वायदा बाजार में चने का दाम 4000 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच चुका है। रिकॉर्ड बुआई के कारण मंडियों में चना बेदम हो चुका है। बाजार में चने के दाम गिरकर 32 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। समर्थन मूल्य से कम दाम पर चना बिकने से सरकार पर भी दबाव बनने लगा है।
प्याज, आलू और टमाटर के बाद अब चना किसानों को रुलाने वाला है। आम लोगों को चना महंगे दाम में जरूर मिलेगा लेकिन चना किसानों को इससे कुछ फायदा होने वाला नहीं है। और इसके लिए भी जिम्मेदार सरकार ही होगी। प्याज और टमाटर की तरह चने की भी पैदावार इस साल बंपर हो सकती है, बावजूद इसके एसी आशंका है कि इसका लाभ न तो किसानों को होगा, और न ही आम लोगों को।
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ऐसा क्यों होगा, ये मैं नहीं, आपको आंकड़ें खुद ब खुद बताएंगे। अब बात पहले चने की कर ली जाए। वायदा बाजार में चने का दाम 4000 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच चुका है। रिकॉर्ड बुआई के कारण मंडियों में चना बेदम हो चुका है। बाजार में चने के दाम गिरकर 32 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। समर्थन मूल्य से कम दाम पर चना बिकने से सरकार पर भी दबाव बनने लगा है।
चने में गिरावट का दौर
पिछले तीन महीने से चने में गिरावट का दौर चल रहा है। तीन महीने पहले 6,000 रुपए कुंतल की दर से बिकने वाला चना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के नीचे पहुंच गया है। इस सत्र के लिए चने का एमएसपी 4,200 रुपए कुंतल तय किया गया है जबकि चने के दाम गिरकर 4,000 रुपए कुंतल पहुंच चुके हैं। कृषि मंत्रालय के अनुसार 8 दिसंबर तक देशभर में 89.58 लाख हेक्टेयर में चने की बुआई हुई है, जो पिछले साल से 10.25 फीसदी अधिक है। पिछले साल 8 दिसंबर तक देश में 81.25 लाख हेक्टेयर में चने की बुआई हुई थी। रबी सीजन के दौरान चने का कुल अनुमानित रकबा 86.81 लाख हेक्टेयर है यानी बुआई अनुमानित रकबे से भी ज्यादा हो चुकी है।
ये तो रही चने की मौजूदा स्थिति। अब हम आपको बताते हैं चने का हाल प्याज और टमाटर की तरह कैसे होगा। कैसे फिर हमें और आपको चना महंगा जरूर मिलेगा, लेकिन उसका फायदा किसानों को बिल्कुल नहीं होगा। मध्य प्रदेश के मंदासौर में तो प्याज की कम कीमतों का विरोध कर रहे किसानों को गोलियों से भून दिया गया था।
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ये वे किसान थे जिन्होंने स्थानीय मंडियों में 2-3 रुपए प्रति किलो प्याज बेची थी। बाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 8 रुपए की सरकारी दर पर प्याज खरीदने की घोषणा की। मंदसौर के एक किसान केसूलाल पाटीदार कहते हैं “प्याज की कीमत से हमारी लागत भी नहीं निकल पायी थी। हमने करीब 40 क्विंटल प्याज खेतों में ही छोड़ दिया था। 2.20 पैसे के हिसाब प्याज बेचने का कोई फायदा ही नहीं था। हमने 8 रुपए में भी सरकार को प्याज नहीं बेचा। बाद में हमने बाजार से 60-70 रुपए में प्याज खरीदकर खाया।”
अब यही हाल चने का भी हो सकता है। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जुलाई के पहले सप्ताह में लासलगाँव की मंडी में प्याज 668 रुपए प्रति कुंतल था जबकि अगस्त के पहले सप्ताह में प्याज की कीमत बढ़कर 2400 रुपए प्रति क्विंटल हो गई। जो 3225 रुपए क्विंटल पहुंच गई थी। मतलब जब उपज बेचने का समय था तो कीमतें कम थीं। वहीं टमाटर ने भी शतक मार लिया था। उत्तर प्रदेश फूलपूर के टमाटर व्यापारी और किसान आशीष सिंह बताते हैं, “हम तो अपना टमाटर दाम कम मिलने के कारण बेच ही नहीं पाए थे। भारी नुकसान हुआ। हमें सही दाम नहीं मिला, लेकिन हमने बाजार से टमाटर 100 रुपए किलो तक खरीदा।
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2015-16 में प्याज उत्पादन करीब 2.02 करोड़ टन रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था, जो 2014-15 के मुकाबले 11 प्रतिशत अधिक था। जुलाई 2016 में सरकार के शुरुआती अनुमानों के अनुसार 2016-17 में प्याज उत्पादन करीब 197 लाख टन रहने की बात कही गई थी, जो पिछले साल के मुकाबले 6 प्रतिशत कम है। हालांकि पिछले पांच साल के औसत उत्पादन के मुकाबले 2016-17 में उत्पादन सामान्य से 5 प्रतिशत अधिक होगा। उत्पादन ज्यादा हुआ तो लेकिन इसका लाभ व्यापारियों को छोड़कर किसी और को नहीं हुआ।
