ग्राम प्रधान इंद्राज के पूरे परिवार को घर में बंद करके आग लगाने के बाद डकैत बाहर से उनके जिंदा जलने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन जानकारी के बाद जब पुलिस पुहंची तो करीब आधे घंटे की मुठभेड़ के बाद अंदर बंद लोगों को जिंदा बाहर निकाला जा सका।
डकैतों ने मानिकपुर तहसील के खांचर गाँव के प्रधान के घर पर हमला इसलिए बोला कि वह विकास कार्यों में कमीशन मांग रहे थे, लेकिन प्रधान से कुछ बात बनी नहीं।
बुंदेलखंड में पनप रहे डकैत इसकी बदहाली का बड़ा कारण रहे हैं। ये जहां विकास कार्यों के लिए आने वाले सरकारी पैसे में कमीशन मांगते रहे हैं, वहीं इनके डर से व्यापारियों ने यहां उद्योग शुरू करने की हिम्मत ही नहीं जुुटाई।
चित्रकूट के बीहड़ में एक पगडंडी के दोनों ओर सिर्फ जंगल ही दिखाई पड़ते हैं, रास्ता किधर जाएगा पता ही नहीं रहता। दूर-दूर फैले गाँव जरूर दिख जाएंगे। इसी बीहड़ में बसे गाँवों में सड़क या चेक डैम बनवाने के लिए ठेकेदारों को डकैतों को उनका हिस्सा आज भी देना पड़ता है।
“अभी हाल ही में करीब 15 किमी की ऊंचाडीह रोड को बनवाने के लिए हमें पीएसी तक लगानी पड़ी। क्योंकि सड़क बनाने वाले मजदूरों को बबली गैंग के बदमाशों ने मारा पीटा था। वो ठेकेदार से पैसे चाह रहे थे।” मानिकपुर तहसील के एसडीएम राम सकल मौर्य ने बताया।
बुंदेलखंड के कुल 70 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में से करीब 20 हजार किमी क्षेत्र पर डकैतों के आतंक से यहां का विकास और राजनीति पूरी तरह से प्रभावित रही है। ददुआ से लेकर ठोकिया तक की कई जिलों में तूती बोलती थी। ये दस्यु गैंग चुनाव जितवाने का ठेका लेने से लेकर व्यापारियों से रंगदारी वसूलते रहे हैं। यहां से जो भी राजनेता चुना गया वह इनका चहेता ही रहा।
बीहड़ में दस्यु ददुआ का आतंक सबसे अधिक करीब 30 सालों तक चित्रकूट, जबलपुर, झांसी और जालौन और बांदा में रहा। उसे स्पेशल टास्क फोर्स ने 22 जुलाई, 2007 को मार गिराया।
“दस्यु सीधे जनता का शोषण नहीं करते। गैंग कमीशन लेता है, खासकर विकासकार्यों में, या कोई बिजनेस कर रहा है, उसके माध्यम से। इसीलिए लोग यहां बिजनेस नहीं करना चाहते। अभी एक लोग सूर्या होटल बनवा रहे थे देवांगना रोड पर। उन्होंने बंद करा दिया, क्योंकि उनका शोषण बराबर होता। बुंदेलखंड के पिछड़ेपन का यह भी कारण है।” मानिकपुर तहसील के बहिलपुरवा थाना इंचार्ज राधेश्याम दि्ववेदी कहते हैं।
इन डकैतों का डर इतना है कि आम जनता कभी भी खुल के नहीं बोलती। इंस्पेक्टर दि्ववेदी के इतना बताने के बाद भी थाने में खड़े ऐंचवारा ग्राम पंचायत के चौकीदार अयोध्या प्रसाद ने कहा, “हमारे यहां कोई दिक्कत नहीं है। प्रधान जी भी अच्छा काम करा रहे हैं। उन्हें कोई दिक्कत नहीं।”
यहां के हालात इसलिए भी खराब हैं कि जो भी सरकार द्वारा विकास कार्य होने होते हैं, वह केवल स्थानीय ठेकेदार ही करता है। बाहर का ठेकेदार यहां काम कराने से कतराता है। “स्थानीय ठेकेदार गैंग से संपर्क करके मामला सेट करके ही काम कराते हैं।” बहिलपुरवा थाना इंचार्ज राधे श्याम दि्ववेदी ने कहा।
