लखनऊ/कानपुर/मैनपुरी। पहले खरीफ की फसल चौपट हुई, अब रबी की फसल को लेकर संशय बना हुआ है। मौसम में हुए बदलाव के कारण जनवरी महीने में गेहूं के खेतों मेें बालियां निकलनी शुरू हो गईं हैं, तो आम के बागों में बौर दिसंबर में आ चुका है।
कानपुर के बिठूर में रहने वाले रामरतन शाहू ने अपनी 80 वर्ष की उम्र में ऐसा पहले कभी नहीं देखा। ”हमने यह पहली बार देखा है कि जनवरी के पहले ही हफ्ते में आम के पेड़ में अमियां आ गई हैं।” मैनपुरी जिले के भोजपुरा गाँव के जितेन्द्र कुमार (50 वर्ष) भी ठंड न पड़ने से लहसुन की पैदावार को लेकर परेशान हैं।
इस बदले मौसम का फसलों पर कितना असर पड़ेगा, यह वैज्ञानिक खुलकर नहीं बोल रहे, लेकिन सही नहीं मान रहे। ”जनवरी के दूसरे सप्ताह में दिन-रात के तापमान में दो गुने से अधिक अंतर मौसम, फसलों और स्वास्थ्य के लिए सही भी नहीं है। दिन का पारा चढ़ने से ठंड महसूस नहीं हो रही। बारिश न होने से सुबह की नमी लगातार 95 फीसदी बनी है।” डॉ. अनिरुद्ध दूबे, मौसम वैज्ञानिक, चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर ने कहा।
मौसम का यह परिवर्तन अनायास ही नहीं है, विश्व मौसम संठन की हाल में आई रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार वर्षों में औसत वैश्विक तापमान बढ़ा है। वर्ष 2014 में औसत वैश्विक तापमान 0.61 डिग्री सेल्सियस बढ़ा था, लेकिन वर्ष 2015 में यह बढ़ोत्तरी 0.70 दर्ज़ की गई। यह बढ़ोत्तरी वर्ष 2016 में भी जारी रहने की संभावना है।
वहीं, भारत में मानसून कमजोर होने और मौसम में हुए बदलाव के लिए प्रशांत महासागर में बने अलनीनो प्रभाव को माना जा रहा है। ”इस बदलाव का कुछ न कुछ असर ज़रूर दिखेगा। अब कितना होगा यह नहीं कहा जा सकता। पहाड़ों पर भी सेबों की पैदावार पर असर पड़ सकता है।” कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने फोन पर कहा, ”किसानों को मौसम के बदलाव के हिसाब से खेती का तरीका बदलना होगा।”
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार अब तक सबसे गर्म हाल के तीन वर्ष रहे। वर्ष 2009 में औसत तापमान 0.77 डिग्री ज्यादा रहा। जबकि 2010 में तापमान 0.75 डिग्री और 2015 में 0.67 डिग्री सामान्य से अधिक रहा।
बेमौसम पड़ रही गर्मी के बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में फसल विज्ञान के वैज्ञानिक डॉ. जीत सिंह संधू ने कहा, ”इस बार बारिश नहीं हुई और पहाड़ों पर बर्फ बारी न होने से कड़ाके की ठंड नहीं पड़ रही।”
भारतीय कृषि मंत्रालय के अनुसार इस बार मानसून गड़बड़ाने की वजह से इस वर्ष गेहूं की बुआई का रकबा 18 लाख हेेक्टेयर कम रहा। अब बढ़ती गर्मी से पैदावार पर असर भी पड़ने की संभावना है। उधर, तिलहनी फसलों का भी रकबा करीब 3 लाख हेक्टेयर घटा है। वहीं, लखनऊ मौसम विभाग के निदेशक जेपी गुप्त कहते हैं, ”अगले एक हफ्ते तक ऐसा ही मौसम रहेगा। पश्चिमी विक्षोभ नहीं होने से इस बार ठंडक नहीं पड़ रही। अभी अचानक बहुत बदलाव नहीं आने वाला।”
रिपोर्टिंग – करन पाल सिंह/राजीव शुक्ला