करोड़ रुपए का है और महज एक लाख करोड़ ही संगठित क्षेत्र में है, बाकी असंगठित है। असंगठित क्षेत्र में दूध की कीमत संगठित क्षेत्र की तुलना में काफी कम होती है। संगठित क्षेत्र में सिर्फ 20 फीसदी दूध की खपत होती है।
“हालात न्यूजीलैंड में भी खराब हैं। ऑस्ट्रेलिया में तो डेयरी से जुड़ा बड़ा कॉपरेटिव बंद हो गया है, बाद में शायद उसे बेचना तक पड़ा। अमेरिका ने थोड़ी समझदारी दिखाई और जब ज्यादा दुग्ध उत्पादन हुआ तो किसानों ने कहा गया कि वो चीज बनाए, जिसे सरकार खरीद लेगी। अमेरिका ने इस चीज को सप्लेमेंटरी न्यूशन प्रोग्रोम के तहत स्कूलों में सप्लाई किया। लेकिन भारत के मौजूदा हालात ये संभव नहीं दिखता।” देविंदर शर्मा आगे जोड़ते हैं।
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भारत में जैसे पब्लिक वितरण प्रणाली (पीडीएस सिस्टम यानि राशन कोटा) है वैसे ही अमेरिका में सप्लेमेंट्री न्यूटिशन प्रोग्राम चलाया जाता है।
डेयरी सेक्टर की बढ़ती मुश्किलों पर बात करते हुए देविंदर शर्मा कहते हैं, “डेयरी सेक्टर में अब बड़ी कंपनियां उतर गई है। बड़े-बड़े फार्म खुल रहे हैं। छोटे फार्म सिकुड़ रहे हैं। किसान घाटा उठा रहे। अमेरिका–यूरोप की सुपर मार्केट चेन उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत पर डेयरी प्रोडक्ट दे रही हैं, लेकिन इसका खामियाजा आम किसानों को उठाना पड़ रहा है।”पिछले चार सालों के दौरान भारत के दूध उत्पादन में 6.4 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 की बात करें तो देश में 176.3 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ। भले ही देश का डेयरी उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन उसकी तुलना में किसानों की आमदनी बढ़ने की बजाए लगातार घट रही है।