अरहर की ख़ेती करने वाले किसानों के सामने एक समस्या ये आती है कि ये फ़सल इतने लंबे समय की होती है कि किसान दूसरी फ़सलों की बुवाई नहीं कर पाता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने अरहर की कुछ ऐसी भी किस्में विकसित की हैं, जो न केवल कम समय में तैयार होती हैं, बल्कि उत्पादन भी अच्छा मिलता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने अरहर की किस्म पूसा-116 विकसित की है, जो सिर्फ 120 दिनों में तैयार हो जाती है। जबकि अरहर की दूसरी किस्मों को तैयार होने में 280 दिन तक लग जाता है। इसकी बुवाई के बाद किसान दूसरी फ़सलों की बुवाई कर सकते हैं।
यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बुवाई के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन उपज लगभग 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और 100 दानों का वजन लगभग 7.4 ग्राम होता है।
पूसा अरहर की बुवाई के लिए बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है। इसकी बुवाई के लिए उचित जल निकासी और ढालू खेत का चुनाव करना चाहिए। इसकी बुवाई किसान जून से जुलाई तक कर सकते हैं।
इस किस्म का प्रमाणित बीज़ 10-12 किलो प्रति एकड़ में बुवाई के लिए पर्याप्त होता है। बीज़ को बीज़ उपचार के बाद ही बोएँ, जिससे कई बीमारियों से फ़सल को बचाया जा सके।
पूसा अरहर-16 की बुवाई के लिए लाइनों के बीच 30 सेमी. की दूरी और पौधों के बीच में 10 सेमी. की दूरी रखकर बुवाई करनी चाहिये। मेड़ पर अरहर की बुवाई करने पर अधिक जल भराव और फफूंदी रोगों की रोकथाम में मदद मिलती है। बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम और ग्राम कार्बेन्डाजिम से प्रति किलो अरहर के बीजों का उपचार कर लेना चाहिए।
फ़सल की अधिक उपज के लिए अधिक घनत्व वाली रोपाई और मशीनीकरण बहुत महत्वपूर्ण है। अरहर की पारंपरिक किस्मों में उच्च घनत्व की रोपाई संभव नहीं होती, क्योंकि उनके पौधे बहुत फैलाव वाले होते हैं।
राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार के बाद फफूंदी रोगों की संभावना नहीं रहती। किसान चाहें तो बेहतर उत्पादन के लिये एक हेक्टेयर खेत में 10-15 किलो नाइट्रोजन, 40-50 किलो फास्फोरस और 20 किलो सल्फर का मिश्रण डाल सकते हैं। ध्यान रखें कि खाद-उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की जाँच और विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार ही करें।
पूसा अरहर-16 की ख़ेती के बाद मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है, जिसका फ़ायदा अगली फ़सल को मिलता है।