भारतीय गायें गाँव गरीब किसान की पोषण सुरक्षा से लेकर ऊर्जा शक्ति का द्योतक रही हैं। देशी गाय का दूध, दही, छाछ, घी ने जहाँ भारतीय थाली को पोषण सुरक्षा प्रदान की है। वहीं भारतीय गायों के बछ़ड़ों द्वारा जवान होकर खेती में किसान के कमाऊ पूत बनकर उनकी पूरी सेवा की गई है, लेकिन मशीनीकरण के दौर में कम उत्पादक होने के कारण भारतीय गायों की नस्लों को हम और आप ने आवारा बनाकर छोड़ दिया है जो आज गाँव, खेत, जंगल से लेकर शहरों, महानगरों और सड़कों पर बेबस और लाचार बनकर दर-दर की ठोकरे खाती हुई घूम रहीं हैं।
आलम यह है कि कभी जिस किसान को सब कुछ देने वाली भारतीय गाय जो गौमाता कही जाती थी, आज उसी किसान की लाठी खाने को मजबूर है। भूखी प्यासी गायें जब खेतों में फसल खाती हैं तो उन्हें दुत्कार कर सड़कों और शहरों की ओर खदेड़ दिया जाता है।
किसान की भी मजबूरी है कि चारागाह और जंगल है नहीं और फसलों को भी बचाना है। सड़कों से लेकर महानगरों तक में यही पूज्यनीय गायें कूड़ा-कचड़ा, पॉलीथीन, गंदगी खाने को मजबूर हैं। इसके चलते अधिकांश आवारा घुमंतू गायें बीमार हैं, उनके पेट में पॉलीथिन की गठरियाँ जमा हो रही हैं।
घुमंतू गायों के संरक्षण के लिए सरकारों के अलावा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा काम किया जा रहा है; गौशाला में आवारा घुमंतू गौवंश के संरक्षण के प्रयास हो रहे हैं । कई राज्य सरकारों द्वारा इन गौशालाओं को अनुदान भी दिया जा रहा है, लेकिन गायों की खिलाई-पिलाई, हारी-बीमारी, रखरखाव को देखते हुये यह अनुदान ऊंट के मुँह में जीरे के समान ही है। तमाम प्रयासों के बाद भी आज खेतों से लेकर शहरों-महानगरों और सड़कों पर इन गौवंश के झुण्ड के झुण्ड देखे जा सकते हैं। देखा जाए तो सरकारी प्रयासों से यह पूरी तरह संभव भी नहीं है। इसके लिए आमजन भागीदारी बहुत ज़रूरी है।
आज चारे-दाने की कीमतें आसमान छू रही हैं; ऐसे में आवारा घुमंतू देशी भारतीय गोवंश के संरक्षण के साथ उनसे प्राप्त गोबर और गोमूत्र की ऊर्जा का कैसे सही इस्तेमाल करें इस दिशा में किसानों को आगे आकर पहल करने की ज़रूरत है।
प्राकृतिक कृषि और उसके फायदे
आज इस दिशा में देशी गौ आधारित प्राकृतिक खेती बहुत उत्तम विकल्प के तौर पर उभर कर सामने आयी है। प्राकृतिक कृषि से घुमंतू भारतीय गोवंश के संरक्षण की दिशा में एक नई आशा की किरण जगी है। अगर प्राकृतिक कृषि की पहल आम किसान, गाँव, खेतों और फसलों तक पहुँचती है तो निश्चित रूप से देशी भारतीय गायों के दिन अच्छे आ सकते हैं।
प्राकृतिक कृषि में एक देशी गाय से 30 एकड़ भूमि पर खेती की जा सकती है। प्राकृतिक कृषि में देशी गाय का गोबर और गोमूत्र मुख्य घटक हैं। कहने का मतलब यह कि भारतीय देशी गाय प्राकृतिक कृषि का मूल आधार है। देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से लेकर 500 करोड़ तक ज़मीन के लिए उपयोगी सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। यह सूक्ष्म जीवाणु ज़मीन के अंदर उर्वरा शक्ति बढ़ाने से लेकर ज़मीन की जल धारण क्षमता तक को बढ़ाने का काम करते हैं। ज़मीन में प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले जीवाणु ज़मीन को भुरभुरा बनाने से लेकर उसके अंदर वायु स्पेस को बढ़ावा देते हैं, जिससे ज़मीन धीरे-धीरे उपजाऊ होकर प्राकृतिक रूप से मजबूत होती है। क्योंकि प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरकों और जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है इससे प्राकृतिक खेती में पैदा होने वाले उत्पाद न केवल स्वास्थ्य के लिए बेहतर होते हैं बल्कि इनसे कई प्रकार के प्राण घातक रोगों से बचा जा सकता है।
