लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 103वीं भारतीय विज्ञान काँग्रेस को संबोधित करते हुए इस बात पर जोर दिया कि कैसे पारंपरिक ज्ञान और आज की तकनीकों को साथ लाकर जलवायु परिवर्तन से कृषि को बचाया जाए।
”हमें पारंपरिक ज्ञान का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए। आज वो विलुप्त होने की कगार पर है। पारम्परिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को साथ में जोड़ना होगा, इससे समस्याओं से लड़के के ज्य़ादा ज़मीनी उपाए सोच पाएंगे। खेती में हमें पानी उपयोग को कम करके उसे ज्यादा उन्नत बनाना है और उत्पादों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता को भी बढ़ाना है। हमें पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों को साथ में जोड़कर खेती को ज्य़ादा सहनशील बनाना होगा” प्रधानमंत्री ने कहा।
देश लगातार पिछले कुछ फसल चक्रों से वितरीत मौसमी परिस्थियों के खेती में भारी नुकसान झेल रहा है। इस समस्या से निपटने की ओर ध्यान खींचते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ”हमें जलवायु परिवर्तन से हमारे जीवन पर पड़ रहे असर से भी लड़ने के लिए तैयार होना होगा। हमें कृषि को मौसम के परिवर्तनों के प्रति सहनशील बनाना होगा जिसके लिए पहले ये समझना ज़रूरी है कि जलवायु परिवर्तन का जैव विविधता पर असर क्या पड़ता है। हमें प्राकृतिक आपदाओं का अनुमान लगाने की तकनीकों को और अधिक सशक्त बनाना होगा।”
वर्तमान में भारत के 641 में से 247 जि़ले सूखा या सूखे जैसी परिस्थितियों को झेल रहे हैं।
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