चेतावनी : न संभले तो पानी के लिए मचेगा त्राहिमाम

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भास्कर त्रिपाठी

कानपुर देहात, कानपुर नगर, कन्नौज, इटावा, औरैया व फरुक्खाबाद जि़लों में भूमिगत जल स्तर घटने से बढ़ रही खेती की लागत, खराब हो रहे पानी के नल

कानपुर। साल 1980 में जब पहली बार देवेन्द्र के घर के बाहर सरकारी नल लगा था तो उससे 130-140 फुट से पानी निकलता था। करीब पंद्रह बीस सालों बाद री-बोर की स्थिति आ गई तो पानी 165-170 फुट से निकाला जाने लगा, कुछ समय पहले ही फिर से इस नल ने पानी देना बंद कर दिया।

रतनपुर गाँव के निवासी देवेन्द्र (55 वर्ष) ने री-बोर के लिए अपनी कन्नौज तहसील में आवेदन भी दिया लेकिन जब वहां सुनवाई नहीं हुई तो खुद की पैसे जमा करके नल सही करवाया। इस बार उन्हें 200 फुट तक बोरिंग करानी पड़ी। इनकी ग्राम पंचायत में कई नल इसी तरह खराब पड़े हैं।

देवेन्द्र के घर के बाहर लगा सरकारी नल न सिर्फ उनके क्षेत्र बल्कि कानपुर मण्डल में आने वाले जि़लों के एक अज्ञात संकट की ओर लगातार बढऩे का संकेत है। अज्ञात संकट इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग से कन्नौज व कानपुर नगर के ब्लॉकों में भूगर्भ जल के स्तर में गिरावट, अतिदोहित/क्रिटिकल होने और गुणवत्ता में कमी की जानकारी मिलती है लेकिन कानपुर मण्डल के अन्य जि़ले- कानपुर देहात, इटावा, औरैया, फरुक्खाबाद के बारे में बताया जा रहा है कि ”समस्याएं अपेक्षाकृत परिलक्षित नहीं।”

लेकिन ज़मीनी स्तर पर जब गाँव कनेक्शन इन जि़लों के निवासियों से बात की तो उन्होंने घटते जल स्तर और उसकी वजह से आने वाली समस्याओं की फेहरिस्त गिनाई। भूगर्भ जल के स्तर में आने वाले अंतर से सीधे तौर पर पीने के पानी और सिंचाई की लागत पर अंतर पड़ता है।

प्रदेश में हो रहे अंधाधुंध भू-जल के दोहन से जलस्तर बहुत तेजी से गिर रहा है, जो की खतरे की घण्टी है। प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल पर देश भर में भू-जल का आंकलन करने वाली संस्था, ‘केन्द्रीय भू-जल आंकलन समिति’ के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2000 से 2011 के बीच उत्तर प्रदेश में अतिदोहित/संकटपूर्ण ब्लॉक नौ गुना बढ़े हैं। वर्ष 2000 में जहां प्रदेश में 20 ब्लॉक अतिदोहित/संकटपूर्ण स्थिति में थे, वहीं वर्ष 2011 में इनकी संख्या बढ़कर 179 हो गई थी।

कानपुर देहात के जि़ला मुख्यालय के दक्षिण में लगभग 25 किमी दूर डेरापुर तहसील के किसान सिंचाई के बढ़ते खर्च से परेशान हैं। बिरिया गाँव के किसान राजेन्द्र सिंह (45 वर्ष) दो एकड़ ज़मीन पर खेती करते हैं। कम पानी की खपत वाली बाजरा, उड़द, तिल, अरहर जैसी फसलों के साथ-साथ राजेन्द्र मुख्य रूप से धान जैसी अधिक पानी की खपत वाली फसल उगाते हैं।

”दस साल पहले 35-40 फुट पर पानी था अब 70 फुट तक पहुुंच चुका है। सिंचाई के घण्टे बढ़ गए हैं, पहले एक बीघा डेढ़ दो घण्टे में सींच लेते थे, अब ढाई से तीन घण्टा लग जाता है। प्रति घण्टा 200 रुपए तक देते हैं, तो ये लागत बढ़ा देता है,” राजेन्द्र ने बताया।

राजेन्द्र की बिरिया ग्राम पंचायत में तीन गाँव आते हैं। इनमें दो तालाब हैं जो उथले हैं और सूखे पड़े हैं, बंबा (नहर की सहायक छोटी नाली) है पर उसमें पानी नहीं आता। पंचायत की सिंचाई लगभग 15 स्टेट बोर पंप पर निर्भर है। ये पंप 200-300 फुट तक से पानी निकालते हैं। प्रदेश के जिन भी ब्लॉकों में जल स्तर अतिदोहित श्रेणी में पहुंचा है वहां सिंचाई के लिए भूमिगत जल का दोहन मुख्य कारण माना गया है।

