बांदा। पुष्पा रोज सुबह घर से साइकिल लेकर निकल पड़ती है, उसे रोज़ दूसरे गाँव में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना और फिर सुबह आठ बजे 15 किमी दूर अपने ट्रेनिंग सेंटर पहुंचना होता है।
“जब हमने इंटर पास किया तो पापा ने कह दिया कि हमारे पास पैसे नहीं हैं आगे पढ़ाने के, अगर तुम अपने आप कमा के पढ़ सकती हो तो कर सकती हो।” यह बोलते हुए बांदा ज़िले के महोखर गाँव में रहने वाली पुष्पा ने अपना सिर झुका लिया। हालांकि पुष्पा ने हार नहीं मानी और ट्यूशन पढ़ाने के साथ-साथ खुद भी आईटीआई से ब्यूटी पार्लर का कोर्स कर रही है। इस उम्मीद में कि आगे कुछ अच्छा कर पाएगी।
सूखे और बदहाली से जूझ रहे बुंदेलखंड में जहां कक्षा आठ या दस के बाद लड़कियों की शादी कर दी जाती है और लड़के दूसरे शहरों में कमाने के लिए चले जाते हैं, वहीं पुष्पा जैसी कई लड़कियां अपनी मेहनत से आगे बढ़ रही हैं। पुष्पा का अंधेरे में साइकिल चलाते समय एक्सीडेंट भी हुआ, उसके चेहरे पर छह टांके भी लगे पर उसने अपनी ब्यूटी पॉर्लर की ट्रेनिंग नहीं रोकी। “हमे अब गाँव की शादियों में बाल काटने, मेकअप करने के लिए बुलाया जाता है। हमें बेबी शेप, यू शेप हर तरह के बाल काटने आते हैं।” एक कमरे में बड़े से शीशे के सामने बैठी अपनी सहेली की भौहें सेट करते हुए पुष्पा ने बताया। बांदा आईटीआई में युवाओं में स्किल डवलपमेंट के लिए शुरू किए गए कोर्सेस में दाखिला लेने वाली लड़कियों में गजब का उत्साह है।
कोई 15 किमी दूर से गाँव से आता है, तो कोई सुबह दूसरे घरों में चूल्हा-चौका करने के बाद सिलाई सीखने पहुंचती है। “हमारी शादी तेरह साल की उम्र में हो गई थी। पति सूरत की एक फैक्ट्री में काम करते हैं। मैं दूसरे के घरों में काम करके सिलाई-कढ़ाई सीखने यहां आती हूं। जब ज्यादा सीख जाऊंगी तो अपना काम करुंगी।” आईटीआई ट्रेनिंग सेंटर के एक कमरे में बच्चे को गोदी में लिए हुए रामप्यारी ने बताया।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी बुंदेलखंड के लोगों को स्वरोजगार देने के लिए मुफ्त में चरखे बांटने की बात कही है। ताकि वहां के लोगों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
“यहां के युवाओं में स्किल डवलपमेंट करें तो एक अच्छा वर्ग तैयार हो सकता है। चाहे वो एसी की रिपेयरिंग हो, या गाँव में हैंडपंप सही करना। इससे उन्हें ज्यादा काम मिल सकता है।” बांदा के डीएम योगेश कुमार ने कहा, “हमने बांदा में मनरेगा मजदूरों का रजिस्ट्रेशन करके अलग-अलग ट्रेनिंग देनी शुरू की है। इसका उन्हें काफी फायदा हो रहा है।”
एक बड़े से हाल में रंगबिरंगी चाक को लेकर बैठे अतुल सिंह (26 वर्ष) बिजली का काम सीखने गाँव से आते हैं। “मैं ग्रेजुएट हूं, और मनरेगा में मजदूरी करता हूं, लेकिन यहां इलेक्ट्रिक ट्रेड में ट्रेनिंग ले रहा हूं, रोज साइकिल से 10 किमी दूर से आना होता है। उसके बाद काम पर भी जाना होता है।”
बुंदेलखंड में गाँवों में रह रहे शिक्षा की हालत कुछ अच्छी नहीं है, यहां के हालात ऐसे हैं कि गाँव के लड़कों की पढ़ाई छोड़ कर दूसरे शहरों में कमाने जाना पड़ता है। “हमारे साथ के दो चार लड़के ही गाँव में रहते हैं, बाकी बाहर चले गए। गाँव में अगर लड़का कक्षा 8 या 10 पास कर गया है, तो बाहर जाना उसकी मजबूरी है। मां-बाप जबरदस्ती उसे बाहर भेज देते हैँ। दूसरे शहरों में वह या तो सिक्योरिटी गार्ड बनता है, या ईंट-गारा ढोता है।” अतुल सिंह ने कहा।
अनेकों मुश्किलों के बावजूद भी यहां के युवा हार मानने को तैयार नहीं, कोई दूसरे घरों में झाड़ू-पोंछा करके अपने सिलाई-कढ़ाई सीखने की चाहत रखता है, तो कोई सड़क के किनारे ईंट गारा का काम करके।
“यहां रिसोर्सेस हैं, मैनपावर है, बस यहां अगर उद्योग खोल दिया जाए तो बड़ा बदलाव आ सकता है। इससे कृषि पर निर्भरता रुकेगी और पलायन भी रुकेगा।” बांदा आईटीआई के प्रिंसिपल विवेक तिवारी ने कहते हैं।