यूपी के इस गाँव में गेहूँ के डंठल और बोरियों से महिलाएँ बना रही हैं खूबसूरत सामान, ऑनलाइन भी आ रही है डिमांड

कभी अपने घर वालों पर निर्भर रहने वाली महिलाएँ आज खुद घर का खर्च चला रहीं हैं, इनमें सिर्फ महिलाएँ ही शामिल नहीं हैं, हरदोई जिले में किसान भी इतनी कमाई कर लेते हैं, जिससे उनकी बचत भी हो जाती है।

Divendra SinghDivendra Singh   1 May 2024 10:49 AM GMT

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यूपी के इस गाँव में गेहूँ के डंठल और बोरियों से महिलाएँ बना रही हैं खूबसूरत सामान, ऑनलाइन भी आ रही है डिमांड

इस समय गेहूँ की फसलों की कटाई चल रही है, लेकिन कंबाइन हार्वेस्टर जैसी मशीनों के आ जाने के बाद सबसे बड़ी परेशानी है, फसल अवशेष प्रबंधन की। लेकिन यूपी के गाँवों की महिलाओं ने इसका भी हल ढूँढ लिया है, तभी तो आजकल यहाँ गेहूँ के डंठल से कई सामान बना रही हैं।

यही नहीं, इसी तरह के कई उत्पादन बनाकर यहाँ की महिलाएँ आत्मनिर्भर बन रहीं हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 92 किमी दूर हरदोई जिले के कछौना में कई महिलाएँ हर दिन इकट्ठा होती हैं और अपने हुनर के हिसाब से काम शुरू कर देती हैं। कोई खाद की पुरानी बोरी में कढ़ाई में कुशल है, तो कोई उससे बैग तैयार करने में। हर किसी का अपना-अपना काम बँटा हुआ है।

47 साल की निर्मला भी उन्हीं में से एक हैं।


मढ़ौरा गाँव की निर्मला के लिए ये सब इतना आसान नहीं था, लेकिन एचसीएल फाउंडेशन के समुदाय शक्ति सेवा समिति से जुड़ने के बाद आज दूसरी महिलाओं को भी वो आत्मनिर्भर बना रही हैं।

समुदाय शक्ति सेवा समिति के कछौना सेंटर पर महिलाओं को काम समझाने में व्यस्त निर्मला गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मेरे पति कुछ नहीं करते थे, बहुत शराब पीते थे, इसकी वजह से अभी पिछले साल उनकी मौत हो गई; लेकिन आज मैं खुद की कमाई से अपने बेटे को बीएससी करा पा रही हूँ।"

निर्मला समुदाय शक्ति सेवा समिति की प्रेसीडेंट भी हैं, वो आगे कहती हैं, "एचसीएल ने समुदाय की शुरुआत की तो जिस भी गाँव में लोग जाते महिलाएँ सुनने को ही तैयार नहीं थीं; फिर ये हुआ कि निर्मला को बुलाओ वही कर सकती हैं, तब हमारे गाँव में चार समूह की चालीस महिलाओं के साथ ही पास गाँव की महिलाओं को भी इकट्ठा किया। बाहर से छह महीने के लिए ट्रेनर आईँ थी, महिलाएँ डलिया बनाना तो पहले ही जानती थीं, लेकिन ट्रेनर ने उन्हें और भी बहुत कुछ सीखा दिया।"

आज निर्मला की तरह ही 2500 महिलाएँ जुड़ी हुईं हैं। अब तो यहाँ की महिलाएँ इतना सीख गईं हैं कि उन्हें अगर व्हाट्सएप पर भी कोई डिजाइन दे दिया जाता है तो वो आराम से बना लेती हैं। यहाँ पर महिलाएँ गेहूँ के डंठल, खाद की पुरानी बोरी से खूबसूरत सामान बनाती हैं। यही नहीं यहाँ की कई महिलाएँ चिकनकारी भी करती हैं।

एचसीएल फाउंडेशन ने समुदाय की शुरुआत साल 2014 में की थी; इसके ज़रिए शिक्षा, आजीविका, बुनियादी ज़रूरतों, खेती, पानी और स्वच्छता पर काम किया जा रहा है। हरदोई जिले में प्रोजेक्ट की शुरुआत अप्रैल 2015 में हुई थी और वर्तमान में जिले के 11 ब्लॉकों - कछौना, बेहंदर, कोथावां, अहिरोरी, बिलग्राम, भरावाँ, माधोगंज, मल्लावाँ, संडीला, सुरसा, टड़ियावां में चल रहा है। इस प्रोजेक्ट में 524 ग्राम पंचायतें शामिल हैं जिनमें 20 लाख से भी ज़्यादा लोगों को इसका लाभ मिल रहा है।


इसके साथ ही यहाँ के किसानों को खेती में भी नई जानकारियाँ दी जाती हैं। तेरवा गाँव के 55 वर्षीय राधेश्याम मौर्या भी उन्हीं किसानों में शामिल हैं, जिन्हें एचसीएल फाउंडेशन से ट्रेनिंग मिली है।

सब्जियों की खेती करने वाले राधेश्याम के खेत में इन दिनों तोरई, मिर्च, अचारी मिर्च और शिमला मिर्च लगी हुई है। ऐसा नहीं कि राधेश्याम शुरू से खेती नहीं करते आ रहे थे, इस बारे में राधेश्याम गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जब शुरू में एचसीएल के लोग आए तो हम किसानों को डर था, हम लोग तो उनके पास भी नहीं गए, लगा कि पता नहीं कैसे लोग हैं।"

वो आगे कहते हैं, "2016 में हम लोगों को जब इन पर भरोसा हो गया तो तब हमें लगा कि ये हमारी मदद कर पाएँगे; फिर उन लोगों ने हमें सही बीज के बारे में बताया कि कौन सा बीज बोएँगे जिससे बढ़िया खेती होगी।"

राधेश्याम की तरह ही उनके गाँव के सभी किसान एचसीएल के ट्रेनिंग कार्यक्रम में शामिल होने लगे हैं। यहाँ पर उगने वाली अचारी मिर्च व्यापारी गाँव से खरीदकर ले जाते हैं। उन्हें मंडी भी नहीं जाना होता है। "पहले साल में 10 हज़ार रुपए भी बचाना भी मुश्किल होता था, अब तो किसान एक सीजन में एक लाख रुपए तक बचा लेता है। " राधेश्याम ने आगे कहा।

HCL Foundation #WomenEmpowerment 

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