आमदनी आज के दौर में किसानों और पशुपालकों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। लेकिन हम खुद आमदनी के बढ़ाने के लिए क्या करते हैं, पूछने पर ज्यादातर किसान और पशुपालक रटारटाया जवाब देते हैं, “हमें यही पता था, हमने वही किया।” लेकिन कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले लोग कहते हैं हम बदलाव की जरुरत है।
कहा जाता है जब खेती से आपेक्षित मुनाफा न मिले तो पशुपालन से पैसा कमाना चाहिए। लेकिन उसके लिए जरुरी है हम जो गाय-भैंस या बकरी पाल रहे हैं उन पर पूरा फोकस करें। पशुओं की अच्छी देखभाल करें और उन्हें अच्छा चारा-पानी दें। हरियाणा के सुल्तान भैंसे के बारे में देश अक्सर चर्चा होती है, चर्चा उसकी करोड़ों रुपए की कीमत और हर साल होने वाली लाखों रुपए कीमत को लेकर होती है। लेकिन अगर इस भैंसे के मालिक कैथल जिले के बूढाखेडा गांव के नरेश बेनिवाल से पूछिए वो अपने बच्चों की तरह इसकी सेवा करते हैं।
नरेश बेनिवाल बताते हैं, “सुल्तान की रोजाना की खुराक पर करीब 2500 रुपए रोज खर्च होते हैं। सुबह शाम टहलाता हूं और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखता हूं।” कहने का लब्बेलुआब ये है कि पशुओं से कमाना है तो उनकी सेहत का पूरा ख्याल रखें, जो पशु चारे-पानी, दवा और रखरखाव का ध्यान रखते हैं वो दूध, मांस और अंडे हर तरह से कमाई करते हैं।
सुल्तान की रोजाना की खुराक पर करीब 2500 रुपए रोज खर्च होते हैं। सुबह शाम टहलाता हूं और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखता हूं। तब जाकर उससे कमाई होती।
नरेश बेनिवाल, मालिक सुल्तान (भैंसा) हरियाणा
पिछले 40 वर्षों से पशुओं पर काम कर रहे विशेषज्ञ मोहन जे सक्सेना बताते बताते हैं, ” दुनिया भर में जितने पशु हैं, उनमें से आधे हमारे देश में है। दूध उत्पादन में भी भारत अव्वल है, लेकिन जितने पशु हैं उस अनुपात में दूध नहीं होता। जिसकी वजह है, उनका सही से ध्यान न रखा जाना। यही हाल गाय-भैंस के अलावा दूसरे पशुओं का भी है।”
मोहन जे सक्सेना की बातों पर गौर करना है तो देश के किसी गांव जाकर देखिए। कुछ जागरुक पशु पालकों और डेयरी वालों को छोड़ दिया जाए तो बाकी लोग पशुओं को खास तवज्जो नहीं देते। रुखा सूखा चारा और गंदगी के बीच रखना पशुओं की नीयत सा लगता है। जिसके चलते पशु कुपोषण और बीमारियों का शिकार हो जाता है। इनमें से कुछ बीमारियां जैसे गलाघोंटू, खुरपका, मुंहपका, थनैला, पोकनी, झेर का रुकना आदि इतनी गंभीर है कि पशु की जान जा चली जाती है, क्योंकि इनका वक्त पर टीकाकरण नहीं होता है।
हमारी कोशिश जनचेनता के माध्यम से ऐसी प्रणाली विकसित करने की है कि पशु बीमार ही न हो। इसलिए जरुरी है वैज्ञानिक विधि से पशुपालन, 1- आहार अच्छा हो, 2- पशु स्वस्थ हो और तीसरा साफ सफाई।
मोहन जे सक्सेना, एमडी, आयुर्वेट और पशुधन विशेषज्ञ
