होली से पहले पानी की बात…

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दीप उपाध्याय

बरसों से हम सुनते आ रहे हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा। इस कथन को लेकर तरह-तरह की दलीलें दी जाती हैं, आंकड़े दिए जाते हैं और पानी को लेकर लड़ाई के उदाहरण भी दिए जाते हैं। पैसिफिक इंस्टिट्यूट नाम के एक अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक ने ईसा पूर्व से लेकर अब तक के उन झगड़ों को सूचिबद्ध किया है जिनका संबंध पानी से है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कई देशों के बीच पानी को लेकर मोलभाव चल रहा है। खुद हमारे देश का चीन, पाकिस्तान, और बांग्लादेश के साथ पानी का विवाद सुर्खियां बनाता रहता है।

-लेकिन क्या स्थिति इतनी विकराल हो गयी है कि आम हिंदुस्तानी को भी अब ये खतरे की घंटी सुननी चाहिए ?

-क्या हम सब एक बड़े पानी के संकट की तरफ बढ़ रहे हैं?

-क्या आने वाले समय में पानी ही देश की राजनीति से लेकर अर्थनीति तक को तय करेगा ?

हाल की कुछ घटनाओं पर नज़र डालें तो इस आशंका पर यकीन होने लगता है। एक साल के अंदर पंजाब में चुनाव होने वाले हैं। हर पार्टी के नेता जमीन पर उतर चुके हैं। लोगों की नब्ज टटोली जा रही है। मुद्दों की तलाश जोरों पर है। तमाम समस्याओं से जूझ रही पंजाब की अकाली-बीजेपी सरकार को पानी के झगड़े में ही रोशनी नजर आ रही है। झगड़ा दशकों पुराना है, लेकिन नेताओं को यकीन है कि इससे जज्बात उमड़ेंगे। पंजाब सरकार ने सतलुज को यमुना से जोड़ने वाली लिंक नहर के खिलाफ प्रस्ताव पास किया तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी उसे गलत नहीं कह पायी। पंजाब में सक्रिय सारी पार्टियां एक सुर में कह रही हैं कि पंजाब के पास इतना पानी नहीं है कि वो दूसरे राज्यों (हरियाणा, दिल्ली) को पानी दे सके। दिल्ली के मुख्यमंत्री होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल भी उस नहर का विरोध करने लगे जिसका पानी दिल्ली तक आना है क्योंकि इस वक्त केजरीवाल को दिल्ली से ज्यादा ताकत पंजाब में नजर आ रही है।

सबको पता है कि पंजाब के चुनावों तक मसला गर्म रहेगा, पंजाब में पानी की कमी का समाधान देने के बजाए नेता जनता को इस बात को लेकर डराएंगे कि सतलुज का पानी यमुना तक चला गया तो पंजाब के किसानों का कितना नुकसान होगा। ये राजनीति है। पानी की राजनीति का थोड़ा और उग्र रूप मुंबई में देखने को मिल रहा है। उत्तर भारत विरोधी राजनीति करने वाले राज ठाकरे को महाराष्ट्र में पानी की किल्लत ने उत्तर भारतियों के खिलाफ मुहिम चलाने का मौका दे दिया। राज ठाकरे का मानना है कि उत्तर भारत के लोग होली में पानी की बर्बादी करते हैं इसलिए अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को उन्होंने फरमान दे दिया कि अगर कोई उत्तर भारतीय पानी की बर्बादी करता है तो उसकी जमकर पिटाई की जाए। होली में पानी की बरबादी के खिलाफ मुहिम चलाना अच्छी बात है लेकिन पानी के नाम पर बिहार यूपी को महाराष्ट्र से लड़ाने का काम एक खतरनाक राजनीति का संकेत है।

महाराष्ट्र में पिछले चार साल में तीन बार सूखा पड़ चुका है। मराठवाड़ा में सिर्फ पांच प्रतिशत पानी बचा है। राज्य के कई और हिस्सों में भी हालात गंभीर हैं। सूखे की वजह से 2015 में 3228 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। लेकिन राजठाकरे की राजनीति सूखे के इस दर्द का इस्तेमाल उत्तर भारतियों के खिलाफ आग भड़काने के लिए करना चाहती है। इस सबके बीच महाराष्ट्र के ही लातूर जिले में पानी के टैंकरों के आस पास धारा-144 लगा दी गयी है। स्थानीय प्रशासन को डर है कि सूखे से जूझ रहे इस इलाके में पानी के टैकरों के आस पास दंगा भड़क सकता है। ये वही इलाका है जहां कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अपनी पूरी कैबिनेट को लेकर सूखे का जायजा लेने पहुंचे थे। कई बड़े- बड़े लोगों के दौरों के बावजूद महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख का क्षेत्र लातूर संकट में है। करीब डेढ़ लाख लोग सूखे की वजह से जिला छोड़ चुके हैं। हफ्ते में एक दिन सरकारी टैंकर से पानी आता है। और अब वही टैंकर दंगे की वजह बनने वाला है। तकरीबन यही हालत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कई इलाकों में है।

सेंट्रल वॉटर कमीशन की ताजा रिपोर्टर और डराने वाली है। देश के ज्यादातर जलाशयों में औसतन सिर्फ 29 फीसदी पानी बचा है। पिछले 10 साल में जलाशयों में इतना कम पानी कभी नहीं रहा। जलाशयों में पानी की इतनी कमी से बिजली उत्पादन पर भी गहरा असर पड़ा है। देश के सबसे उंचे डैम टिहरी में इस साल 10 मार्च को 386 मीलियन यूनिट (एमयू) का उत्पादन हुआ एक साल पहले इसी दिन, इसी जगह से 386 एमयू बिजली का उत्पादन उत्पादन हुआ था। और जब टिहरी जलाशय लबालब होता है तब यहां से 1921 एमयू तक बिजली बनती है। इन आंकड़ों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हालात कितने गंभीर हैं। पानी के संकट को लेकर इस तरह की बातें कई बार लिखी और कही गई हैं। लिखने और कहने से मौसम का मिजाज नहीं बदलेगा।

जलवायु परिवर्तन, सूखा और इससे उठने वाली किसानों की समस्याएं सिर्फ संपादकीय और सेमिनारों का मसला नहीं हैं। अगर आज देश को किसी आंदोलन की जरूरत है तो वो जल संचयन यानी पानी को बचाने की है। स्वच्छ भारत, मेक इंडिया, जनधन सब का कामयबाब होना ना होना इसी पानी से जुड़ा है। उम्मीद है कि समय रहते देश के राजनीतिक वर्ग को पानी में भी राष्ट्रवाद और भारत माता की जय जैसा गौरव मिलेगा।

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