लखनऊ। उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ समेत अधिकांश जिले ठंड और कोहरे की चपेट में हैं। बुधवार और बृहस्पतिवार को बाराबंकी, सीतापुर, लखीमपुर, उन्नाव समेत अधिकांश जिलों में सुबह 11 बजे तक सूरज के दर्शन नहीं हुए। कोहरे और पाले का असर आलू और सरसों समेत सभी फसलों पर नजर आने लगा है।
मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में बदली छाए रहने और ठंड बढ़ने की आशंका जताई है। कृषि मौसम प्रभाग लखनऊ के निदेशक डॉ. जेपी गुप्ता ने बताया, “पिछले हफ्ते का औसत न्यूनतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस रहा था। आने वाले दिनों में सुबह ऐसे ही कोहरा छाया रहेगा। लेकिन दिन में मौसम साफ रहेगा। मौसम को देखते हुए प्रदेश के किसान सहमे हुए हैं। बाराबंकी जिले में काजीबेहटा कस्बे के पास सड़क किनारे सुबह 8 बजे केले की फसल में पानी लगा रहे राम जीवन (45 वर्ष) बताते है, ”जब से ये पाला पड़ना शुरू हुआ है पत्तियां ऐंठने लगी हैं। लोगों ने दवा के साथ पानी लगाने (सिंचाई) की सलाह दी थी, वहीं कर रहा हूं।”
बाराबंकी जिले में सूरतगंज ब्लॉक के टांडपुर निवासी किसान रामसागर (61 वर्ष) ने इस बार तीन एकड़ में आलू बोया है। इसमें वो दो बार रासायनिक दवाओं का छिड़काव कर चुके हैं। वो बताते हैं, ”पिछले वर्ष कोहरे के चलते काफी नुकसान हो गया था। इस बार फिर वही हाल है। दोपहर तक सूरज निकल नहीं रहा है, पत्तियां काली पडऩे लगी हैं तो अभी से दवा डाल दी है।”
किसानों की चिंता को जायज बताते हुए सीतापुर जिले में कटिया कृषि विज्ञान केंद्र में कृषि वैज्ञानिक फसल सुरक्षा डॉ. डीएस श्रीवास्तव बताते हैं, ”ये मौसम गेहूं को छोड़कर सभी दलहनी, फल और सब्जियों वाली खेती के लिए नुकसानदायक है। दिन में 18-20 फोन आते हैं, किसानों के जिसमें 8-10 फोन पाला-कोहरा से जुड़ी होती हैं।” वो आगे बताते हैं, ”दिन का तामपान 22 डिग्री सेल्सियस से कम होने यानि मौसम में ज्यादा नमी होने पर भुनगे और माहू जैसे चूसक कीड़े तेजी से सक्रिय होते हैं। ये पत्तियों का रस चूस लेते हैं। साथ ही ये अपने शरीर से पत्तियों पर चिपचिपा पदार्थ (हनी ड्यू) छोड़ते हैं जिस पर फफूंदी आक्रमण करती है। पूरी पत्ती पर फफूंदी होने से प्रकाश संश्षलेण की क्रिया (पौधे का खाना बनना) प्रभावित होता है और वो कमजोर हो जाती हैं।”
किन फसलों पर असर
आलू, मटर, मसूर, चना, अरहर, टमाटर, केला समेत लगभग सभी दलहनी फसल और सब्जियों वाली फसलों पर कोहरे का असर पड़ता है।
बचाव
इससे पहले की आप की फसल पर पाले का असर हो कृषि वैज्ञानिक किसानों को एहतियात बरतने की सलाह देते हैं। बाजार से नीम का साबुन लें और उसे रातभर एक जग में भिगो दें। सुबह इसका पेस्ट बना लें और 15 लीटर की टंकी में डालकर घोल बना लें। अगर संभव हो तो दो मिली प्रति लीटर पानी में नीम का तेल भी डाल लें, फिर इसे एक बीघे खेत में छिड़काव करें। इससे न सिर्फ पाला बेअसर होगा और फंगस, हनी ड्यू का असर भी खत्म हो जाएगा। एक एकड़ में 7-8 टंकी घोल का छिड़काव करना चाहिए। ये उपाय असरदार तो है ही खर्च भी कम आता है। इसके अतिरिक्त फसल प्रभावित हो गई है तो रासायनिक दवाओं में कार्बेडा जिम, फफूंदी नाशक हेमेडा क्लोपारिड का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर फसल चौपट होती नजर आ रही तो एक-दो मिली प्रतिलीटर सल्फ्यूरिक एसिड का भी प्रयोग करें।
“खेती में हल्की सिंचाई जरूर करें। खेतों की मेढ़ और आसपास खरपतवार न उगने दें। जो घास-खरपतवार उगा है, उसे शाम को खेत के चारों तरफ जलाकर धुआं करें। कंडे, उपलों और तापने के लिए जलाई गई आग की राख का ठंडी होने पर पौधों पर छिड़काव करें। पत्तियों पर राख पड़ी होने से चूसक कीड़े पत्तियों का रस नहीं चूस पाएंगे। फफूंदी का असर नहीं होगा और पौधों में गर्मी बनी रहेगी।” डॉ. डीएस श्रीवास्तव, कृषि वैज्ञानिक फसल सुरक्षा, कृषि विज्ञान केंद्र सीतापुर ने बताया।
क्यों होता है असर
पत्तियों के मुरझाने, पीली पड़ने या फिर मुड़ने को ही पाला लगना कहते हैं। इस दशा में पत्तियों पर फफूंद का भी असर हो जाता है। सूरज की गर्मी न मिलने से पौधे अपने लिए पर्याप्त खाना नहीं बना पाते हैं और वो विकास बड़े होने की जगह अपने जीवन के लिए ही संघर्ष करने लगते हैं। ऐसे पौधे अगर जिंदा रह भी गए तो उत्पादन पर असर पड़ता है।