प्राकृतिक कृषि और देशी गाय
प्राकृतिक कृषि भारतीय देशी गाय पर आधारित है। देशी गाय के गोबर में अधिक सूक्ष्म जीवाणु तो होते ही हैं, देशी गाय के गोबर और मूत्र की महक से देशी केंचुए भूमि की सतह पर आ जाते हैं और भूमि को उपजाऊ बनाते हैं। देशी गाय के गोबर में 16 मुख्य पोषक तत्व होते हैं। यह 16 तत्व ही हमारे पौधों के विकास के लिए उपयोगी हैं। इन्हीं तत्वों को पौधे भूमि से लेकर अपने शरीर का निर्माण करते हैं। यह सभी 16 पोषक तत्व देशी गाय की आंत में निर्मित होते हैं, इसलिए देशी गाय प्राकृतिक कृषि की मूलाधार है। प्राकृतिक कृषि गौ आधारित अर्थात देशी गाय आधारित कृषि है। इस प्रकार से कह सकते हैं कि प्राकृतिक कृषि के माध्यम से देशी गाय की रक्षा कर पाएंगे।
प्राकृतिक कृषि में घुमंतू गायों की भूमिका
प्राकृतिक कृषि में आवारा घुमंतू देशी गाय का महत्वपूर्ण स्थान हो सकता है। घुमंतू देशी गाय के गोबर में पालतू देशी गाय से भी ज़्यादा सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं। ऐसे किसान जिनके पास आज देशी गाय नहीं हैं वह भी घुमंतू देशी गाय को पकड़कर प्राकृतिक खेती की शुरूआत कर सकते हैं। इससे जहॉं घुमंतू देशी गायों को नया जीवनदान मिलेगा वहीं उन्हें भरपेट चारा भी मिल सकेगा। इस प्रकार से किसान की आमदनी में इजाफा होने के साथ ही उनके खेतों की मिट्टी की दशा और दिशा में सुधार होगा। किसानों का इस प्रकार का कदम देशी गाय की रक्षा के साथ ही प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देगा।
प्राकृतिक कृषि की ज़रूरत क्यों?
आज हमारे देश के साथ पूरे विश्व में दो तरह की कृषि पद्धति अपनाई जा रही है जिसमें रासायनिक खेती और जैविक खेती प्रमुख है। लेकिन भारत में एक नई पहल के तहत आज प्राकृतिक कृषि की बात की जा रही है। हालाँकि भारत के लिए प्राकृतिक कृषि कोई नई पद्धति नहीं है। हमारे देश में सदियों से किसान प्राकृतिक कृषि पर निर्भर रहे हैं और इसे करते आए हैं; लेकिन हरित क्रांति के दौर के बाद जिस प्रकार से खेती और किसानी में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बढा है उसके चलते धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती विलुप्त होती चली गई, जिसे फिर प्रचलन में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
प्राकृतिक कृषि भविष्य की कृषि है इसको बढावा देकर हम आने वाली पीढ़ियों को रोग और बीमारियों से मुक्ति के साथ ही एक अच्छी और उपजाऊ ज़मीन अपनी संतति के लिए छोड़कर जा पाएंगे। जिस प्रकार से पिछले कुछ दशकों में खेतिहर ज़मीन के अंदर रासायनिक उर्वरकों और जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग बढा है, उसे देखते हुए एक तरफ ज़मीन की उर्वरा शक्ति क्षीण हुई है वहीं प्राणघातक बीमारियों के प्रकोप से कैंसर जैसी महामारी का प्रभाव आम लोगों के बीच में बढ़ा है।
आज लोगों के पास पैसा है दौलत है लेकिन अच्छा भोजन ज़हर मुक्त खाने-पीने का कृषि उत्पाद मिलना मुश्किल हो रहा है। किसान धीरे-धीरे प्राकृतिक कृषि की ओर उन्मुख होते हैं तो आने वाले समय में आम जनमानस को ज़हर मुक्त कृषि उत्पाद आसानी से सुलभ हो सकेंगे। इससे लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होगा और बीमारियों पर होने वाला खर्च कम होने के साथ ही अपने प्राणों की रक्षा भी कर सकेंगे। इसलिए आज नहीं तो कल हमें प्राकृतिक खेती की ओर सोचना ही नहीं बल्कि उसकी और आगे बढना ही होगा।
