मछली उत्पादन का गढ़ बना अकरहरा गाँव

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सरकार की उदासीनता से नाराज हैं मछली पालक पिछले वर्ष बाढ़ में बह गई थीं लाखों रुपए की मछलियां

रिपोर्टर – दीना नाथ

सिद्धार्थनगर। नेपाल की अंतररष्ट्रीय सीमा से सटे सिद्धार्थनगर जनपद के किसान मत्स्य पालन के क्षेत्र में सफलता की नयी कहानी लिख रहे हैं। जनपद के बढऩी विकास खंड के गांव अकरहरा में लगभग 60 तालाबों के साथ किसानों ने गाँव को मछली पालन का गढ़ बना दिया है।

जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में स्थित अकरहरा गॉव को जिले के लोग मछलियों के तालाब वाला गॉव कहने लगे हैं। इस गाँव में 100 एकड़ जमीन पर छोटे-बड़े 40 तालाबों में मछलियां पाली जा रही हैं। करीब 2,000 की आबादी वाले इस गॉव में मत्स्य पालन सबसे बड़ा रोजगार है। इससे 150 से भी ज्यादा परिवारों को प्रत्यक्ष जबकि तीन दर्जन से ज्यादा परिवारों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। हालांकि अपनी मेहनत से गॉव में नीली क्रांति लाने वाले ये किसान सरकार और मत्स्य पालन विभाग के रवैये से काफी नाराज हैं।

अकरहरा के मत्स्य पालक हमीद हसन (48 वर्ष) बताते हैं, ”एक एकड़ में बने तालाब में एक लाख रुपये की लागत लगाने पर सालाना करीब तीन लाख रुपये की आमदनी हो जाती है, लेकिन पिछले साल आई बाढ़ में अधिकांश किसान बर्बाद हो गए। सैलाब में तालाब टूट गए और लाखों रुपये की मछलियां बह गईं।”

मत्स्य विभाग से नाराज हमीद आगे बताते हैं, ”हम लोगों को भरोसा था कि विभाग कुछ ना कुछ आर्थिक मदद करेगा, लेकिन आज तक कोई अधिकारी देखने तक नहीं आया।”

अभी तक नहीं ली गई सुध

वर्ष 2014 में आई बाढ़ ने बढऩी विकास खंड के अकरहरा, मलगहिया, बैरिहवा और चरहिवा गॉव के मछली पालकों को काफी नुकसान पहुंचाया था। खासकर अकरहरा में किसानों के अधिकांश कच्चे तालाब बाढ़ की चपेट में आ गए थे। इसके बाद किसानों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई थी लेकिन अभी तक उन्हें कोई मदद नहीं मिली है। इसे लेकर किसानों में काफी निराशा है।

पक्के तालाब नहीं हुई कामयाब

बाढ़ के दौरान नुकसान से बचने के लिए बड़े किसानों ने पक्के तालाब बनवाने शुरू किए थे। एक तालाब बनकर तैयार भी हुआ। लेकिन उस पर मछली पालन का काम शुरू किया गया तो असफलता हाथ लगी, दरअसल इस तरह के तालाब में लीकेज समस्या आ रही है। इसलिए किसान और परेशान हैं।

बारिश नहीं होने से हुआ नुकसान

इस बार अच्छी बारिश न होने की वजह से काफी नुकसान पहुंचा है। किसानों का कहना है पंपिंग सेट से तालाबों में पानी डाल रहे हैं। हालांकि काम तो चल रहा है लेकिन प्राकृतिक बारिश की बात ही कुछ और है। मछलियों की जो स्वाभाविक वृद्धि हो रही है वो कम है। इस बार जुलाई से काम शुरू किया गया था। अब जाकर उत्पादन शुरू हुआ है। प्राकृतिक बारिश का अलग असर होता है, इसलिए उत्पादन कम हो रहा है।

इन गॉवों में करीब दस वर्ष पहले कुछ किसानों ने रोजी-रोटी के लिए मछली पालन शुरू किया था, जो अब आसपास के दर्जनों गॉवों में रोजगार का बड़ा जरिया बन गया है। ये किसान पंगास प्रजाति की मछली के साथ-साथ रोहू, कतला और नैनी प्रजाति की मछलियां पालते हैं।

अकरहरा गॉव के ही हसीब कहते हैं ”अगर सरकार हम लोगों की थोड़ी सी मदद कर दे तो हमारी काफी समस्याएं सुलझ सकती हैं साथ ही मछली पालन बड़ा रोजगार बन सकता है।” कम लागत में ज्यादा मुनाफे वाला ये रोजगार इस विकास खंड में तेजी से फलफूल रहा है। अकरहरा की देखा-देखी आसपास के दर्जनों गाँवों में नीली क्रांति आती नजर आ रही है।

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