भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने धान की सरकारी खरीद और कुटाई (मिलिंग) में 50,000 करोड़ रुपए की अनियमितता का पता लगाया है।
सीएजी ने मंगलवार 8 दिसम्बर को संसद में रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने 18,000 करोड़ रुपए न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में दे दिए। लेकिन यह नहीं देखा कि मिलों, राज्य सरकारों की एजेंसियों या भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने किसानों को ठीक-ठीक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भुगतान किया है या नहीं।
सीएजी की रिपोर्ट में अनियमितता से जुड़े नौ बड़े मामलों का जिक्र किया है। सीएजी को इन मामलों की जाँच में मिली अनियमितता में 40,564 करोड़ रुपये की गड़बड़ी व इसके अलावा कई छोटे मामले हैं, जिनमें 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की गड़बड़ी मिली हैं।
सीएजी ने कहा कि ऐसे किसानों को भी भुगतान किया गया है जिनकी पहचान संदिग्ध थी, जिन किसानों के पास कोई जमीन नहीं, कई जगह किसानों के बैंक खाते नंबर और गांवों के नाम तक नहीं मिले। सीएजी को ये अनियमितता उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में मिली।
सीएजी के मुताबिक मिलर्स को भी 3,743 करोड़ का अनुचित फायदा दिया गया। मिलिंग में निकलने वाले उप-उत्पादों (बाई-प्रोडक्ट) की कीमत को नहीं जोड़ा गया। उप-उत्पादों की कीमतें हर साल बढ़ती रहीं। इसके बावजूद 2005 से मिलिंग चार्ज में संशोधन नहीं किया गया। इससे 2009-10 से 2013-14 के दौरान आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और यूपी में मिलर्स ने उप-उत्पादों बेचकर 3,743 करोड़ रुपए ज्यादा कमाए। देशभर में देखा जाए तो यह रकम काफी ज्यादा निकलेगी।
सीएजी ने कहा कि सरकार ने मिलर्स और व्यापारियों के साथ मिलकर किसानों को बड़ा नुकसान पहुँचाया। सरकार ने मिलर्स और व्यापारियों की मिलीभगत से 1450 रुपए के न्यूनतम मूल्य पर बासमती धान खरीदा। जब किसानों का धान बिक गया तो भाव बढ़ा दिए गए।
सीएजी ने अप्रैल 2009 से मार्च 2014 के बीच की अवधि की आडिट के बारे में कहा कि इन कमियों के कारण भारत सरकार के खाद्य सब्सिडी खर्च में इजाफा हुआ।
सीएजी ने कहा कि कीमत में उप-उत्पादों का मूल्य शामिल नहीं कर धान की दराई के लिए 3743 करोड़ रुपये का लाभ मिलों को दिया गया। वही सरकार ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि जिस दर पर मिलों को भुगतान किया गया है, उसमें चावल का छिलका और भूसी जैसे उत्पाद के मूल्य भी शामिल थे।