करनाल (हरियाणा)। अक्सर पशुपालक यह शिकायत करते हैं कि उनके पशु कम चारा खाते हैं, कम दूध देते हैं जबकि वह देखने में स्वस्थ होते हैं। पशुओं में इस तरह के लक्षण तब दिखाई देते हैं जब उनके शरीर में किलनी, जूं और चिचड़ का प्रकोप होता है।
भारत में खासकर दुधारू पशुओं में किलनी, जूं और चिचड़ी जैसे परजीवियों प्रकोप बढ़ता जा रहा है। ये परजीवी पशुओं का खून चूसते हैं, जिससे पशु तनाव में आ जाते हैं। कई बार उनके बाल झड़ जाते हैं। समस्या ज्यादा दिनों तक रहने पर पशु बहुत कमजोर भी जाते हैं। कई बार पशुओं के बच्चों (बछड़े-पड़वा आदि) की मौत तक हो जाती है।
इन समस्याओं से बचने के लिए पशुपालक कई रासायनिक दवाओं का उपयोग करते हैं, लेकिन उनका भी प्रतिकूल असर पड़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए कुछ किसान देसी तरीके भी अपनाते हैं। जो काफी कारगर भी हैं। ऐसे ही एक तरीका राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के सहयोग हरियाणा में किसान आजमा रहे हैं।
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राष्ट्रीय डेयरी अनुंसधान संस्थान में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. के. पोन्नुसामी कहते हैं, “पूरे भारत में दुधारु पशुओं में किलनी और चिचड़ की समस्या है। इसका असर उनकी सेहत और दूध उत्पादन पर पड़ता है। इसमें नीम और माला पौधों की पत्तियों का घोल काफी कारगर है। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन और राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) की मदद से हरियाणा राज्य के तीन जिलों में इस घोल का इस्तेमाल किया जा रहा है।”
किलनी (टिक) छोटे बाह्य-परजीवी (जूं, चिचड़) होते हैं, जो पशुओं के शरीर पर रहकर उनका खून चूसते हैं, जिससे पशुओं में तनाव हो जाता है, जिसका सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है।
किलनी को खत्म करने के लिए तैयार किए गए घोल की विधि के बारे में एनडीआरआई के जूनियर रिसर्च फेलो असलम बताते हैं, “इस घोल को तैयार करने के लिए ढाई किलो नीम की पत्ती को चार लीटर पानी में और माला प्लांट (निरर्गुंडी) की दो किलो पत्ती को एक लीटर पानी में उबालना है फिर 12 घंटे तक इसको रख देना है।”
घोल की प्रक्रिया को जारी रखते हुए असलम कहते हैं, “12 घंटे रखने के बाद नीम और माला के घोल को छानकर नौ लीटर पानी में मिलाकर घोल को तैयार कर लिया जाता है। इस घोल को गाय-भैंस के ऊपर तीन दिन तक सुबह और शाम स्प्रे करना है। हमारे द्वारा प्रयोग में यह देखा गया कि 80 से 85 फीसदी किलनी खत्म हो जाती हैं।”
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माला प्लांट (निरर्गुंडी) को हर राज्य में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे संभालू/सम्मालू, शिवारी, निसिन्दा शेफाली, सिन्दुवार, इन्द्राणी, नीलपुष्पा, श्वेत सुरसा, सुबाहा, निनगंड जैसे नामों से जाना जाता है। माला प्लांट के एक डंठल में तीन या पांच पत्तियां होती है।
