पुरोहित और पुजारी बन रहीं हैं यहाँ पर लड़कियाँ

वाराणसी का पाणिनि महाविद्यालय अपने अनूठे काम से चर्चा में है। यहाँ देश के अलग-अलग हिस्सों से लड़कियाँ विदुषी बनने आती हैं और बरसों पुरानी प्रथा को तोड़ यज्ञ और दूसरे धार्मिक अनुष्ठान कराती हैं।

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सुबह के पाँच बजते ही वाराणसी के अस्सी घाट पर अचानक हलचल तेज़ हो जाती है।

पीले सलवार कुर्ते और साड़ी में आठ लड़कियाँ यहाँ पर बने यज्ञ स्थल को अल्पना और रंगोली से सजाती हैं और यज्ञ की तैयारी में लग जाती हैं। और थोड़ी ही देर में मंत्रों के उच्चारण के साथ ही शुरू होती है गंगा आरती।

वैसे तो यहाँ गंगा किनारे 88 घाट हैं लेकिन अस्सी घाट पर होने वाली गंगा आरती की तैयारी वो भी लड़कियों के हाथों कई लोगों को अचरज में डाल देती है। ये सभी पाणिनी महाविद्यालय की छात्रा हैं।

जीवन के तमाम रस वाले इस बनारस शहर में लड़कियों के हाथों पूजा (कर्मकांड) की शुरुआत नौ साल पहले हुई थी। इनके हाथों गंगा आरती को देखने के लिए आज भी तड़के सुबह लोग जुटने लगते हैं।


ये लड़कियाँ सिर्फ गंगा आरती ही नहीं कर रहीं हैं, बल्कि बरसों पुरानी प्रथा को भी तोड़कर आगे बढ़ रहीं हैं।

आप अपने आस-पास पूजा, यज्ञ और दूसरे धार्मिक अनुष्ठानों को कराते हुए हमेशा पुरुष पंडित और पुरोहितों को देखते आए होंगे। लेकिन वाराणसी के पाणिनी महाविद्यालय से निकलकर अब लड़कियाँ भी धार्मिक अनुष्ठान करा रही हैं।

लेकिन इन लड़कियों के लिए ये सब इतना आसान नहीं था, पचास से ज़्यादा घरों में हवन करा चुकी पाणिनी महाविद्यालय में पढ़ाई करने वाली दामिनी आर्या गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "अब तो मैं आचार्य जी के साथ जाकर शादियाँ भी कराती हूँ, वहाँ जब हम जाते हैं तो बहुत सारे पंडित होते हैं वो गुस्सा हो जाते हैं कि ये करवाएँगी? लेकिन जब वो देखते हैं तो खुद आकर नतमस्तक होते हैं और कहते हैं कि हमने पहली बार ऐसा कुछ देखा है।"


"जो लोग शादियों में शामिल होते हैं वो कहते हैं कि लगता है कि हमें दोबारा शादी कर लेनी चाहिए, क्योंकि हमारी शादी में तो ऐसा कुछ हुआ नहीं, "दामिनी ने आगे कहा।

पाणिनी महाविद्यालय आवासीय गुरूकुल पद्धति से संचालित हैं। यहाँ की दिनचर्या खान-पान, रहन-सहन पूरी तरह गुरुकुलीय है। देश के अलग-अलग राज्यों के साथ ही दूसरे देशों से भी छात्राएँ यहाँ पढ़ने आती हैं। इसकी स्थापना 18 जून 1971 को आचार्या प्रज्ञा देवी और आचार्या मेधा देवी ने की थी।

यहाँ की छात्रा गार्गी आर्या गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "उस परम पिता परमेश्वर ने हमें जो वेदों का उपदेश दिया है, उन वेदों के उपदेश में बताया गया है कि यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः, जिसका अर्थ है ये जो संस्कृत भाषा है, वेदों का ज्ञान है उसे मैं हर एक व्यक्ति को दे रहा हूँ, उसमें ये नहीं कहा गया कि मैं जापानी, चीनी या क्रिश्चियन को दे रहा हूँ। उसने सबको ये ज्ञान देने को कहा है।"

"उस ज्ञान की प्राप्ति के लिए हम यहाँ आते हैं, जब यहाँ प्रवेश होता है तो सबसे पहले हमारा यज्ञोपवीत संस्कार होता है, जिसे उपनयन संस्कार भी बोलते हैं, "गार्गी ने आगे कहा।


अभी महाविद्यालय में जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, जैसे कई राज्यों की 150 छात्राएँ पढ़ रहीं हैं।

संजीवनी पांडेय के ऊपर शुरू से अस्सी घाट पर आयोजित सुबह-ए-बनारस की गंगा आरती का कार्यभार है। अभी वो यहाँ पर आचार्या हैं, लेकिन तीस साल पहले नौ साल की उम्र में वो यहाँ पर छात्रा बनकर आयीं थीं। मूल रूप से दिल्ली की रहने वाली संजीवनी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मेरे पिता आर्य समाज से जुड़े हुए थे, एक बार दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में यहाँ की संस्थापिका डॉ प्रज्ञा देवी से उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने मेरे पिता जी से कहा कि बेटियों को भी गुरुकुल में भेजना चाहिए।"

वो आगे कहती हैं, "नौ साल की थी जब यहाँ पर मेरा प्रवेश हुआ, यहीं पर पढ़ाई की और अब यहाँ की आचार्या भी हूँ। यहाँ से निकलने के बाद कई लड़कियाँ पुरोहित बन जाती हैं और कई आगे पढ़कर प्रोफेसर बनकर दूसरों को शिक्षा देती हैं।"

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