कुल मिलाकर देख जाए तो प्याज आंसू निकालता ही है। दाम बढ़े तो उपभोक्ता परेशान, घटे तो किसान। लेकिन प्याज एक बार फिर किसानों को रुलाने की तैयारी कर रहा है। देश के सबसे बड़ी मंडी में प्याज की कीमत 30 प्रतिशत तक गिर गयी है। थोक में प्याज की कीमत 1,500 रुपए के नीचे आ गयी है। महाराष्ट्र की लासलगांव मंडी में प्याज 1200 रुपए कुंतल तक बिक रहा। नई फसलों की आवक से ऐसा हो रहा है। कुछ मंडियों में तो दाम 1,200 रुपए के नीचे तक आ गया है। इस महीने कीमतें करीब 30 प्रतिशत तक गिर चुकी हैं। आने वाले दिनों में फुटकर बाजार में भी इसका असर देखने को मिलेगा।
नाशिक, लाडाची के रहने वाले किसान देवीदास परभाने (48) बताते हैं “प्याज की कीमतों में गिरावट का असर मेरे जैसे कई किसानों पर पड़ रहा है। कुछ किसान तो उपज वापस लेकर आ गये। सही दाम का इंतजार कर रहे हैं। हमें तो सही दाम चाहिए। अब किसान औने-पौने पर दाम प्याज व्यापारियों को बेचेगा। फिर वे मुनाफा काटेंगे।”
क्यों ऊपर नीचे होती हैं कीमतें
प्याज की कीमतों में कमी पैदा करा दी जाती है। अब जब मंडी में किसानों को वाजिब दाम नहीं मिलेगा तो व्यापारी प्याज खरीदकर स्टोर कर लेंगे। फिर बाजार में जैसे ही प्याज की किल्लत होगी, आम लोगों के आंसू निकलने लगेंगे। पिछले वर्ष की तरह इस साल भी प्याल की कीमतें 100 प्रति किलो तक पहुंच जाएगी। देश में प्याज का उत्पादन खपत से ज्यादा होता है। तभी तो हर साल प्याज की कीमत का ऐसा संकट आता है। फिर भी हर साल हमारा देश इसका निर्यात भी करता है। जमाखोरी, प्याज स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था न होना और सरकारी नीतियों में स्थिरता का अभाव कीमत को अनाप-शनाप बढ़ा देते हैं।
लासलगांव कृषि उत्पन्न बाजार समिति के सभापति जयदत्त होलकर का कहना है “पिछले कुछ महीने से प्याज की कीमतें गिरती ही जा रही हैं। होलसेल की कीमतें भी गिर रही हैं। इससे किसानों को आने वाले समय में नुकसान होगा।
भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश
भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश है। कृषि उत्पादों के निर्यात पर नजर रखने वाली सरकारी एजेंसी एपीडा के मुताबिक देश में प्याज की फसल दो बार आती है। पहली बार नवम्बर से जनवरी तक और दूसरी बार जनवरी से मई तक। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा प्याज होता है करीब 30 प्रतिशत। इसके बाद कर्नाटक 15 प्रतिशत उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर है। फिर आता है मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात का नंबर। 2015-16 में देश में 2.10 करोड़ टन प्याज का उत्पादन हुआ था। वहीं 2016-17 में करीब 1.97 करोड़ टन।
प्याज निर्यात दो साल के निचले स्तर पर
प्याज की कीमतों में भारी गिरावट आई है। प्याज का निर्यात करीब दो साल के निचले स्तर तक लुढ़क गया है। दिवाली के बाद देश में जब प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी हुई थी तो सरकार ने प्याज निर्यात पर न्यूनतम निर्यात मूल्य की शर्त लगाई थी जिस वजह से प्याज का मासिक निर्यात 2 साल के निचले स्तर तक लुढ़क गया है। आंकड़ों के मुताबिक नवंबर के दौरान देश से सिर्फ 92944 टन प्याज का निर्यात हो पाया है, नवंबर 2015 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि मासिक निर्यात 1 लाख टन से नीचे फिसला हो। नवंबर से पहले अक्टूबर के दौरान देश से 1.75 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ था। आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2017-18 के पहले 8 महीने यानि अप्रैल से नवंबर 2017 के दौरान देश से 17.72 लाख टन प्याज का निर्यात हो पाया है।
पिछले दिनों से कृषि मंत्री ने कहा था कि किसानों को 7 से 15 रुपए प्रति किलोग्राम का भाव मिलना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि मंडियों में प्याज 2,000 रुपए के आस पास रहे। गौरतलब है कि नवंबर महीने में प्याज के दाम तेजी से ऊपर की ओर भाग रहे थे जिन पर अंकुश लगाने और घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ाने के लिए प्याज निर्यात पर 850 डॉलर प्रति टन न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाया गया था। जिसे बाद में घटाकर 700 डॉलर प्रति टन कर दिया गया था। शुरुआत में एमईपी दिसंबर 2017 तक लगाया गया था जिसे बाद में बढ़ाकर 20 जनवरी तक कर दिया गया था।
उत्पादन 10 लाख टन कम
सरकार ने इस साल प्याज का उत्पादन भी पिछले साल के मुकाबले कुछ कम रहने का अनुमान लगाया है। इस वजह से आपूर्ति सीमित रह सकती है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक फसल वर्ष 2017-18 के दौरान देश में प्याज का उत्पादन 214 लाख टन होने का अनुमान है। 2016-17 के दौरान देश में 224 लाख टन प्याज पैदा हुआ था। यानी कि इस साल प्याज उत्पादन 10 लाख टन कम होगा।