किसान की बेटी बनी चैंपियन

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रिपोर्टर – प्रदीपिका सारस्वत 

वाराणसी। एक छोटे गाँव के छोटे किसान की बेटी प्रियंका सिंह पटेल ने तमाम विरोधों के बावजूद अपनी मेहनत व लगन से राष्ट्रीय खिलाड़ी बनी। अपने परिवार और अपने गाँव का सम्मान बढ़ाया।

”सातवीं क्लास में अपने स्कूल की दौड़ प्रतियोगिता में जब मैंने पहली बार मैडल जीता था तो कभी नहीं सोचा था कि खेल मेरी जि़न्दगी बदल देगा” नीला ट्रेक पैंट और सफ़ेद स्पोर्ट्स टी-शर्ट पहने प्रियंका सिंह पटेल (28 वर्ष) हल्की सी मुस्कान के साथ बताती हैं।

वाराणसी के अराजीलाइन ब्लाक के गाँव कंठीपुर की प्रियंका ने खेल के प्रति अपने जुनून की वजह से जो उपलब्धियां हासिल की है वे किसी भी खिलाड़ी के लिए गर्व का विषय है। प्रियंका न सिर्फ वर्ष 2008 से 2014 तक के राष्ट्रीय खेलों में 3000 मीटर स्टीपलचेज़ प्रतियोगिता में प्रथम तीन में अपनी जगह बनाने में कामयाब रही हैं बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं जैसे वियतनाम एशियाई ग्रैंड प्रिक्स, एशियाई चैंपियनशिप एवं राष्ट्रमंडल खेलों आदि में भी देश का प्रतिनिधित्व करती रही हैं।

कम उम्र से विद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं से दौड़ की दुनिया में कदम रखने वाली प्रियंका का सफ़र बहुत आसान नहीं रहा।

”शुरुआत में मैं गाँव के मैदान पर एक स्थानीय कोच से ट्रेनिंग लेती थी पर बाद में मुझे भारतीय खेल प्राधिकरण के लखनऊ हॉस्टल से खेलने और सीखने का मौका मिला। मां-पिता जी ने हमेशा सहयोग किया पर पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने हमेशा डराने की कोशिश की। घरवालों के कान भी भरे कि लड़की को बाहर मत भेजो, शादी कर दो पर मैंने हार नहीं मानी। आज मेरे परिवार को मुझ पर गर्व है,” प्रियंका अपना अनुभव बताती हैं।

आज प्रियंका खेल जगत में अपनी पहचान बना चुकी हैं। इस वक्त वे रेलवे में टिकट निरीक्षक की नौकरी कर रही हैं। आने वाले एशियाई खेलों की तैयारियों में जुटी प्रियंका ने मई 2015 में शादी की है।

बालों को पीछे बांधते हुए प्रियंका बताती हैं, ”शादी वगैरह के चलते मैं खेल को बीच में उतना समय नहीं दे पाई थी पर मुझे अपने नए परिवार से पूरा समर्थन मिल रहा है, मैं अब एशियन गेम्स के लिए पूरी मेहनत कर रही हूं। देश के लिए पदक जीतना ही मेरा सपना है।”

सबसे अधिक प्रेरणा देने वाले खिलाडी के बारे में पूछने पर प्रियंका अर्जुन अवार्डी एथलीट माधुरी ए सिंह का नाम लेती हैं।

”माधुरीजी ने खुद तो खेल की दुनिया में अपना मुकाम बनाया ही और हम जैसे नए लोगों को आगे बढऩे में बहुत मदद की है, उनकी प्रेरणा के बिना मुंबई मैराथन मैं कभी नहीं जीत पाती, प्रियंका बताती हैं।”

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