ईंट के इन डिब्बों में नहीं साफ होता पेट

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उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में शौचालयों की हालत बुरी, कहीं गायब है छत तो कोई भरता है कंडे

सीतापुर/बाराबंकी। स्वच्छ भारत मिशन के लिए सरकार ने बजट बढ़ाकर तीन गुना कर दिया है। पहली किस्त के रूप में 613 करोड़ रुपये पंचायती राज विभाग को मिल भी चुके हैं। इन पैसों से गाँवों में शौचालय समेत स्वच्छता से जुड़े दूसरे कार्य कराएं जा रहे हैं। लेकिन आज भी हजारों घरों में शौचालय नहीं है, जबकि जहां बने हैं उनकी हालत कई सवाल खड़े करती है।

सीतापुर जिले में रामपुर मथुरा ब्लॉक के पास केवड़ा गांव में बने अधिकांश शौचालय इस्तेमाल करने योग्य नहीं है। किसी की दीवार टूटी थी तो किसी की छत ही गायब थी। कहीं कंडे भरे हैं तो किसी शौचालय का आज तक इस्तेमाल नहीं किया गया था।

केवड़ा गांव के सुरेश कुमार (35 वर्ष) बताते हैं, ”चार-पांच साल पहले ये शौचालय बनाए गए थे। ये इतने छोटे हैं कि इस्तेमाल करने लायक ही नहीं थे। कई लोगों के घर में अगली बरसात में ही गिर गए थे।”

कुछ ऐसे ही हालात बाराबंकी जिले के भी कई गांवों में देखने को मिले। निंदूरा ब्लॉक के ग्राम पंचायत गड़िया के शौचालय सिर्फ खानापूर्ति जैसे थे। गड़िया बाजार के पवन शुक्ला (40 वर्ष) गांव के पहले घर के पास बना एक शौचालय दिखाते हुए कहते हैं, ”ये शौचालय नहीं पैसे की बर्बादी है, किसी काम के नहीं है, हम लोगों ने अपने पैसे से घरों में शौचालय बनवाए हैं।”

59193 ग्राम पंचायत वाले उत्तर प्रदेश में 2 करोड़ 87 लाख से ज्यादा घर हैं, इनमें वर्ष 1999 के बाद से अब तक 1 करोड़ 81 लाख 19 हजार घरों में शौचालय बनाए भी जा चुके हैं। पंचायती राज विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष में 2 लाख 30 हजार घरों में शौचालय बनवाए गए हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी भी एक बड़ी आबादी खुले में शौच जाना पसंद करती है।

सीतापुर जिले में ही रामपुर मथुरा ब्लॉक के मथौरा गांव में शाह आलम (35 वर्ष) बताते हैं, ”घर के बाहर वर्ष 2004 में नया शौचालय बनवाया गया था, लेकिन सालभर बाद भी उन्होंने उसका केवल एक बार इस्तेमाल किया है। इस डिब्बे में मेरा पेट साफ नहीं होता है, बाहर इतने खेत खाली पड़े हैं। कहीं भी बैठ जाओ।”

प्रदेश में शाह आलम जैसे लोगों की संख्या भी लाखों में है। भारत सरकार 1999 से अपने पैसों से लोगों के घरों में शौचालय बनवा रही है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सर्वेक्षण के मुताबिक देश में 2 करोड़ 76 लाख शौचालयों का वास्तविक जमीन पर की रिकॉर्ड नहीं है। 1 करोड़ 41 लाख शौचालय बेकार पड़े हैं यानी एक तिहाई से ज्यादा शौचालयों का जनता को कोई फायदा नहीं मिला।

शाह आलम की तरह प्रदेश में एक बड़ी आबादी है जिसका इन शौचालयों में बैठना गंवारा नहीं है। प्रदेश और गांव बदलने पर दलील अलग हो सकती है। कोई कहता है बाहर खाली मैदान पड़े हैं तो कोई कहता है ईंटों के बीच उनका पेट साफ नहीं होता।

घर में शौचालय बनवाने के लिए उत्तरदायी पंचायती राज विभाग के अधिकारी भी मानते हैं, लोगों की सोच एक बड़ी बाधा है। निदेशक पंचायती राज उदयवीर सिंह यादव कहते हैं, ”सरकार शौचालयों के निर्माण पर एक बड़ी रकम खर्च कर रही है। लेकिन लोगों का सहयोग नहीं मिल रहा। खुले में शौच से मुक्त भारत के लिए लोगों की सोच भी बदलनी होगी।” वो आगे बताते हैं, ”लोगों को जागरूक करने के लिए अब बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाए जा रहे हैं।”

रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैशनेट इकोनॉमिक्स की ओर से बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में किए गए एक अध्ययन के अनुसार शौचालय वाले करीब 40 फीसदी घरों में भी कम से कम एक सदस्य खुले में शौच जाता है।

बारिश में भी खुले में जाते हैं शौच

स्वाती शुक्ला 

दादरा (बाराबंकी)। सरकारी कार्यों के क्रियान्वयन के मामले में जिलों में अव्वल बाराबंकी जिले के सैकड़ों गांव में आज भी शौचालय नहीं है। कई गाँवों में बजट आने के बाद बाद शौचालय नहीं बनवाए जा सके हैं। लोग बारिश में भीगते हुए भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर मसौली ब्लॉक के ग्राम पंचायत बड़ागांव में आठ गाँव आते हैं। इनमें करमुल्ला, शाहपुर, कलौरिया, रामदीन पुरवा के किसी भी घर में शौचालय नहीं मिला। 7000 की आबादी वाली ग्राम पंचायत के दूसरे गांवों में शौचालय बने तो थे लेकिन उनमें से अधिकांश जर्जर थे।

शाहपुर गांव की तबस्सुम (21 वर्ष) बताती हैं, ”मेरे गांव में 11 घर हैं लेकिन किसी के यहां शौचालय नहीं है। अब गर्मी हो या बरसात हम लोगों को बाहर ही जाना पड़ता है।”

ग्राम पंचायत की प्रधान मालती देवी (40 वर्ष) बताती हैं, ”निर्मल स्वच्छ अभियान के तहत 50 हजार रुपये आए थे, जिसमें हमने सभी गाँव में शौचालय बनवाए। कुछ लोगों ने खुद शौचालय नहीं बनवाने दिया।”

वहीं देवा ब्लॉक के भवानीपुर गाँव में भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। गांव के राम गोपाल यादव (45 वर्ष) बताते हैं, ”गाँव में 3000 लोग रहते हैं। लेकिन किसी भी घर में शौचालय नहीं है। प्रधान से कई बार कहा लेकिन वो हां-हां कर बनवाने की बात करते रहे, लेकिन कभी काम शुरू नहीं कराया।”

हालांकि पिछले दिनों ब्लॉक में एक मीटिंग के दौरान गाँव कनेक्शन के पूछने पर कई किसानों ने कहा कि शौचालय के लिए पैसा नहीं मिला। जो पैसा आया वो लोहिया ग्रामों के लिए था।

वहीं देवा ब्लाक के ब्लॉक प्रमुख खुशीराम गौतम बताते है, ”प्रधान कभी भी मनरेगा के तहत शौचालय बनवा सकते है, लेकिन वो ऐसा करना नहीं चाहते हैं।”

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