नीलेश मिसरा के शब्दों में जानिए ‘हज़रतगंज’

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ये हज़रतगंज है यारों,

बड़ा कमाल है।

जवान है दिल का चाहे उमर 

दो सौ साल है,

ये हज़रतगंज है यारों।

बिताए लाड़पन में यहां लम्हे कितने जाने 

यहां आने को पापा से किए कितने बहाने 

”पापा वो बुक लेनी थी मैं यूनिवर्सल हो आऊं?”

”पापा वो बाटा जाना था ज़रा छिलते हैं पांव”

”पापा वो साहू में संतोषी माँ की फिल्म है शायद”

तमाम लखनवी पापाओं को 

इल्म है शायद 

कि चाहे जिस उमर की हों 

कमी हैं कुछ कहानी में 

जो हज़रजगंज पे मत्था 

न टिका हो जवानी में 

ये हज़रतगंज है यारों ,

बड़ा कमाल है।

जवान है दिल का चाहे उमर 

दो सौ साल है,

ये हज़रतगंज है यारों।

यहां आकर जो कुछ 

ज्यादा मचलते आपका दिल है 

फिकर की क्या जरूरत है

पास में नूर मंजिल है 

यहां वापस जरूर आता 

यहां पर जो टहेलता है 

अमीनाबाद सुनते हैं कि इससे 

खूब जलता है

ये हज़रतगंज है यारों ,

बड़ा कमाल है।

जवान है दिल का चाहे उमर 

दो सौ साल है,

ये हज़रतगंज है यारों।

 

कभी ये गंज कुछ यारों को 

अपनी याद करता है

यहां थीं सीढिय़ां मेफेयर की

आशिक जो चढ़ते थे 

ये तो वो लोग जो अब पापा बन के 

धौंस देतें है

”तुम्हारी उमर में हम बारह-बाहर घंटे पढ़ते थे”

ये हज़रतगंज है यारों ,

बड़ा कमाल है।

जवान है दिल का चाहे उमर 

दो सौ साल है,

ये हज़रतगंज है यारों।

ये हज़रतगंज एक रास्ता नहीं है

ये हज़रतगंज एक ख्याल है

ये मन का वो मोहल्ला है 

जिससे मैं लेकर फिरता हूं 

किसी भी शहर जाऊं मन में तो 

गंजिंग मैं करता हूं 

हूं दुनिया के किसी कोने में,

चाहे मैं जहां हूं 

जऱा सा गंज अपने दिल में लेके 

घूमता हूं 

ये हज़रतगंज है यारों ,

बड़ा कमाल है।

जवान है दिल का चाहे उमर 

दो सौ साल है,

ये हज़रतगंज है यारों।

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