गीता प्रेस: जिसने रामचरितमानस और भगवत गीता को घर-घर पहुँचा दिया
पूरी दुनिया में मशहूर गीता प्रेस को हाल ही में गांधी शांति पुरस्कार-2021 से सम्मानित किया गया है; यहाँ पर हिंदू धर्म की सबसे ज़्यादा धार्मिक किताबों को प्रकाशित किया गया है।
गाँव कनेक्शन 2 Nov 2023 11:15 AM GMT
ज़्यादातर लोगों के घरों में रामचरित मानस या गीता जैसे धार्मिक ग्रंथ मिल जाएँगे, लेकिन इन धार्मिक ग्रंथों को घर-घर पहुँचाने का श्रेय जाता है गीता प्रेस को।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित गीता प्रेस को कुछ महीने पहले ही गांधी शांति पुरस्कार-2021 से भी सम्मानित किया गया है। आज इस प्रेस की पहचान प्रदेश ही नहीं पूरी दुनिया में है। लेकिन यहाँ तक इसके पहुँचने में यहाँ के लोगों का अथक प्रयास रहा है।
गीता प्रेस के प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "गीता प्रेस की स्थापना 23 अप्रैल 1923 में हुई थी इसके संस्थापक जयदयाल गोयन्दका थे जो भगवत प्राप्त महापुरुष थे। इस समय हम 15 भाषाओं में 1800 तरह की पुस्तकें छापते हैं। इसका संचालन ट्रस्ट बोर्ड से होता है।"
वो आगे कहते हैं, "लोगों को पता है कि गीता प्रेस की पुस्तके प्रमाणित हैं, वो शास्त्रों द्वारा अनुमोदित हैं कोई मन गढंत बातें नहीं हैं इसलिए लोगों की इनकी प्रति श्रद्धा रहती है।
गीता प्रेस अपने 100 साल के सफ़र में 42 करोड़ किताबें छाप चुकी है। इनमें भगवद गीता की 18 करोड़ प्रतियाँ शामिल हैं। इस प्रेस में रोजाना 70,000 किताबें प्रिंट होती हैं। यहाँ से प्रकाशित हनुमान चालीसा की कीमत दो रुपये से भी सस्ती है।
गोयंदका लोगों तक ऐसी भगवद्गीता पहुँचाना चाहते थे जिसमें कोई गलती न हो। इसके लिए उन्होंने 1922 में कलकत्ता में एक प्रेस से संपर्क किया, लेकिन इसमें कई गलतियाँ रह गईं। डॉ लालमणि तिवारी आगे कहते हैं, "प्रेस वाले इनके परिचित थे उन्होंने कहा अगर आपको इतना शुद्ध छापना हैं तो अपना प्रेस लगा लीजिए, कोई दूसरा प्रेस अपनी मशीनें इतनी देर रोक रोक कर आपका नहीं छापेगा।"
बस फिर क्या था जयदयाल गोयन्दका ने इसे भगवान की प्रेरणा मानकर अपना प्रेस शुरू करने के बारे में सोच लिया। लालमणि तिवारी आगे कहते हैं, "10 रुपये किराए का एक मकान लिया गया और प्रिंटिंग मशीन मंगाई गईं; प्रेस का काम शुरू किया गया और उसका नाम रख दिया गीता प्रेस।"
कैसे होता है सबसे अधिक किताबें छापने वाले प्रेस में काम
यहाँ पर किताबों के संपादन के लिए संपादकीय विभाग बना हुआ है और उसको देखने के लिए योग्य लोग हैं। लालमणि तिवारी आगे कहते हैं, "यहाँ पर ऐसी कोई पुस्तक नहीं है जो हमारे सिद्धांतों के विपरीत हो, हम लोगों को इतनी जानकारी तो होती ही है , कि भगवत गीता में या भागवत महापुराण में क्या अन्तर है।"
यहाँ पर हर महीने स्टेटमेंट निकलता है कि कौन सी पुस्तक उस महीने में ज़्यादा बिकी है और अभी स्टॉक में कितनी हैं। उसी से तय होता है कि आगे के महीने में कितनी किताबें प्रिंट होंगी।
प्रूफ रीडिंग के बाद प्रिंटिंग होती है, फिर बाइंडिंग डिपार्टमेंट में उनकी सिलाई होती है और उसपर कच्ची जिल्द या पक्की जिल्द चढ़ाई जाती है।
यहाँ पर साल में लगभग 43 से 44 टन कागज प्रिंट होता है और साल में लगभग ढाई करोड़ पुस्तकें छपती हैं। ललित तिवारी आगे कहते हैं, "अगर पुस्तक में कोई अशुद्धि रह जाती है और उसे कोई बताता है तो हम उसे आभार के साथ पुरस्कार भी देते हैं।"
भारत सरकार हर साल गांधी शांति पुरस्कार देती है। महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के मौके पर वर्ष 1995 में इस सम्मान की शुरुआत हुई थीं। इस पुरस्कार के तहत एक करोड़ रुपये की राशि दी जाती है, लेकिन गीता प्रेस ने पुरस्कार की राशि लेने से मना कर दिया।
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