इन डकैत प्रभावित क्षेत्रों में जब ददुआ और ठोकिया का आतंक था तो व्यवसायियों ने अपने काम को विस्तार ही नहीं दिया। या तो वसूली के लिए उन्हें मार दिया गया, या तो वह काम समेट कर कहीं और चले गए। चित्रकूट में पेट्रोल पंप के मालिक राजेन्द्र प्रसाद जैन (79) के बेटे अतुल प्रकाश जैन को 25 नवंबर, 1990 को शोरूम से सरेआम ददुआ के आदमी उठा ले गए थे। “बेटे के अपहरण के बाद गैंग के लोग हमसे मिले और पांच लाख रुपये में छोड़ने सौदा हुआ। लेकिन पुलिस के दबाव में छोड़ने से पहले ही गोली मार दी।” राजेन्द्र प्रसाद जैन ने बताया।
मानिकपुर तहसील के ऐंचवारा में रहने वाले स्थानीय पत्रकार भरत भूषण शुक्ला बताते हैं, “ददुआ का सीधे फरमान जारी होता था कि किस पार्टी के प्रत्याशी को जिताना है। इसके लिए वह चौपाल भी लगाता था। कहता था कि चौपाल में सभी का आना जरूरी है। नहीं तो बहुत बुरा हस्र होगा।” वह आगे बताते हैं, “ददुआ के बेटे वीर सिंह इस समय सदर से विधायक हैं, उसके भाई बालकुमार पटेल सांसद रह चुके हैं।”
आसपास के गाँवों में रहने वाले लोगों से डाकुओं को राशन और पानी मिलता है। जब रात में जंगलों से डाकू बाहर आते हैं तो उन्हें उपलब्ध कराते हैं।
“देखिए यहां की स्थिति ऐसी है, कि यहां से गैंग का एकदम खत्म होना बड़ा मुश्किल लगता है। पिछले छह महीनों में मेरी चार मुठभेड़ बहुत करीबी हुईं। युवा गरीबी और नशे के कारण भटक जाते हैं।” बहिलपुर थाना इंचार्ज राधेश्याम दि्वेदी कहते हैं, “अभी हमारे जिले में चार दस्युओं के गैंग लिस्टेड हैं-बबली गैंग, राजा यादव गैंग, गौरी गैंग और शिवा गैंग। ये गैंग कभी-कभी फुटकर हो जाते हैं, जब कभी बड़ी वारदात करनी होती है, तो सभी एक हो जाते हैं। नहीं तो अपने एरिया में चले जाते हैँ।”
वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन दस्युओं से परेशान होकर इनसे लड़ने के लिए अपना गैंग बना लिया। अपने विरोधियों के अंत के बाद उन्होंने जंगल का रास्ता छोड़कर सामाजिक जीवन में आ गए। नाम न छापने की शर्त पर एक दस्यु ने अपनी बंदूक को कंधे पर संभालते हुए कहा, “हम ददुआ का आतंक खत्म करने के लिए इस लाइन में गए थे। जब वह मारा गया तो हमने जंगल का रास्ता छोड़ दिया। मेरी बीवी प्रधान है, हम गाँव के विकास कार्य कराने के साथ-साथ अपने मुकदमें भी लड़ रहे हैं।” बंदूक उसे अपनी सुरक्षा के लिए रखनी पड़ती है।
जंगल से सटे गाँवों में रहते हैं डाकुओं के एजेंट
पिछले दो वर्षों से चित्रकूट जिले में तैनात और मौजूदा समय में मानिकपुर तहसील में बहिलपुरवा के थाना इंचार्ज राधेश्याम दि्ववेदी ने बयां की हकीकत..
स्थानी लोगों को डकैत छेड़ते नहीं। गाँव के लोग डकैतों को पुलिस के पहुंचने की बात बता देंगे, पर गैंग की बात हम लोगों को नहीं बताते। यहां पर सजातीय गैंग हैं, पटेल गैंग को पटेल लोग सहयोग करते हैं, कोल गैंग को कोल।
जब सघन चेकिंग होती है तो डाकू इलाका छोड़ के पहाड़ों के दूसरी ओर एमपी में चले जाते हैं। फिर वापस आ जाते हैं। जंगलों के करीब जो मलिन बस्तियां हैं उनकी सहायता डकैत लेते हैं। जो समतल में रहते हैं वो डकैतों के कमीशन एजेंट होते हैं, जैसे कोई सड़क बन रही होती है तो गैंग को क्या पता कि कहां क्या काम हो रहा है? कितने लाख का ठेका है, कहां का ठेकेदार है। फिर मोबाइल पर ठेकेदार को धमकाया जाता है। क्षेत्रीय ठेकेदार सेट रहते हैं, वह कमीशन देकर ही काम करता है। बाहर के ठेकदार के साथ हादसे भी हो जाते हैं। मजदूर मारे जाते हैं।
