नई दिल्ली। चाइना, स्पेन, टर्की और इटली जैसे देशों के साथ-साथ भारत की सौ से ज्य़ादा कंपनियां दिल्ली में इकट्ठा हुई थीं कृषि उपकरणों के ऐसे ज़खीरे के साथ, जो भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को सुधारने में सक्षम हैं। लेकिन इस जमावड़े ने देश में कृषि उपकरणों के बाज़ार से जुड़े कई सवाल खड़े किए हैं।
क्या देश का किसान कृषि उपकरणों को अपनाने के लिए तैयार है, उसे जानकारी है? क्या उपकरणों की कीमत भारतीय किसानों के पहुंच में है? क्या उपकरण उनकी ज़मीन और फसल के हिसाब से है?
”भारत कृषि उपकरणों के लिए दरअसल एक बहुत रूढि़वादी बाज़ार है, जो अभी बदलाव के दौर में है। कृषि मजदूर कम हो रहे हैं तो किसान तकनीक को अपनाने के लिए रुझान दिखा रहे हैं लेकिन अभी संकोच बचा है,” देश के बड़े कृषि उपकरण निर्माताओं में से एक ‘जेसी’ कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कनव अग्रवाल ने कहा। कंपनी अपने उन्नत रोटावेटर का प्रचार कर रही है। ‘एग्रीमैक-2015’ नामक इस अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, भारतीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय व अन्य राष्ट्रीय स्तर की खेती से जुड़ी संस्थाओं के साझा प्रयास से किया गया।
प्रदर्शनी में दिखाए गए कृषि उपकरणों की आवश्यकता देश को इसलिए भी है क्योंकि देश, कृषि की मौजूदा चार प्रतिशत सालान वृद्धि को बढ़ाकर नौ प्रतिशत तक लाना चाहता है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के मुताबिक वर्ष 2020 तक भारत को मौजूदा उत्पादक के दोगुने की आवश्यकता होगी। आज़ादी के लगभग छह दशक बाद अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ भारत अगले चार सालों में उत्पादन को बिना तकनीकी मदद के तेजी से नहीं बढ़ा सकता।
लेकिन देश की खेती में उपकरणों को बढ़ावा देने में फिलहाल कई अडचनें हैं। लगातार पिछले दो सालों में किसानों की कई फसलें खराब होने से किसानों की खरीद क्षमता को गहरा झटका लगा है, जिसका असर उपकरणों के बाज़ार पर भी साफ़ देखने को मिल रहा है।
“लगातार मौसमी आपदाओं के कारण कृषि उपकरणों के बज़ार की हालात बहुत खराब है। यह साल तो बहुत ही ज्य़ादा बुरा बीता है। उपकरण बनाने वाली कुछ कंपनियों की हालत तो ऐसी है कि वो कर्मचारियों की तनख़्वाह नहीं दे पा रहे हैं”, अग्रवाल ने बताया। उन्होंने यह भी कहा कि बाज़ार की यह स्थिति 2017 तक सुधरेगी, क्योंकि अगर 2016 में फसलें अच्छी हुई तो किसान पहले कुछ पैसा जोड़ेगा, अभी उसके पास बिल्कुल भी पैसा नहीं बचा है। आपदाओं से बर्बाद हुई देश की खेती की क्षतिपूर्ति में कृषि उपकरणों के माध्यम से बहुत तेजी आ सकती है।
खराब मौसम के साथ ही भारतीय कृषि की कुछ आधारभूत समस्याएं भी खेती को तकनीक से जोड़ने में रोड़ा हैं। “किसान बदलावों को जल्दी अपनाते नहीं हैं। वे जिन पारंपरिक तरीकों से किसानी करते आए हैं, उसके इतर नए तरीकों से संतुष्ट नहीं होते”, कृषि उपकरण निर्माता कम्पनी स्वान एग्रो के निदेशक बरनप्रीत सिंह अहूजा ने बताया।