प्राकृतिक कृषि के तहत तैयार किए जाने वाले उत्पादों में जीवामृत, घनजीवामृत, बीजामृत आदि को तैयार करने में देशी गाय के गोबर और गोमूत्र की आश्यकता पड़ती है। इसी प्रकार से नीमास्त्र, अग्नियास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नीमपेस्ट, दशपर्णी अर्क, सप्तधान्य आदि को तैयार करने में देशी गाय का गोबर और गोमूत्र, गुड़, बेसन के अलावा घर में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के अनाज और दानों की आवश्यकता पड़ती है।
फसलों और पेड़-पौधों को विभिन्न प्रकार के रोग और बीमारियों से बचाने के लिए तैयार होने वाले उत्पादों के लिए भी विभिन्न पेड़ पौधों की पत्तियां, तंबाकू, हरी मिर्च, पुरानी खट्टी छाछ, लहसुन आदि के अलावा देशी गाय के गोमूत्र की विशेष महत्ता है। किसान अपनी ज़मीन के कुछ हिस्से से प्राकृतिक खेती की शुरुआत कर सकते हैं। इसके बाद आने वाले सीजन से प्राकृतिक खेती से प्राप्त परिणामों को देखकर आगे इसे और बड़े पैमाने पर बढ़ा सकते हैं।
भविष्य की खेती है प्राकृतिक कृषि
आज प्रकृति का दोहन इस स्तर पर पहुँच चुका है कि मनुष्य के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। जल, जंगल, ज़मीन , जलवायु, जनसंख्या आदि सभी प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। धरती के स्वास्थ्य में इतनी विकृति आ गई है कि इसमें पैदा होने वाली वनस्पति और अनाज बहुत जहरीले हो गये हैं। वेदों में ऋषियों ने माँ के रुप में धरती माता और गऊ माता को विशेष दर्जा प्रदान किया है, जिनके संरक्षण की जिम्मेदारी हर मनुष्य पर है। धरती माँ का स्वास्थ्य गौमाता के संरक्षण के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। मनुष्य तभी तक जीवित रह पाएगा जब तक धरती का स्वास्थ्य बना रहेगा। प्राकृतिक कृषि इसी ओर किया गया एक सामूहिक प्रयास है जिसमें पौधों के स्वास्थ्य पर नहीं बल्कि भूमि के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
प्राकृतिक कृषि के लिए विभिन्न उत्पादों को बनाने के लिए कुछ ज़रूरी सामान की जरूरत होती है।
विभिन्न उत्पादों को बनाने के ज़रूरी सामान
ड्रम 200 लीटर (1 से 2)
बाल्टी 10 या 20 लीटर (1 से 2)
टब 50 या 100 लीटर (2)
लकडे़ का दण्ड (1)
जूट की बोरी (3)
सिलबट (चटनी बनाने के लिए) 1
छलनी-1
पावड़ा-1
पतीला 50 लीटर- 2
जीवामृत बनाने की सामग्री
पानी 200 लीटर
देशी गाय का गोमूत्र 15 लीटर
देशी गाय का गोबर 15 किग्रा
गुड़ 2 किग्रा
बेसन या मूंग-उड़द का आटा 2 किग्रा
बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी 200 ग्राम
जीवामृत बनाने की विधि: 200 लीटर पानी में सभी सामग्री मिला दें। दिन में सुबह-शाम घड़ी की सुई की दिशा में पाँच-पाँच मिनट के लिए हिलाएं। जूट की बोरी से ढंक कर जीवामृत छांव में रख दें। 4 से 6 दिन में जीवामृत बनकर तैयार हो जाएगा।
बीजामृत बनाने की सामग्री
देशी गाय का गोबर 5 किग्रा
देशी गाय का गोमूत्र 5 लीटर
चूना या कलई 250 ग्राम
पानी 20 लीटर
बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी 200 ग्राम
