मुख्यमंत्री से जीवन को पहिए मिले पर सड़क नहीं आई

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भदवारी (बांदा)। बांदा से करीब साठ किलोमीटर दूर भदवारी गाँव में रहने वाले देवराज यादव के छोटे से घर में एक तिपहिया साइकिल धूल खा रही है। ये साइकिल उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अनुदान में दी थी। चालीस साल तक एक पैर पर ही दस बीघे खेत में हल चलाने वाले देवराज तिपहिया को देखकर यही कहते हैं, “पहिया तो मिल गया, पर सड़क?”

देवराज यादव का घर भदवारी गाँव के पतवन का पुरवां के अंतर्गत आता है। मुख्यमंत्री ने दिव्यांग देवराज को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें ट्राईसाइकिल तो दे दी, लेकिन उसका सदुपयोग करने के लिए उसके घर तक सड़क ही नहीं है। उसके घर तक पहुंचने के लिये करीब एक किलोमीटर तक खेतों पर मेड़ के सहारे एक पतली पगडंडी जाती है।

“साइकिल को चलाने के लिए पहले उसे उठाकर रोड तक ले जाना पड़ता है। इसके लिए एक आदमी की ज़रुरत पड़ती है,” देवराज के बेटे उमाशंकर (24 वर्ष) बताते हैं।

“हम सोचे थे कि साइकिल आने से पिताजी को मदद मिल जाएगी, लेकिन बिना सड़क के इसका कोई फायदा नहीं है।” उमाशंकर निराशा जताते हैं।

बीस साल की उम्र में एक दुर्घटना में अपना पैर खो देने के बाद भी देवराज यादव ने पूरे चालीस साल तक बिना किसी की मदद के अपने खेतों पर अकेले काम किया। पैंसठ साल के देवराज बताते हैं कि छह लोगों का परिवार पालने के लिए वो अपने दर्द को भूल गए और एक पैर पर लकड़ी बांधकर उसकी मदद से ही चलने की कोशिश करने लगे।

“कभी किसी से दरवाजे पर मांगने नहीं गया। अपने राशन गल्ले का इंतजाम खुद किया,” देवराज सिंह बड़े गर्व से बताते हैं।

देवराज के बारे में जब एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने सोशियल मीडिया पर लिखा तो उसे लोगों ने खूब शेयर किया। बाद में समाचार चैनलों और अखबारों के ज़रिये ये खबर करोड़ों लोगों तक पहुच गई। इसी क्रम में मुख्यमंत्री तक जब ये खबर पहुंची तो उन्होंने तुरंत देवराज को बुलवा भेजा और उसे एक कृत्रिम पैर और ट्राईसाइकिल अनुदान में दी।

हालांकि कृत्रिम पैर लग जाने से देवराज सिंह को राहत ज़रूर मिली है। देवराज के घर तक सड़क प्रस्तावित तो है लेकिन उनका दावा है कि जिस जगह से सड़क नपी है वो स्थानीय ग्राम प्रधान के सगे सम्बन्धियों के खेतों में आती है। लेकिन वो चाहते हैं कि सड़क पतवन के पुरवां में रहने वाले लोगों के खेतों से आये।

“हमारे पास तो वैसे ही थोड़ी ज़मीन है वो भी सड़क में कट गई तो खेती कहां करेंगे?” देवराज सिंह यादव के पड़ोस में रहने वाले दयाशंकर (35 वर्ष) बताते हैं।

इस बारे में ग्राम प्रधान रणवीर सिंह ने बताया, “सड़क के लिए जो जमीन आवंटित की गयी है उस पर सड़क बनाने में कुछ परेशानियाँ हो रही है जिस कारण वहां पर सड़क नहीं बन पायी है। अगर पतवन के पुरवां वाले अपनी ज़मीन दे देते तो सड़क बन जाती”।

देशभर के लिए प्रेरणा बन चुके देवराज के पुरवां की हालत गाँव के अन्य पुरवों से बदतर है। इस पुरवां में अब तक बिजली नहीं आई, जबकि बाकी पुरवों तक बिजली और सड़क दोनों पहुंच चुकी हैं। सरकारी आवास योजनाओं के तहत बनने वाले घरों का भी यहां कोई निशान नहीं दिखता। सरकार की तरफ से बनने वाले शौचालय भी यहां नदारद हैं।

हालांकि ग्राम प्रधान ने गाँव कनेक्शन को आश्वासन दिया कि वो जल्द ही इस पुरवां में सोलर लाइट की व्यवस्था कर देंगे।

भले ही देवराज के हौसले को दूर-दूर तक लोग सलाम कर रहे हों लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि अपने गाँव के बीच एक छोटी सी बस्ती में वो आज भी उपेक्षित हैं।

रिपोर्टर – उमेश पंत/आकाश द्विवेदी

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