सितंबर-अक्टूबर महीने में मशरूम की खेती की शुरूआत की जाती है, मशरूम की खेती से किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाने के लिए वैज्ञानिक नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। वैज्ञानिकों ने मशरूम उत्पादन की नई तकनीक विकसित की है, जिससे मशरूम का उत्पादन 10 पहले लिया जा सकता है।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर, यूपी के विशेषज्ञों ने ऑयस्टर मशरूम उत्पादन की नई तकनीक अपनायी है, जिसमें उनका आकार और उत्पादन दूसरी विधियों के मुकाबले ज्यादा बढ़ जाता है।
ऑयस्टर मशरूम की खेती बड़ी आसान और सस्ती है। इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक होते हैं।
विश्वविद्यालय के मशरूम शोध एवं विकास केंद्र, पादप रोग विभाग के प्राध्यापक/नोडल अधिकारी डॉ समीर कुमार विश्वास बताते हैं, “साधारण विधि से मशरूम को तैयार होने में कम से कम 28 से 30 लग ही जाते हैं, तब कहीं प्रोडक्शन शुरू होता है, जबकि नई विधि में 20-22 दिन में प्रोडक्शन मिलने लगता है। साथ ही इसमें उत्पादन भी ज्यादा मिलता है। इसका यही फायदा है कि कम समय में ज्यादा प्रोडक्शन मिल जाता है।”
नई तकनीक में मिलता है ज्यादा उत्पादन
सामान्य विधि में मशरूम की तुलना में इन दोनों तकनीक में न केवल मशरूम का अधिक उत्पादन होता है बल्कि यह ज्यादा पौष्टिक भी होता है और यह आकार में ज्यादा बड़ा होता है।
डॉ विश्वास बताते हैं, “मशरूम की फ्लोरिडा किस्म में सामान्य विधि से उगाने पर एक बैग में 980 ग्राम मशरूम उत्पादन होता है, जबकि हमारी विकसित तकनीक में इसी किस्म में 1490 ग्राम मशरूम का उत्पादन होता है। जबकि पी सजोर काजू किस्म में सामान्य विधि में 1200 ग्राम मशरूम का उत्पादन होता है, जबकि नई तकनीक में 1800 ग्राम तक ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन होता है।”
ऐसे तैयार होता है ग्रो बैग
ऑयस्टर मशरूम उगाने की सामान्य विधि में भूसे को 24 घंटे भिगोकर रखने के बाद बाहर निकालते हैं, पानी से निकालने के बाद इसमें पानी की लगभग 70 फीसदी मात्रा रहनी चाहिए। फिर इस भूसे में स्पॉन मिला दिया जाता और फिर भूसे के प्लास्टिक की थैलियों में भरकर अंधरे कमरों में रख दिया जाता है।
इस नई तकनीक में मशरूम उगाने की प्रक्रिया के बारे में डॉ विश्वास ने बताया, “हमने मशरूम के ग्रो बैग तैयार करने के लिए दो तकनीक अपनायी हैं, पहले में भूसे के साथ ही गुड़ व चोकर मिलाया जाता है, बाकी की प्रकिया सामान्य विधि वाली ही अपनायी जाती है और दूसरी तकनीक में भूसा के साथ एनपीके और कैल्शियम कॉर्बानेट मिलाया जाता है।”
दोनों अलग तकनीक हैं, पहली विधि में पांच किलो भूसे में 400 गुड़ का 20% सॉल्यूशन बनाकर उसमें 800 ग्राम गेहूं का चोकर मिलाया जाता है। जबकि पांच किलो भूसे में पांच मिली ग्राम एनपीके (2:2:1) और कैल्शिम कॉर्बोनेट की मात्रा 6 मिली ग्राम रहती है। बाकी की प्रक्रिया सामान्य विधि की तरह ही होती है।