खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही गेहूं की बुवाई की तैयारी शुरू हो जाती है। गेहूं की बुवाई को लेकर किसानों के मन में कई सवाल रहते हैं, जैसे कि बुवाई कब करें, बुवाई के लिए कौन से बीज का चुनाव करें या फिर किस विधि से गेहूं की बुवाई करें?
किसानों के इन्हीं सवालों के जवाब में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के प्रधान वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) डॉ. अनुज कुमार, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. नरेश कुमार बैंसला व मध्य प्रदेश के प्रगतिशील किसान मल्टीलेयर फॉर्मिंग सिखाने वाले किसान वैज्ञानिक आकाश चौरसिया गेहूं की उन्नत खेती की पूरी जानकारी साझा कर रहें हैं।
भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के प्रधान वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) डॉ. अनुज कुमार बताते हैं, “अभी गेहूं के साथ ही दूसरी भी रबी फसलों की बुवाई का समय है। गेहूं की बुवाई 25 अक्टूबर से शुरू हो जाती है और किसान अभी से इसकी तैयारी शुरू कर देते हैं। किसान को उन्नत किस्मों के बीज कहां मिलेंगे, हमारे पास भी किसानों के लगातार फोन आते रहते हैं कि गेहूं की कौन सी किस्म की बुवाई करें। अभी गेहूं की कई नई किस्में भी आयीं हैं, तो नई किस्म का बीज कैसे पहले मिले, क्योंकि एक बीज की किस्म का चुनाव सबसे पहले निर्धारित करता है कि हमारी पैदावार कैसी होगी।”
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एक सर्वेक्षण ये कहता है कि अगर हमारा बीज स्वस्थ्य है, बीज नए किस्म का है, तो लगभग 35-40 प्रतिशत पैदावार बढ़ जाती है। ये एक बहुत अहम प्रकिया है कि कौन सा बीज होना चाहिए। अभी बुवाई का समय नजदीक है, इसलिए जिन किसानों ने अभी बीज की व्यवस्था नहीं की है। अभी बीज की व्यवस्था कर लें।
अभी कुछ किस्में जैसे, करन वंदना, डीबीडब्ल्यू की बहुत ज्यादा मांग है, इसके बाद दूसरी जो किस्म है करन नरेंद्र (डीबीडब्ल्यू 222) और तीसरी एक बहुत अच्छी किस्म है एचडी 336 जो पूसा से विकसित है। ये तीन किस्में की मांग इस समय बहुत ज्यादा है। ये तीनों अगेती किस्में हैं और बढ़िया उत्पादन भी देती हैं। इसलिए किसानों को सबसे पहले बीज का चयन करना चाहिए। सबसे जरूरी बात किसान को समय-समय पर बीज बदलता रहना चाहिए।
बीज के चयन के बाद सबसे जरूरी काम होता है, बुवाई के सही समय का ध्यान रखना। उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में बुवाई का समय 25 अक्टूबर से शुरू हो जाता है अगर उससे पहले किसान करना चाहते हैं तो हम किसानों को मना भी करते हैं, क्योंकि कई बार इससे पहले तापमान बुवाई के लिए अनुकूल नहीं होता है। इससे अंकुरण प्रभावित होता है।
तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात होती है, किसानों के सामने फसल अवशेष प्रबंधन की समस्या आती है, जो अभी किसान के खेत में धान का फसल अवशेष रह जाता है। उसका प्रबंधन कैसे किया जाए? अभी हमने देखा है कि किसानों के बीज बेलर मशीन काफी प्रचलित हो रही है। जो खेत में पराली पड़ी है उसका बहुत आसानी से प्रबंधन करता है, इससे किसानों को खेत में पराली नहीं जलानी पड़ती है। किसान हैप्पी सीडर से बुवाई कर सकते हैं, पराली खेत में ही रह जाएगी और बुवाई भी अच्छी तरीके से हो जाएगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. नरेश कुमार बैंसला बताते हैं, “गेहूं की बुवाई से पहले अगर खेत में फसल अवशेष प्रबंधन हो जाता है तो कुछ किस्में हैं, जिनकी बुवाई किसान भाई सीधे कर सकते हैं। कुछ किस्में जैसे एचडीडब्ल्यू 118 और एचडी3226 बीज को बिना जुताई के ही बुवाई कर सकते हैं। इससे किसानों का जो 10-15 दिन खेत की तैयारी और जुताई में लगता है, वो बच जाता है। इसमें पैदावार भी अच्छी मिलती है। इसके अलावा खेत में पानी की भी बचत होती है। सही समय पर, सही मिट्टी में सही तकनीक से अगर हम बुवाई करते हैं तो फसल की गुणवत्ता भी बढ़ जाता है।”
मध्य प्रदेश के प्रगतिशील किसान मल्टीलेयर फॉर्मिंग सिखाने वाले किसान वैज्ञानिक आकाश चौरसिया गेहूं की खेती के बारे में कहते हैं, “मध्य प्रदेश में होने वाली गेहूं की किस्म सरबती पूरे देश में मशहूर है। यहां पर 10-15 गेहूं की दूसरे किस्में भी उगाते हैं। हम किसान भाइयों के साथ अनुभव साझा करना चाहेंगे। जैसे कि हम कोई फसल बोते हैं तो फसल के कुछ अवशेष खेत में रह जाते हैं, अगर हम फसल अवशेष को खेत में ही कंपोस्ट कर लेते हैं तो हमारी फसल बहुत अच्छी हो जाती है।”
किसी फसल में सबसे जरूरी होता है कि मिट्टी स्वस्थ्य रहे, कोई भी फसल हम उगाते हैं तो सामान्यता होता है कि उसमें कोई बीमारी होती है, या पहले से कोई बीमारी होती है। इसलिए सबसे पहले हमें उस बीमारी को खत्म करना होता है। इसके लिए हम दो-तीन तरह का उपाय करते हैं। सबसे पहले 50 किलो नीम का पाउडर और 100 किलो चूने का डस्ट डालकर हम मिट्टी को ट्रीट करते हैं। इससे मिट्टी में जो भी हानिकारक पैथोजन, कीट होते हैं सब नष्ट हो जाते हैं। इसलिए जैसे ही हम फसल काटते हैं उसके बाद हम चूना और नीम पाउडर से मिट्टी को ट्रीट करते हैं और 10-15 दिनों के लिए उसे ऐसे ही छोड़ देते हैं तो इससे मिट्टी की अशुद्धियां तो खत्म होती ही हैं। साथ ही नीम और चूना जब जमीन के अंदर जाता है तो चूने से जमीन का नाईट्रोजन तत्व एक्टिव हो जाता है। इसका मतलब सीधा ये होता है कि हमें खेत में कम से कम यूरिया डालनी पड़ती है।