“देखिए आने वाले सालों में केवल बड़े और छोटे किसान ही बचेंगे, बीच के खत्म हो जाएंगे। अब तकनीक को, उपकरणों को इनके हिसाब से ढलना होगा। देखिए विदेशी तकनीकों को सीधे लाकर भारत में लागू नहीं किया जा सकता, उनके मुकाबले हमारे यहां एक किसान के पास औसत ज़मीन का आकार बहुत छोटा है,” अग्रवाल ने बताया। वर्ष 2011 में जारी कृषि जनगणना के हिसाब से देश के 80-90 प्रतिशत किसानों के पास ज़मीन एक हेक्टेयर से भी कम है।
वे आगे बताते हैं, ”हमने देखा है कि दक्षिण भारत का किसान तो सहकारी समूहों को बनाकर कृषि उपकरणों की खरीद करता है लेकिन उत्तर भारत के कृषि प्रधान राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसान साथ नहीं आना चाहता है।”
अग्रवाल के हिसाब से सरकार को किसान तक जाकर कृषि उपकरणों की जानकारी पहुंचानी होगी कि इससे फायदा क्या है, अभी सरकार सिर्फ बड़े स्तर पर ही कार्यक्रम कर रही है। सरकार को कृषि उपकरण के क्षेत्र में गंभीर कंपनियों को भी छांटकर उन्हें समर्थन देना चाहिए। वरना होता ये है कि अधोमानक उपकरण किसान खरीदता है फिर खराब हो जाने पर उसका विश्वास उपकरणों पर से उठ जाता है। आधोमानक उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के वजह से खरीद के बाद सर्विर्सिंग न मिलने की समस्या भी बड़ी है।
कृषि उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए सुझाव
कृषि अर्थव्यवस्था के जानकार और ‘येस बैंक’ के संस्थापक राणा कपूर ने ‘द हिंदू बिजनेस लाइन’ अख़बार में छपे अपने लेख में भारत के कृषि उपकरणों के बाज़ार की समस्याओं को सुधारने के कुछ सुझाव दिए। उनमें से कुछ सुझाव हैं-
– सरकार को ऐसे संरचनात्मक ढांचे को बढ़ावा देने की ज़रूरत है जिसमें कृषि उपकरणों को किराए पर लिए-दिए जाने की न्यायोचित व्यवस्था हो। (उत्तर प्रदेश सरकार की फार्म मशीनरी बैंक योजना को इस रूप में ढाला जा सकता है। अभी योजना का मुख्य उद्देश्य स्वयं सहायता समूहों को सशक्त करना है।)
– ज़मीन का आकार-प्रकार और फसल जैसी हमारे देश के किसानों की आवश्यकता के हिसाब से कृषि उपकरणों को ढालने और उन पर शोघ के लिए सरकार को प्रबंध करने चाहिए।
– कृषि विश्वविद्यालयों ने आजतक कृषि उपकरणों के क्षेत्र में जो भी सफल प्रयोग और खोज की हैं, उनका व्यावसायीकरण किया जाना चाहिए।
– किसान के हित को ध्यान में रखते हुए कृषि उपकरणों के मानकों को निर्धारित करके उनका कड़ाई से पालन करवाने की व्यवस्था होनी चाहिए।
– छोटे किसानों को कृषि उपकरणों के उपयोग के लिए जागरूक करना चाहिए ताकि यदि वे कोई उपकरण खरीदें तो उसका भरपूर वित्तीय फायदा उठा पाएं। (उदाहरण के तौर पर एक 4 हैक्टेयर खेती वाले किसान को बताया जाना चाहिए कि उसे बड़ा ट्रैक्टर खरीदने की आवश्यकता नहीं है।)
मंझोल व छोटे किसानों को कृषि उपकरणों के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करने के लिए:
– गाँव या पंचायत स्तर पर मशीनों की खरीद के लिए समूहों व सहकारिता को बढ़ावा देना। (अभी बहुत से कृषि उपकरणों की खरीद में सरकार वित्तीय मदद केवल एक किसान को देती है, समूहों को नहीं)
– छोटे किसान यदि सेकेण्ड हैण्ड ट्रैक्टर खरीदना चाहें तो उसकी खरीद के लिए वित्तीय मदद का प्रावधान किया जाए।
– कृषि विस्तार अधिकारी किसानों को उनके खेते के हिसाब से उपयुक्त उपकरण, क्षमता व कीमत की जानकारी दें।
शैलेश मिश्र/भास्कर त्रिपाठी