बीजामृत बनाने की विधि: 5 किग्रा गाय के गोबर को एक कपड़ा में लें और टेप का उपयोग कर इसे बांध दें। कपड़े को 20 लीटर पानी में 12 घंटे के लिए लटका दें। साथ ही एक लीटर पानी लें और उसमें 50 ग्राम चूना मिलाकर रात भर के लिए रख दें। अगली सुबह, बंडल को पानी में तीन बार लगातार निचोड़ें, ताकि गाय के गोबर के महत्वपूर्ण तत्व पानी में मिल जाएं। एक मुट्ठी भर मिट्टी को लगभग एक किग्रा जल मिश्रण में मिलाएं और अच्छी तरह से चलाएं। मिश्रण में देसी गाय का 5 लीटर गौ मूत्र और चूना पानी मिलाएं और अच्छी तरह से चलाएं। बीजामृत बनकर तैयार हो जाएगा।
घनजीवामृत बनाने की सामग्री
देशी गाय का गोबर 100 किग्रा
देशी गाय का गोमूत्र 10 लीटर
बेसन या मूंग-उड़द का आटा 2 किग्रा
बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी 200 ग्राम
गुड़ 1 किग्रा
घनजीवामृत बनाने की विधि: सभी पदार्थाें को अच्छी तरह से मिलाकर गूंथ लें ताकि उसका हलवा, लड्डू जैसा गाढ़ा बन जाए । उसे 2 दिन तक बोरे से ढंककर रखें और थोड़ा पानी छिड़क दें। बाद में उसे इतना गाढ़ा बनाएं, जिससे उसके लड्डू बन सकें। अब इस घनजीवामृत के लड्डू को फसल के बीज के साथ भूमि पर रख दें, उसके ऊपर सूखी घास रखकर घास पर आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करें।
नीमास्त्र बनाने की सामग्री
नीम के पत्ते व निबोरी पीसकर 5 किग्रा
देशी गाय का गोमूत्र 5 लीटर
देशी गाय का गोबर 1 किग्रा
पानी 100 लीटर
नीमास्त्र बनाने की विधि: सभी सामग्री को भली प्रकार से मिलाकर बोरे से 48 घंटे ढंककर छांव में रखे और दिन में सुबह और शाम घड़ी की सुई की दिशा में पाँच -पाँच मिनिट के लिए हिलाएं बाद में 48 घंटे के बाद इस घोल को कपड़े से छान लें और इसका फसल पर छिड़काव करें।
ब्रहमास्त्र बनाने की सामग्री
देशी गाय का गौमूत्र 10 लीटर
नीम के पत्ते पीसकर 5 किग्रा
सफेद धतूरे के पत्ते पीसकर 2 किग्रा
सीताफल के पत्ते पीसकर 2 किग्रा
करंज 2 किग्रा
अमरुद के पत्ते 2 किग्रा
अरण्डी के पत्ते 2 किग्रा
पपीते के पत्ते 2 किग्रा
ब्रहमास्त्र बनाने की विधि: उपरोक्त में से कोई 5 वनस्पतियों का गूंदा गौमूत्र में घोलिए और ढंककर रखें तथा बर्तन में उबालें। चार उबाल लगातार होने पर तथा 48 घंटे रखने पर कपड़े से छान लें और ढंककर रखें, ब्रहमास्त्र तैयार है। 100 लीटर पानी में 2 से 3 लीटर ब्रहमास़्त्र मिलाकर छिड़काव करें। इसे 6 महीने तक रख कर प्रयोग कर सकते हैं।
अग्निअस्त्र बनाने की सामग्री
देशी गाय का गोमूत्र 10 लीटर
तीखी हरी मिर्च पीसकर 500 ग्राम
लहसुन पीसकर 500 ग्राम
नीम के पत्ते पीसकर 5 किग्रा
तम्बाकू 1 किग्रा
अग्निअस्त्र बनाने की विधि: उपयुक्त सामग्री को मिश्रत करके इसको ढंककर धीमी आँच पर उबाल आने तक गर्म करना है और फिर इसे ठंडा होने दें। फिर 2 दिन तक सुबह-शाम पाँच-पाँच मिनट के लिए घड़ी की दिशा में घुमाएं फिर कपड़े से छानकर प्रयोग में लाएँ।
नीम पेस्ट बनाने की सामग्री
देशी गाय का गोबर 100 किग्रा
पानी 50 लीटर
गोमूत्र 20 लीटर
देशी गाय का गोबर 20 किग्रा
नीम की टहिनयों के टुकड़े/नीम पाउडर
10 किग्रा
सीताफल की टहनियाँ 10 किग्रा
नीम पेस्ट बनाने की विधि: उपरोक्त वस्तुओं का घोल बनाएं ताकि सब मिल जाएँ। इसके बाद 48 घंटे बोरी से ढक कर रखें, नीम पेस्ट बनकर तैयार हो जाएगा।
(डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय-कृषि विज्ञान केंद्र, लहार (भिण्ड) मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक और प्रमुख हैं।)