लखनऊ। व्यस्तता भरे शहरी जीवन में कई पिता अपने बच्चों के साथ उतना वक़्त नहीं बिता पाते जितना उन्हें स्कूल छोड़ने और वहां से लाने वाला रिक्शेवाला बिताता है। लेकिन कौन है ये अजनबी? कहाँ से आया है? क्या वो नशा करता है? अपराधी है?
इस हफ्ते अलीगंज क्षेत्र से लापता हुई बच्ची के साथ बलात्कार, और फिर उसकी हत्या करने वाला तथाकथित तौर पर रिक्शा चालक केदारनाथ निकला। इससे पहले सीएम आवास और डीजीपी आवास के बीच लोहिया पथ पर हुई छात्रा से दरिन्दगी के मामले में भी रिक्शा चालकों का नाम आया। ऐसी कई घटनाएं राजधानी में हुई जिसमें रिक्शा चालकों पर आरोप लगा जबकि कुछ ने अपना जुर्म भी पुलिस की जांच में कबूल किया। इनमें से बड़ी संख्या में रिक्शेवाले रोज़ ड्रग्स लेते हैं।
लेकिन रिक्शेवालों के ऊपर नज़र रखने का अब तक कोई तरीका नहीं है। रिक्शे का रजिस्ट्रेशन होता है, रिक्शा किराये पर लेकर चलने वाले का नहीं। उनका किसी डेटाबेस में नाम नहीं होता। इस कमी को लखनऊ पुलिस अब पूरा करना चाहती है।
“रिक्शा चालकों को लेकर एक योजना बनाई जायेगी। इसमें समस्त चालकों की जांच कर उनका ब्यौरा थाने स्तर पर रखा जायेगा,” एसएसपी राजेश कुमार पांडेय ने गाँव कनेक्शन को बताया।
कौन है वो…
रिक्शाचालक इतने अव्यवस्थित हैं कि लखनऊ में रिक्शेवालों की ठीक-ठीक संख्या नगर निगम के अधिकारी भी नहीं बता पाते, हालांकि वे शहर में 25,000 रिक्शों के होने का अनुमान लगाते हैं। एक रिक्शे के नाम पर कई लोग चालक का लाइसेंस ले सकते हैं। लखनऊ में हर वर्ष 30,000 से अधिक नए रिक्शे लाइसेंस लेकर सड़कों पर उतरते हैं।
दिल्ली स्थित बाल सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ नीलिमा पाण्डेय ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ज़रुरत है कि शहर के हर कोने में काम कर रहे यातायात व्यवस्था कर्मियों का रजिस्ट्रेशन हो और वे ट्रैक किये जाएँ। इससे बच्चों और लड़कियों के विरुद्ध् हो रहे अपराध भी घटेंगे और ये गरीब अव्यवस्थित रिक्शा व ट्राली चालक आर्थिक सुरक्षा के घेरे में भी आ जायेंगे।”
नगर निगम जोनल अधिकारी जोन-2 संजय ममगाई कहते हैं कि रिक्शा चालकों का लाइसेंस बनाया जाता है। “लाइसेंस की फीस 20 रूपये ली जाती है। रिक्शा चालकों के फोटो, पहचान पत्र की जांच की जाती है।“लेकिन किराये पर रिक्शा चलाने वाले चालकों का कोई रिकार्ड नहीं रहता है। गांव से रोज़ी-रोटी की तलाश में गरीब लोग शहर की तरफ रोजगार के लिये आते है। मज़दूरी नहीं मिलने पर इनके सामने रिक्शा चलाने के अलावा कोई और चारा नहीं रहता है।
रिक्शा मालिक सिर्फ नाम पूछकर इनको 30 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से रिक्शा किराये पर दे देता है। कई रिक्शे वालों न कहा कि अपने कठिन जीवन, नशे की लत और शहर की चकाचौंध के कारण कई बार वे अपराध की ओर रुख कर लेते हैं।
“रूपये नहीं हैं इसलिए शादी नहीं हुई। दिनभर रिक्शा चलाकर रात को जब कमरे पर जाता हूं तो खाना भी बनाना पड़ता है। रिक्शावालों के बीच में रहते हुये नशे की आदत भी पड़ गई है,” बहराइच से आये रिक्शा चालक अनिल कुमार (38) ने बताया, “अच्छी जिंदगी जीने के लिये कभी कभी अपराध करने का भी मन करता है।”
नशे में चूर लखनऊ के बालू अड्डा पर रहने वालका रिक्शा चालक मोहम्मद शकील (44) बातचीत करने पर क्रोधित हो गया। क़ाफ़ी देर बाद शांत होने पर उसने कहा, “साहब हम क्या करें? नशा नहीं करेंगे तो रिक्शा नहीं चल पायेगा। रिक्शा चलाने के लिये बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। हम लोग भी इंसान है। हमको कोई नहीं पूछता है।”
रिपोर्टर – गणेश जी वर्मा