बिरिया गाँव के ही किसान प्रहलाद सिंह (60 वर्ष) बताते हैं, ”बारिश की कमी भी लागत बढ़ा रही है। दो सालों से धान जैसी फसल में सिंचाई ज्यादा करनी पड़ रही है। जैसे मानो अभी तक तीन चार बार पानी दे चुके हैं अपने खर्च पर, बारिश हो गई होती तो इतना पानी नहीं लगाना पड़ता”।

बारिश की कमी न सिर्फ कृषि लागत बढऩे का कारण है बल्कि यह भू-गर्भ जल का स्तर लगातार घटने के पीछे की मुख्य वजहों में से भी एक है। दरअसल पानी बारिश का जल पोखरों व तालाबों जैसी संरचनाओं में इकत्र होकर रिस-रिस कर भू-गर्भ में जाकर जल के स्तर को बनाए रखता है। इस प्रक्रिया को ग्राउंड वॉटर रिचार्जिंग कहते हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े

उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग के आंकड़ों के मुताबिक विगत दशकों में प्रदेश में वर्षा के औसत ट्रेन्ड के आंकड़ों के अनुसार 1971-1980 में प्रदेश में 1280 मिमी वर्षा हुई थी जिसमेे 2001-2010 के बीच 737 मिमी तक गिरावट आ गई। प्रदेश के लिए औसत सामान्य वर्षा 950 मिमी मानी गई है।

भूगर्भ जल विभाग के अनुसार 950 मिमी की सामान्य वर्षा की स्थिति में प्रदेश में 235 लाख हेक्टेअर मीटर वर्षा जल गिरता है। इसमें से महज़ 15 प्रतिशत, लगभग 36 लाख हेक्टेअर मीटर ही भू-जल में जाकर मिलता है, बाकी या तो वाष्पीकृत हो जाता है, या फिर नदियों में बह जाता है।

वर्षा जल से कम भूजल रीचार्ज का कारण जल संरक्षण की खराब व्यवस्था को माना जा सकता है। इसे समझते हुए सरकार द्वारा ‘मुख्यमंत्री जल बचाओ अभियान’ की प्रदेश में शुरुआत भी की गई जिसके तहत वर्षा जल संचयन के लिए प्रदेश भर में मनरेगा से करीब 35 हजार तालाबों की खुदाई का कार्य शुरू कराया गया था।

लेकिन गाँव कनेक्शन को उत्तर प्रदेश के मनरेगा विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में अब तक महज़ सात हज़ार तालाब ही बनाए जा सके हैं।

क्या कहते हैं जिम्मेदार

”हमारे सभी ब्लॉकों में से फिलहाल कोई क्रिटिकल नहीं है, स्थिति ज्यादा न बिगड़े इसलिए भूमिगत जल संरक्षण के कई कार्य करवाए जा रहे हैं। इस वर्ष हम 600 से ज्यादा तालाब खुदवा रहे हैं। पीने के पानी की समस्या के लिए हम प्रचारित भी यही कर रहे हैं कि लोग पीने के पानी के लिए बड़े सरकारी नलों का ही इस्तेमाल करें।” राज कुमार श्रीवास्तव, मुख्य विकास अधिकारी, कानपुर देहात।

कानपुर मण्डल में जल से जुड़ी शिकायतें ज्यादा

वर्ष 2012 में तहसील दिवस शुरू होने के बाद से कानपुर मण्डल के छह जि़लों में जल से जुड़े विभागों जल निगम, नलकूप विभाग, यूपीएग्रो, लघु सिंचाई विभाग और सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के तहत लगभग 75 हज़ार शिकायतें आईं, जो कि कानपुर मण्डल में दर्ज हुई कुल शिकायतों का 49 प्रतिशत है। पुलिस, ज़मीन और ग्राम्य विकास के मामलों की तरह ही इनकी संख्या बहुत अधिक है।

कन्नौज के अतिदोहित ब्लॉकों में सुधरेगी सिंचाई व्यवस्था

प्रदेश की सिंचाई व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए 754.89 करोड़ रुपये की अनुपूरक धनराशि की मांग प्रदेश सरकार के अनुपूरक बजट सत्र 2015-16 में प्रस्तावित की गयी है। इससे लोवर गंगा प्रणाली के अन्तर्गत जनपद कन्नौज के विकास क्षेत्र जलालाबाद एवं तालग्राम (भूजल के तहत डार्क जोन) में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का कार्य किया जायेगा।

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