एकमुश्त कमाई का जरिया औषधीय पौधों की खेती

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उत्तर प्रदेश में 2,50,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में की जाती है औषधीय खेती

गाँव कनेक्शन नेटवर्क 

अहमदपुर (रायबरेली)। प्रदेश के किसान औषधीय खेती को प्राथमिक फसलों के तौर पर अभी तक नहीं करते थें, लेकिन यह चलन अब बदल रहा है।

रायबरेली जिले की अहमदपुर गाँव के किसान वीरेंद्र कुमार चौधरी ने कई औषधीय पौधों की व्यावसायिक खेती करके ना केवल पारंपरिक खेती की तुलना में अच्छा मुनाफा कमाया बल्कि आस पड़ोस के किसानों को औषधीय खेती के गुर सिखाकर उनकी सहायता भी की।

रायबरेली जिला मुख्यालय से करीब 17 किमी. दक्षिण दिशा में अहमदपुर गाँव के वीरेंद्र चौधरी तीन हेक्टेयर खेत में पिछले दस वर्षों से औषधीय खेती कर रहे हैं।

अपनी खेती के बारे में वीरेंद्र बताते हैं, ”पहले औषधीय खेती के बारे में ज्यादा नहीं जानता था। लखनऊ के एक मित्र से सीमैप औषधि संस्थान के बारे में पता चला। सीमैप में दो ट्रेनिंग व ग्रामीण विकास परियोजना में चलाए गये सगंध एवं औषधीय फसलों के कार्यक्रम में ट्रेनिंग करनेे के बाद हमने दवाईयों की खेती शुरू कर दी। आज हर साल इस खेती से तीन से चार लाख रुपए कमा लेते हूं।”

राष्ट्रीय औषधीय बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2,50,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में औषधीय खेती की जाती है। प्रदेश के गाजीपुर, सीतापुर, बाराबंकी, कन्नौज, अलीगढ़, सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों में औषधीय खेती बड़े पैमाने में की जाती है। उत्तर प्रदेश में औषधीय पौधों का व्यापार प्रतिवर्ष पांच हज़ार करोड़ रुपए होता है। भारत में 6,000 से ज्यादा किस्मों के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। भारत में औषधीय उत्पादों का वैश्विक निर्यात 10 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक होता है।

वीरेंद्र की सफलता पर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमेटिक प्लांट (सीमैप) के वरिष्ठ वैज्ञानिक एके सिंह बताते हैं, ”शुरुआत में जब वीरेंद्र यहां पर आए तो उनकी गिनती छोटे किसानों में होती थी, लेकिन धीरे-धीरे औषधीय पौधों की खेती की ट्रेनिंग कर उन्होंने अपने लिए अच्छा व्यवसाय खड़ा कर लिया है। वीरेंद्र की सफलता दूसरे किसानों के लिए एक अच्छी सीख है।”

आठ एकड़ ज़मीन में वीरेंद्र कुमार तुलसी, ऐलोवेरा, अश्वगंधा, सतावर, कालमेघ, पामारोज़ा, जीरेनियम, कैनोमिल व आर्टीमीशिया औषधीय पौधों की खेती करते हैं। वीरेंद्र शुद्ध सतावर से बना च्यवनप्राश, अश्वगंधा पाउडर, औषधीय तेल खुद बना कर लखनऊ व कानपुर में बेचते हैं।

औषधीय खेती के लिए उन्नत किसान वीरेंद्र का तजुर्बा

वीरेंद्र मुख्य रूप से तुलसी व कालमेघ जैसी औषधीय फसलों की खेती करते हैं। वीरेंद्र इसकी बुआई जून-जुलाई माह के मध्य में शुरू करके नवंबर तक पूरा कर लेते हैं। फसल तैयार होने में 90 से 100 दिनों का समय लगता है। दिसंबर में इसकी कटाई पूरी हो जाती है। तुलसी व कालमेघ का भाव अच्छा मिलता है इसलिए वीरेंद्र इन फसलों को ज्यादा उगाते हैं। कालमेघ का बाजार भाव 30 रुपए प्रति किलो मिलता है व तुलसी के तेल का रेट 400 से 500 रुपए मिलता है। वीरेंद्र कालमेघ व तुलसी का तेल लखनऊ व बरेली के व्यापारियों को बेचते हैं।

जल्दी पैसे कमाने के लिए करें आर्टीमीशिया की खेती

कम समय में अच्छा मुनाफा कमाने के लिए वीरेंद्र बताते हैं, ”अगर किसी किसान के पास कम खेती है और उसे जल्दी पैसे कमाने हैं तो आर्टीमीशिया की खेती से किसान को बहुत फायदा हो सकता है। आर्टीमीशिया की खेती 90 दिनों में पूरी हो जाती है और इसके बीज भी आसानी से मिल जाते हैं। हम इसकी खेती मध्यप्रदेश की दवाई कंपनी (इपका) से अनुबंध पर करवाते हैं। इससे बीज भी मुफ्त में मिल जाता है और कंपनी भी इसे अच्छे दाम पर खरीद लेती है।”

  • भारत में 6000 से ज्यादा किस्मों के औषधीय पौधे पाए जाते हैं।
  • उत्तर प्रदेश में औषधीय पौधों का व्यापार प्रतिवर्ष पांच हज़ार करोड़ रुपए होता है।
  • औषधीय उत्पादों का अंतरराष्ट्रीय बाज़ार 6.2 बिलियन यूएस डॉलर है।

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