‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए’
दुष्यंत कुमार की ये कालजयी पंक्तियां हमारी कोशिशों का सार हैं। गाँव कनेक्शन इस दो दिसम्बर को तीन साल का हो रहा है।
तीन साल की उम्र तक बच्चे बिना गिरे कुछ दूर तक दौडऩा सीख जाते हैं, पंजों पर उठाना सीख जाते हैं, एक सीधी रेखा में चलना सीख जाते हैं। गाँव कनेक्शन अखबार के पास न विज्ञापनों की भरमार है, न कोई निवेशक, लेकिन फिर ये तीन साल कि उम्र में दौडऩा सीख रहा है, और सीधी रेखा में चलना सीख रहा है। पेड न्यूज़ या बिके हुए समाचारों के युग में हमारी इमानदारी और सकारात्मकता बनी रहे, यही हमारी लड़ाई है।
हम अक्सर सरकारों, व्यवस्था से जुड़े सवाल उठाते हैं। तीसरी वर्षगाँठ के इस विशेष अंक में हम जवाब ढूँढ रहे हैं। हमने नागरिकों से जुड़ी कई समस्याओं के लिए वो सुझाव दिए हैं जो हमारी नजऱ में व्यावहारिक हैं, और सरकारों द्वारा कार्यान्वित किए जा सकते हैं।
आज गाँव कनेक्शन भारत का सबसे बड़ा ग्रामीण अख़बार है। एक लाख प्रतियों और आठ क्षेत्रीय अंकों के साथ ये पचास जिलों में 15 लाख पाठकों तक हर हफ्ते पहुंचता है।
लेकिन इतना आसान कहां था ये सफ़र। सब कहते थे गाँव में ऐसा है ही क्या जो अख़बार में लिखा जाए और गाँव में ऐसा है ही कौन जो अख़बार में पढ़ा जाए? ये शर्मनाक था और दुखद भी। गाँव भारत की राजनीति तय करते हैं और अर्थव्यस्था पर गहरा असर डालते हैं। एक ऐसे देश में जहां हर तीन में से दो लोग गाँव में रहते हैं, गाँव का अपना कोई अख़बार नहीं था।
वर्ष 2012 में एक मकान बेच कर गाँव कनेक्शऩ की शुरूआत हुई। अख़बार लाँच तो हो गया था, लेकिन गाँवों में उसके जिंदा रहने के लिए उसकी जीवन रेखा जुड़ी थी उत्तर प्रदेश से 2,000 किलोमीटर दूर मुंबई से। वो शहर जहां मैं फिल्मों में गीत लिखता था, फिल्मों की पटकथा लिखता था, रेडियो पर कहानियां सुनाता था। हमारे युवा लेखकों की मंडली नए-नए प्रोजेक्ट लेकर पैसे कमाने की कोशिश करती रही, ताकि गाँव का ये अखबार जि़न्दा रहे।
गाँव कनेक्शन जिंदा रहा और तेजी से लोकप्रिय हुआ, यही उसकी सबसे बड़ी जीत थी। 2013 में गाँव कनेक्शन के संपादक डॉ. एसबी मिश्रा ने पहले उत्तर भारत में फिर राष्ट्रीय स्तर पर यूनाइटेड नेशन समर्थित लाडली पुरस्कार जीता, सर्वेश्रेष्ठ एडिटोरियल के लिए। डीडी नेशनल पर गाँव आधारित हमारे टीवी शो गाँव कनेक्शन को अभूतपूर्व रेटिंग मिली। शहरी भारत का गाँवों से कनेक्शन मजबूत हुआ। उसी वर्ष मुझे और एसोसिएशट एडिटर मनीष मिश्रा को गाँव कनेक्शन के लिए भारत का सर्वोच्च पत्रकारिता पुरस्कार रामनाथ गोयनका अवार्ड जीतने का अवसर मिला। 2014 में गाँव कनेक्शन की अनुसिंह चौधरी ने पहले लाडली फिर 2015 में रामनाथ गोयनका अवार्ड जीता। अंतरष्ट्रीय चैनल अल जजीरा ने हमारे काम को सराहा…जर्मन रेडियो डॉलचे वैले ने सामाजिक सरोकार के लिए विश्व की सबसे अच्छी बेवसाइट में गिना। दुनिया की सबसे बड़ी न्यूज एजेंसी एसोसिएट प्रेस ने गाँव कनेक्शन के काम को एक मिसाल बताया। ब्रिटेन के थॉमसन फाउंडेशन ने गाँव कनेक्शन के भास्कर त्रिपाठी को उनके उच्चकोटि के काम के लिए विकासशील देशों के 12 रिपोर्टरों में चुना। दूरदर्शन के बाद गाँव कनेक्शन टीवी पर एक नए अवतार में आया। देश के नंबर वन न्यूज चैनल आज तक पर ‘आज तक का गांव कनेक्शन’ के नाम से।
ईमानदारी की पत्रकारिता करते हुए तीन साल हो गए हैं। अब अगले तीस साल की तैयारी है। स्वयं प्रोजेक्ट के जरिए गाँव कनेक्शन हजारों रूरल कम्यूनिकेटर या ग्रामीण पत्रकार बनाना चाहता है। हमारा अगला कदम होगा साप्ताहिक से डेली अख़बार बनना। ये सफर शायद असंभव है, लेकिन असंभव के सिवा कुछ करना हमने सीखा नहीं। हमारे पास अगर कोई है तो वो हैं आप… अपना प्यार दीजिए, आशीर्वाद दीजिए, हम इस सफ र पर चल सकें। चाहे अकेले ही चलना पड़े।