मखाने की खेती की पूरी प्रक्रिया समझ लीजिए, तालाब नहीं खेत में उगा सकते हैं इसकी फसल

आप में से सभी ने मखाना से बना स्वादिष्ट कोई न कोई व्यंजन जरूर खाया होगा। यह खाने में जितना स्वादिष्ट लगता है, उतना ही इसकी खेती मुश्किल और मेहनत वाली होती है।

Update: 2024-06-28 06:31 GMT

साल 2002 में दरभंगा, बिहार के करीब बासुदेवपुर में राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना की गयी। इस केंद्र का मकसद था मखाना की खेती को वैज्ञानिक ढंग से करना। यह अनुसंधान केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत काम करता है। छोटे छोटे कांटे की बहुलता की वजह से मखानों को कांटे युक्त लिली भी कहा जाता है।

देश में लगभग 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती होती है, जिसमें 80 से 90 फीसदी उत्पादन अकेले बिहार में होता है। इसके उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सा सिर्फ मिथिलांचल का है। लगभग 120,000 टन बीज मखाने का उत्पादन होता है, जिससे 40,000 टन मखाने का लावा प्राप्त होता है।

मखाना के निर्यात से देश को हर साल 25 से 30 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। व्यापारी बिहार से मखाना को दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भेजते हैं।परंपरागत मखाने की खेती में कृषि रसायनों का प्रयोग न के बराबर होता है, जिसकी वजह से इसे ऑर्गेनिक भोजन भी कहा जाता है। बहुत कम ही ऐसी चीजें होती हैं जो स्वाद के साथ-साथ आपकी सेहत का भी ध्यान रखे। ऐसे में मखाना आपके लिए एक वरदान साबित हो सकती है।

आइए जानते हैं मखाने में पाए जाने वाले कुछ पौष्टिक तत्वों के बारे में

मखाना में प्रोटीन 9.7%, कार्बोहाइड्रेट 76%,नमी 12.8%,वसा 0.1%, खनिज लवण 0.5%,फॉस्फोरस 0.9%,लौह पदार्थ 1.4 मिली ग्राम प्राप्त होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मखाना खाने से हार्ट-अटैक जैसे गंभीर बीमारियों से हम बच सकते हैं। जोड़ों के दर्द में लाभकारी है। क्योंकि मखाने में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है। इसको रोजाना खाने से गठिया एवं जोड़ों के रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। पाचन में मददगार होता है, इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट होती है जिससे इसे आसानी से पचाया जा सकता है।

मखाना का सेवन किडनी के लिए लाभकारी होता है, इसका सेवन स्प्लीन को डिटॉक्सिफाई करता है। इसे रोजाना खाने से किडनी को बहुत लाभ मिलता है। महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान मखाने का सेवन रोजाना करने से लाभ मिलता है।


जानकारों की मानें तो मखाना पाचन में सहायक होती है। प्रेगनेंसी के दौरान शरीर को पौष्टिक आहार की जरुरत होती है जिस कारण यह बहुत लाभकारी है। इसे आप प्रेग्नेंसी के बाद भी खा सकते हैं।

वैसे तो पूरे भारत के कुल उत्पादन का 85% सिर्फ बिहार में ही होता है। लेकिन बिहार के अलावा बंगाल, असम, उड़ीसा, जम्मू कश्मीर, मणिपुर और मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती की जाती है। हालांकि व्यवसायिक स्तर पर इसकी खेती अभी सिर्फ बिहार में ही की जा रही है। लेकिन केन्द्र सरकार अब बिहार के साथ ही देश के अन्य बाकी राज्यों में भी इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रही है।

मखाना की खपत देश के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी है। भारत के अलावा चीन, जापान, कोरिया और रूस में मखाना की खेती की जाती है। हमारे देश में बिहार के दरभंगा और मधुबनी में मखाने की खेती सबसे अधिक की जाती है। हाल के वर्षो में मखाना की खेती बिहार के कटिहार और पूर्णिया में भी आधुनिक तरीके से किया जा रहा है। जनसंख्या वृद्धि के दबाव में तालाबों की संख्या बहुत कम हो गई है जिसकी वजह से मखाना की परंपरागत खेती में कमी आ रही है, लेकिन मखाना अनुसंधान संस्थान , दरभंगा के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें अब खेतों में भी मखाना की खेती हो सकेगी। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, तराई और मध्य यूपी के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ पर खेतों में साल भर जल जमाव रहता है। ऐसे में इन खेतों में मखाना की खेती करके किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं।