पशुओं के लिए आयुर्वेदिक दवाएं बनाने वाली कंपनी आयुर्वेट के प्रबंध निदेशक मोहन जे सक्सेना किसानों को जागरुक करने पर जोर देते हुए कहते हैं, “पशुओं में दो तरह की समस्याएं प्रमुख हैं। एक वो बीमारियां जो विषाणुओं से होती हैं जैसे खुरपका-मुंहपका आदि, जबकि दूसरी वो समस्याएं होती हैं जो पशु को सही ध्यान न रखने पर होती हैं। इसलिए हमारी कोशिश जनचेनता के माध्यम से ऐसी प्रणाली विकसित करने की है कि पशु बीमार ही न हो। इसलिए जरुरी है वैज्ञानिक विधि से पशुपालन, 1- आहार अच्छा हो, 2- पशु स्वस्थ हो और तीसरा साफ सफाई।'” (देखिए वीडियो)
इसके साथ ही पशु का अच्छी नस्ल का होना और लगातर उसका बच्चे देना भी जरुरी है। इसका भी सीधा संबंध पशुओं की सेहत से है। कमजोर पशु के गर्भाधान में दिक्कत आती है तो बच्चे देने के बाद वो पर्याप्त दूध नहीं देती है। ऐसे में जैसे मनुष्यों के फूड सप्लीमेंट हैं वैसे ही पशुओं के लिए कई कंपनियां अच्छे चारे और उनकी सेहत से जुड़ी दवाइयां बना रही हैं। इनमें भी औषधीय दवाइयों की मांग तेजी से बढ़ी है। (देखिए वीडियो)
पिछले 25 वर्षों से पशुओं के लिए आयुवैदिक दवाइयां बना रही डाबर ग्रुप की कंपनी आयुर्वेट के मुताबिक दुनियाभर में सेफ फूड को लेकर जागरुकता तेजी से बढ़ी है। लोग सेहतमंद खाना चाहते हैं, चाहे वो दूध मांस हो या अंडा। विदेशों में ये जागरुकता काफी है लेकिन भारत में भी लोग सचेत हुए हैं। आयुर्वेट पिछले 25 वर्षों से लहसुन, अश्वगंधा और तुलसी आदि जड़ी बूटियों दवाएं बना रहा है जो सदियों से भारत में इस्तेमाल की जा रही है, जिनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।
पशुओं का सेहतमंद और अच्छा खाना-पानी हमारे लिए इसलिए जरुरी है क्योंकि वो सीधे हमारी सेहत पर असर डालता है। ‘सेंटर फॉर डिजीज डायनैमिक्स, इकनॉमिक्स एंड पॉलिसी के वाशिंगटन डीसी और नई दिल्ली के डायरेक्टर, रामानन लक्ष्मीनारायण की अगुवाई में किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि भारतीय पोल्ट्री फार्म में एंटीबायोटिक्स को चूजों को बढ़ाने और बीमारी से दूर रखने के लिए नियमित तौर पर दिया जा रहा है। पोल्ट्री फार्मों में प्रयोग होने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल में भारत मौजूदा समय में चौथे स्थान पर है। अगर पोल्ट्री उद्योग मंव ऐसे ही अंधाधुंध एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल होता रहा तो वर्ष 2030 तक भारत एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल में पहले पायदान पर होंगे।
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उत्तर प्रदेश में पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. वीके सिंह (तत्कालीन) कहते हैं, “हमारे पशुपालक पशुओं की उतना ख्याल नहीं रखते। अब पेट के कीड़ों का ही ले लो, कई पशुओं को इससे मौत हो जाती है, जबकि इसका असर दूध उत्पादन पर पड़ता है। ये समस्या दुधारु पशुओं के सड़ा-दला खाने और पोखर तालाब का गंदा पानी पीने से होती है, अगर सही समय पर इनका इलाज हो जाए तो पशु को बचाया जा सकता है।” (खबर मूल रुप से साल 2018 में गांव कनेक्शन अख़बार में प्रकाशित हुई थी)