इस घोल का इस्तेमाल कर रहे हरियाणा राज्य के करनाल जिले के कुटेल गाँव में रहने वाले मुल्तान सिंह बताते हैं, “गर्मियों में हर पशु को चिचड़ लग जाते हैं, लेकिन इस बार डॉक्टरों ने स्प्रे किया उसके बाद से काफी कम हो गए हैं। अब इसी का प्रयोग कर रहे हैं। पिछले साल चिचड़ लगने से एक पशु मर भी गया था।” राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के मुताबिक इन परजीवियों के लगने से भैंस के बच्चों में तीन महीने की उम्र तक 33 प्रतिशत पशुओं की मौत हो जाती है।
राष्ट्रीय डेयरी अनुंसधान संस्थान में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. के. पोन्नुसामी आगे कहते हैं, “ज्यादातर पशुपालक किलनी को हटाने के लिए वेटनरी डॉक्टर की सलाह से दवाई लगा देते हैं, लेकिन 15 दिन में वह किलनी फिर से लग जाती है। इसमें किसान का पैसा भी खर्चा होता है और एक ही दवा को बार-बार प्रयोग करने पर उसमें रेजीटेंट होता है। ऐसे में नीम की पत्ती और माला प्लांट को मिलाकर एक घोल तैयार किया जिससे तीन दिन में ही किलनी खत्म हो जाती है।”
ऐसे बनाए घोल
- ढाई किलो नीम की पत्तियां 4 लीटर पानी में उबालें।
- 12 घंटे बाद पत्तियां निकालकर फेंक दे, पानी रख लें।
- 2 किलो निर्गुण्डी (माला) की पत्तियों को 1 लीटर पाने में उबालें।
- 12 घंटे बाद पत्तियां हटाकर उसे छानकर रख लें।
- दोनों को मिलाकर बना घोल एक डिब्बे में रख लीजिए।
- 9 लीटर पानी और 1 लीटर घोल मिलाइए दवा तैयार कीजिए।
- पानी मिले घोल को पशुओं के प्रभावित हिस्सों पर छिड़काव करें।
- 3-4 दिन सुबह शाम छिड़काव करने से पशुओं को आराम मिलेगा।
डेयरी में गंदगी से फैलता है रोग
- पशुशालाओं में गंदगी होने से इन किलनियों की संख्या में लगार इजाफा होता है। किलनियों के रोकथाम के बारे में करनाल जिले में पशुचिकित्सक डॉ हरिओम शर्मा बताते हैं, “किलनी और चिचड़ ज्यादातर सीलन और अंधेरे वाली जगह पर रहती है और जहां पशुओं को बांधा जाता है वहां पर कई बार मिट्टी गोबर या चारा इकट्ठा रहता है तो किलनी वहीं अंडे दे देती है। इसलिए साफ-सफाई पर ज्या ध्यान देना चाहिए जहां पशु बैठते है उसको सूखा रखना चाहिए।”
पशुओं में किलनी से बचाव के लिए इन बातों को रखें ध्यान
- कई बार किसान पशुओं को नहलाने के दौरान उसको निकाल देते है और उसको नाली में डाल देते है या ऐसे ही छोड़ देते हैं। लेकिन वह दोबारा से पशुओं में चढ़ जाते हैं। इसलिए उसको मार दें।
- अगर आप पशु को खरीद कर ला रहे हैं और बाड़े में लाने से पहले यह देख लें कि उनमें किलनी, जूं या चिचड़ न लगे हो।
माला प्लांट (निरर्गुंडी) को हर राज्य में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। माला प्लांट के एक डंठल में तीन या पांच पत्तियां होती है।
- नीम और माला दो ऐसे पौधे है जिनके घोल को निकाल कर अगर सुबह शाम स्प्रे करते है तो तीन दिन में टिक्स की संख्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- फर्श और दीवारों को भी कास्टिक सोडा के घोल से साफ करना चाहिए ।
- लक्षण
- पशुओं में खुजली एवं जलन होना।
- दुग्ध उत्पादन में कमी आना।
- भूख कम लगाना।
- चमड़ी का खराब हो जाना।
- बालों का झड़ना।
- पशुओं में तनाव और चिड़चिड़ापन का बढ़ना आदि।
- कम उम्र के पशुओं पर इनका प्रतिकूल प्रभाव ज्यादा होता है।
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