मखाने की खेती के लिए ज्यादातर तालाबों या तालों में किया जाता है, लेकिन इसके अभाव में मखाना की खेती खेत में भी किया जा सकता है, जिसके लिए खेत में 6 से लेकर 9 इंच तक पानी जमा होने की व्यवस्था करनी होती हैं। आप चाहे तो खुद से भी एक तालाब तैयार कर मखाने के बीज की रोपाई कर सकते हैं। बीजारोपण से पहले तालाब के पानी से खरपतवार निकाल लेते है।

अप्रैल माह में मखाना के पौधों में फूल आने लगते हैं। फूल पौधों पर 3-4 दिन तक टिके रहते हैं। और इस बीच पौधों में बीज बनाने की प्रक्रिया चलते रहती बनते हैं।

एक से दो महीनों में बीज फलों में बदलने लगते हैं। फल जून-जुलाई में 24 से 48 घंटे तक पानी की सतह पर तैरते हैं और फिर नीचे जा बैठते हैं।मखाने के फल कांटेदार होते है। एक से दो महीने का समय कांटो को गलने में लग जाता है, सितंबर-अक्टूबर महीने में पानी की निचली सतह से किसान उन्हें इकट्ठा करते हैं, फिर इसके बाद प्रोसेसिंग का काम शुरू किया जाता है। धूप में बीजों को सुखाया जाता है। बीजों के आकार के आधार पर उन की ग्रेडिंग की जाती है। मखाना के फल का आवरण बहुत ही सख्त होता है,उसे उच्च तापमान पर गर्म करते है और उसी तापमान पर उसे हथौड़े से फोड़ कर लावा को निकलते हैं, इसके बाद इसके लावा से तरह-तरह के पकवान और खाने की चीजे तैयार की जाती है।

मखाना उत्पादन की समस्याएँ

मखाना का फल कांटेदार और छिलकों से घिरा होता है, जिससे इसको निकालने और उत्पादन में भी कठिनाई होती है। पानी से मखाना निकालने में लगभग 20 से 25 प्रतिशत मखाना छूट जाता है और लगभग इतना प्रतिशत मखाना छिलका उतारते समय खराब हो जाता है।ज्यादातर मामलों में मखाने की खेती पानी में की जाती है, ऐसे में पानी से निकालने में किसानों को तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

ज्यादा गहराई वाले तालाबों से तो मखाना निकालने वाले श्रमिकों के डूबने का डर भी बना रहता है। समुचित सुरक्षा के साधनों के अभाव में किसान को पानी में रहने वाले जीवों से भी काफी खतरा रहता है। जल में कई ऐसे विषाणु भी होते हैं, जो गंभीर बीमारियाँ पैदा कर सकते हैं।

मखाना उत्पादक किसान मखाना के बीज को एकत्र करने के लिए पानी में गोता लगाते हैं और बीज को जुटाते हैं। ऐसे में मखाना के बीज को एकत्र करने के लिए बार बार गोता लगाना पड़ता है जिससे समय, शक्ति और मजदूरी पर अधिक पैसा खर्च होता है।

इस तरह से किसान एक बार में दो मिनट से ज़्यादा गोता पानी के अंदर नहीं लगा पता है, अगर उसे ऑक्सीजन सिलिंडर मुहैया करवा दिया जाय तो वह ज़्यादा समय तक पानी के अंदर गोता लगा सकता है और अधिक से अधिक मखाना के बीज को एकत्र कर सकता है।

बीज से लावा के निकल जाने के बाद आप चाहे तो मखाने को सीधा अपने बाजार में लोकल कस्टमर के बीच उतार सकते हैं। आप इसे रिटेल भी कर सकते हैं और बेहतर डील मिलने पर होल सेल की दर पर भी बेच सकते हैं। इसके कई व्यापारी आपको एडवांस तक देते हैं। ये एक नकद बिकने वाली फसल है तथा देश से लेकर विदेश तक इसकी माँग लगातार बढ़ रही है। ऑनलाइन के इस दौर में आप चाहे तो अपने मखाने की पैकेजिंग कर फ्लिपकार्ट, अमेज़न इत्यादि ऑनलाइन साइट पर भी बेच सकते हैं।

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