राज्यपोषण के तहत डीएम लखनऊ के गोद लिए गाँव में कुपोषण दूर करने का प्रयास
अनौरा कला गाँव (लखनऊ)। राज्य पोषण मिशन के तहत जिलाधिकारी लखनऊ के गोद लिए गए अनौरा कला गाँव में कुपोषण को दूर करने के लिए एक अनोखा प्रयास किया गया है। इस गाँव में लोगों को स्वास्थ्य केंद्र बुलाने के बजाए स्वास्थ्य कर्मी कुपोषित बच्चों के घर जाकर उनको जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं।
स्वास्थ्य कर्मी बच्चों की दिनचर्या और खान-पान की आदतों को पहले समझते हैं और उसके बाद जरूरी बदलाव बताते हैं। इसमें पोषण खाना, समय एवं अन्य जरूरी बदलाव शामिल हैं। यह प्रयोग कुपोषित बच्चों के लिए अच्छा प्रयास साबित हो सकता है।
बच्चों के स्वास्थ्य पर निगरानी रखने वाली संस्था यूनिसेफ के मुताबिक भारत में पांच साल से कम उम्र के 20 प्रतिशत बच्चे अति कुपोषित और 48 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं यानि वजन सामान्य से कम है।
शहर से 20 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित अनौरा कला गाँव निवासी शिव प्रसाद यादव (50 वर्ष) अपनी बेटी के कुपोषित होने से बहुत चिंतित थे। उनकी चार साल की बेटी का वजन साढ़े आठ किग्रा ही है। शिव बताते हैं, ”इसी के उम्र के दूसरे बच्चों की तुलना में यह काफी कम है जिसकी हमें बहुत चिंता है। हम समझ नहीं पा रहे थे कि कहां दिखाने जाए लेकिन अब हमें पूरी सलाह घर पर ही मिल गई।”
यह गाँव राज्य पोषण मिशन के तहत जिलाधिकारी लखनऊ ने गोद लिया है। जिन्होंने ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए और काम का जायजा लेने को मुख्य विकास अधिकारी के साथ गाँव का दौरा किया।
“कुपोषण को दूर करने के लिए इस गाँव का सर्वें कराकर बच्चों को दो समूह में बांटा गया है। इसमें एक समूह अति कुपोषित बच्चों का है और दूसरा आंशिक रूप से कुपोषित बच्चों का। इस गाँव में पांच अति कुपोषित और 65 आंशिक रूप से कुपोषित बच्चे चिन्हित किया गया है।” जिलाधिकारी राजशेखर ने गाँव का दौरा करने के बाद सूचित किया।
गाँव के ही राज नारायण यादव के दो जुड़वां बच्चे हैं, इसमें बच्ची आंशिक रूप से कुपोषित है। उनकी मां कांति देवी (25 वर्ष) बताती हैं, ”हमारे बच्चों को स्वास्थ्य कर्मियों ने सुबह शाम दूध देने को बोला है, पर दिक्कत यह आ रही है कि हमारे पास कोई जानवर है नहीं और गाँव का दूध बच्चों को देने में थोड़ा मुश्किल आ रही है।”
यूनिसेफ के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में कुपोषण शहरों से ज्यादा है, जिसका कारण समय से पहले होने वाले जन्म और महिलाओं को पोषण के विषय में कम जानकारी होना और खुद कुपोषित होना है।
इसी दौरान गोदभराई की रस्म में गर्भावस्था के दौरान होने वाली पोषण से जुड़ी जानकारी दी गई। गर्भवती औरतों को क्या करना है और क्या नहीं करना है इस बारे में समझाया गया। यह बताया गया कि इस दौरान आयरन और कैल्शियम की अहमियत बताई गई।
”अभी तक जो नतीजे मिले है वह संतोषजनक है और जिला प्रशासन इस प्रक्रिया को अन्य 200 गोद लिए गाँव में जल्द ही लागू कर देगा।” जिलाधिकारी राजशेखर ने बताया।
पांच साल के बच्चों के लिए 1200 कैलोरी ऊर्जा जरूरी
पांच साल तक के बच्चे के लिए एक दिन में 1000 से 1200 कैलोरी ऊर्जा की जरुरत होती है। यह ऊर्जा दो गिलास दूध, चार से पांच रोटी, सब्जी चावल या लइया से मिल जाती है।
शाकाहारी गाँव वालों की सबसे कम खुराक प्रोट्रीन की हो पाती है। इसकी कमी पूरी करने के लिए वह सोयाबीन और चने के आटे का इस्तेमाल कर सकते हैं। पांच साल तक के बच्चों के लिए दिन के खाने के जरिए पोषण मिलने के तरीके बता रही हैं पूनम जी, जो राम मनोहर लोहिया चिकित्सा संस्थान की आहार विशेषज्ञ हैं। पांच साल से कम उम्र के बच्चों को कुछ-कुछ घंटों पर थोड़ा-थोड़ा खाने देना अच्छा रहता है।
सुबह का नाश्ता: सत्तू में अच्छे पोषण तत्व होते हैं। पराठे में भरने से बच्चों को अच्छा पोषण मिल जाएगा। इसके अलावा दूध में चूरा भी भिगो कर भी दे सकते हैं। इससे दूध और चावल दोनों का पोषण मिल जाता है। आटे और गुड़ के पुए से भी अच्छे पोषण मिलता है।
दोपहर का नाश्ता: दोपहर के खाने में हरे पत्ते वाली सब्जियां, आलू भरा हुआ पराठा, उबाले मूंग, मल्टीग्रेन्स आटे की रोटियां, फटे हुए दूध भर के बनाए हुए पराठे अच्छे पोषण का स्रोत होते हैं।
रात का खाना: लईया के लड्डू, दाल, सब्जी, रोटी आदि।