इंदौर के चना कारोबारी (कमोडिटी) हरीश पालिया कहते हैं “चने सहित दूसरी दलहनों में गिरावट का दौर है। इस समय कृषि जिंस मंदी की गिरफ्त में है। बाजार में नकदी नहीं होने का असर कारोबार पर पड़ रहा है। देश में चने की रिकॉर्ड बुआई हुई है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार भी चने की रिकॉर्ड पैदावार होगी। देश में पहले से भी दलहन का स्टॉक है। लिहाजा, कीमतों में गिरावट हो रही है। इंदौर सहित देश की कई मंडियों में चना न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे पहुंच चुका है और किसानों को एमएसपी के नीचे चना बेचना पड़ रहा है।”
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वर्ष 2015 में 74.06 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चने की बुआई हुई थी जबकि वर्ष 2014 में रकबा 69.20 लाख हेक्टेयर, 2013 में 83.81 लाख हेक्टेयर और 2012 में 81.44 लाख हेक्टेयर था। चने की बुआई देश के सभी हिस्सों में अच्छी हुई है।
चना उत्पादक प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बुआई हुई है। मध्य प्रदेश में अब तक 31.24 लाख हेक्टेयर रकबे में बुआई हुई है। पिछले साल 26.67 लाख हेक्टेयर में हुई थी। मध्य प्रदेश में पिछले चार साल का रिकॉर्ड टूटा है। राज्य में चने का आरक्षित रकबा 30.40 लाख टन है जो पार कर चुका है। महाराष्ट्र में 14.25 लाख हेक्टेयर, कर्नाटक में 13.25 लाख हेक्टेयर और राजस्थान में 13.95 लाख हेक्टेयर में चने की बुआई हुई है। इसकी जानकारी मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन के खुद ट्वीट करके दी। उन्होंने ये भी लिखा कि केंद्र सरकार ने समर्थन मूल्य भी बढ़ाकर 4,200 रुपये क्विंटल कर दिया है।
ऐसे समझिए पूरा गणित
उत्पादन ज्यादा होने पर किसानों को फायदा नहीं होता। न ही आम आदमी को। पिछले दिनों बढ़ी प्याज की कीमतों से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मध्य प्रदेश चने का सबसे बड़ा उत्पादक है। हम वहीं का भाव देख लेते हैं।
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पिछले साल इस समय मध्य प्रदेश की मंडी में चने की कीमत 4,483 रुपए थी। अक्टूबर के शुरुआती दिनों में चने की बुवाई होने लगती है और फरवरी अंतिम तक नई प्याज आ जाती है। चने की आवक मार्च से शुरू हुई। तब मध्य प्रदेश की मंडियों में चने का दाम 6,013 रुपए प्रति किलो था। जून में यही कीमत 7,237 प्रति कुंतल तक पहुंच गई। सितंबर से कीमतें फिर नीचे आनी शुरू हो गईं और नवंबर आते-आते कीमत 4,000 रुपए पर पहुंच गई। वहीं अभी एमपी के मंडी भाव के मुताबिक वहां चने की औसत मूल्य इस समय 3054 रुपए है। मतलब जब किसानों को अपनी उपज बेचनी है तो फसल का दाम जमीन पर है, और जैसे सीजन खत्म होगा, यही कीमत आसमान पर होगी।
बिचौलिए फिर कर सकते हैं खेल
ज्यादा उत्पादन के बाद बिचौलिए फिर सक्रिय हो सकते हैं। जैसा प्याज के मामले में हुआ था। पैदावार बढ़ने से व्यापारियों ने प्याज डंप कर लिया था। और उसे महंगा होने दिया। चूंकि सरकार के पास भंडारण की व्यवस्था नहीं है, इसका फायदा व्यापारियों ने उठाया। मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिला में सबसे ज्यादा चने की पैदावार होती है। इसी ज़िले में पिछले साल एक समय चने का दाम दस हजार रुपए तक पहुंच गया था। वहां के चना किसान और व्यापारी प्रकाश पटेल कहते हैं “पिछले साल भी ऐसे ही हुआ था। जब हमारी फसल पक गई और बेचने का समय आया तो दाम घट गया। यही भाव बाद में खूब चढ़ा।”
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प्याज और टमाटर में भी बिचौलिओं ने खूब खेल खेला। ये सरकार की नाकामी ही थी। इस मामले में इंदौर के किसान नेता केदार सिरोही (आम किसान यूनियन) कहते हैं “चने की कीमत 2500 रुपए तक जाएगी। ये हर बार होता है। जब किसानों को रुपए की जरूरत होती है तो उपज की कीमत कम हो जाती है। ये पूरा खेल बिचौलिए खेलते हैं। प्याज के साथ भी ऐसा हुआ था। फसल पूरी होने के बाद किसानों को पैसे की जरूरत होती है। ऐसे में वो कम कीमत पर फसल बेच देता है और व्यापारी इसका पूरा लाभ उठाते हैं। इससे न तो किसानों को फायदा होगा और न ही आम लोगों को।”