इस महीने तापमान बढ़ने के बाद रबी की फसलों में कई तरह के बदलाव आते हैं। प्रदेश में मौसम के हिसाब से किसान कृषि प्रबन्धन के लिए ये उपाय अपना सकते हैं।
कृषि विज्ञान केन्द्र, अंबेडकरनगर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रवि प्रकाश मौर्या बताते हैं, “गेहूं में कल्ले निकलने व गांठ बनने की अवस्था संवेदनशील है, इसलिए इन अवस्थाओं में सिंचाई जरूर करें। दोमट भूमि में देरी से बुवाई वाले क्षेत्रों में नाइट्रोजन की एक चौथाई मात्रा सिंचाई के बाद ओट आने पर दें। हल्की मृदा (बलुई दोमट) में नाइट्रोजन की शेष मात्रा का आधा भाग दूसरी सिंचाई के बाद ओट आने पर दें।”
ये भी पढ़ें- आम के बाग में गुम्मा रोग व स्केल कीट का प्रकोप, समय से प्रबंधन न करने पर घट सकता उत्पादन
गेहूं में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर पांच किग्रा जिंक सल्फेट और 16 किग्रा यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें। यूरिया की टॉप ड्रेसिंग कर दी है तो यूरिया के स्थान पर 2.5 किग्रा बुझे हुए चूने के पानी (2.5 किग्रा बुझे चूने को 10 लीटर पानी में शाम को भिगोकर दूसरे दिन पानी निथार कर) का प्रयोग करें।
मौसम विभाग की तरफ से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक रवरी से लेकर मार्च तक उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में दिन और रात दोनों का ही तापमान सामान्य से पांच डिग्री सेल्सियस ऊपर रिकॉर्ड किया जाएगा। बढ़ते तापमान के कारण दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में ठंड का असर कम पड़ जाएगा।
ये भी पढ़ें- किसानों की मदद करेंगे ड्रोन कैमरा , फसलों में रोग-कीट लगने से पहले मिलेगा अलर्ट , देखें वीडियो
तिलहनी फसलों की खेती
यदि नाशीजीवों (कीट) की संख्या उनके प्राकृतिक शत्रुओं से दोगुनी हो तभी रसायनों का प्रयोग करें। देर से बोई गई फसलों में आजकल माहू की सम्भावना बनती है। माहू, चित्रित बग व पत्ती सुरंगक कीट के नियन्त्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 125 मिली प्रति हेक्टेयर या डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी या मिथाइल-ओ-डेमेटान 25 प्रतिशत ईसी एक लीटर प्रति हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एसएल की 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
दलहनी फसलों की खेती
चना, मटर व मसूर में फली छेदक एवं सेमी लूपर कीटों की रोकथाम के लिए एनपीबी विषाणु से ग्रसित 250 सूड़ियों का रस 200 से 300 लीटर पानी में मिलाकर 0.5 प्रतिशत गुड़ के साथ छिड़काव करना चाहिए। फूल आने पर यदि प्रकोप दिखाई दे तो वेसिलस थूरिजजिएन्सिस (बीटी) की कार्स्टकी प्रजाति 1.0 किग्रा या एजाडिरैक्टिन 0.03 प्रतिशत डब्लूएसपी 2.5-3.0 किग्रा अथवा मैलाथियान 50 प्रतिशत ईसी की 2.0 लीटर मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
ऐसे करें गेहूं में लगे रोग से बचाव
सिंचित व असिंचित दोनों प्रकार के गेहूं में रोग वाली बाली दिखाई देने पर उसे पॉलीथिन में डालकर काट लें और उसे जमीन में गाड़ दें। गेहूं की बोई गई प्रजाति की शुद्धता बनाये रखने के लिए रोगिंग (अवांछित पौधों को निकाल दें) करें।
खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
गेहूं और जौ की फसल में माहू का प्रकोप होने पर मिथाइल ओ डिमेथान 25 ईसी अथवा डायमीथोएट 30 ई.सी. की एक लीटर मात्रा अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 125 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।