अभी हाल में ही हमारे थाना क्षेत्र में एक स्वास्थ्य केन्द्र बन रहा था, वहां भी गौरी गैंग ने मजदूरों को मारा था। यहां के कई युवा तो परदेश में जाने की बात घर में बताते हैं, लेकिन चल गैंग में चल रहे होते हैं।
बुंदेलखंड में इन डकैतों का रहा आतंक
शिव कुमार पटेल उर्फ (ददुआ)
16 मई, 1978 में शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ ने पहला क़त्ल किया। उस समय उसकी उम्र 22 साल थी। इसके अलावा ददुआ पर 9 लोगों की निर्मम हत्या करने का भी आरोप है। 22 जुलाई, 2007 में पुलिस के साथ मुठभेड़ में वो मारा गया। उसके खिलाफ 200 मुकदमे दर्ज़ थे।
पान सिंह तोमर
पान सिंह तोमर पहले सेना में सूबेदार था और सात साल तक लंबी बाधा दौड़ के राष्ट्रीय चैंपियन भी। ज़मीनी विवाद के कारण पान सिंह तोमर ने अपने रिश्तेदार, बाबू सिंह की हत्या कर दी। इसके बाद वो बागी बन गया। बाद में 60 जवानों की पुलिस टीम ने तोमर और उसके 10 साथियों को घेर कर हत्या कर दी।
निर्भय गुज्जर
इस डकैत की 40 गाँवों में वैकल्पिक सरकार चलती थी। उसके सिर पर 2.5 लाख रुपये का इनाम भी था। निर्भय गुज्जर अपने गिरोह में सुन्दर महिला दस्युओं को भर्ती करने के लिए मशहूर था। इनमें सीमा परिहार, मुन्नी पांडे, पार्वती उर्फ चमको, सरला जाटव और नीलम प्रमुख थीं।
पुतली बाई
पुतली बाई को चंबल की पहली महिला डाकू माना जाता है। सुल्ताना डाकू का दिल पुतली बाई पर आ गया था और पुतली बाई घर छोड़ कर सुल्ताना के साथ बीहड़ में रहने लगी। सुल्ताना के मारे जाने पर गिरोह की ज़िम्मेदारी पुतली बाई पर थी। 1950 से 1956 के बीच बीहड़ में उसका ज़बरदस्त आतंक था। 23 जनवरी, 1956 में शिवपुरी के जंगलों में मुठभेड़ में मारी गई।
मान सिंह
सन 1939 से 1955 तक चंबल में दस्यु सरगना मान सिंह की तूती बोलती थी। यूं तो डकैत मान सिंह पर लूट के 1,112 तथा हत्या के 185 मामले दर्ज़ थे। कमजोर लोगों को हक दिलाने के लिए मान सिंह ने जरुर खूनी खेल खेले लेकिन किसी असहाय को न सताने की बात भी कही जाती है।
सीमा परिहार
सीमा परिहार का 13 साल की उम्र में अपहरण हो गया था, जिसे लाला राम और कुसुम नाइन ने अंजाम दिया था। इसके बाद सीमा बागी बन गई। सीमा परिहार ने 70 लोगों की हत्या की। वर्ष 2000 में सरेंडर कर दिया और राजनीति में आ गई।
रामबाबू और दयाराम गड़रियारामबाबू और दयाराम भाई थे जो बाद में कुख्यात डकैत बन गए। इनके गिरोह को पुलिस T-1 यानि ‘Target One’ के नाम से जानती थी। 1997 और 1998 वर्ष में रघुबीर गड़रिया ने ये गिरोह शुरू किया था। 2006 में एक मुठभेड़ के दौरान दयाराम की मृत्यु हो गई और 2007 में रामबाबू भी मारा गया।
अंबिका प्रसाद उर्फ (ठोकिया)
गाँव में डॉक्टरी और कम्पाउंडरी करने वाला अंबिका प्रसाद पढ़ा-लिखा इंसान था। लोग उसे डॉक्टर के नाम से संबोधित करते थे। बदला लेने के लिए वह बागी बन गया। एसटीएफ के साथ मुठभेड़ में वो मारा गया था।
सुदेश कुमार पटेल उर्फ (बलखडि़या)
सिर के बाल खड़े होने की वजह सुदेश कुमार पटेल को बलखड़िया कहा जाता था। उसकी बहादुरी से खुश हो कर ददुआ ने उसे पॉइंट 375 बोर की राइफ़ल इनाम में दी थी। 85 से अधिक हत्या, अपहरण व लूट के मामले बलखड़िया पर दर्ज़ हैं। मरते समय इसने कम-से-कम 50 बार कहा होगा कि ‘मेरी लाश पुलिस के हाथ नहीं लगनी चाहिए’।
मोहर सिंह
भिंड जिले के मेहगाँव नगर पंचायत के निवासी मोहर सिंह ज़मीन पर कब्जा कर लेने वाले दुश्मन को नाइंसाफी के लिए मौत के घाट उतार कर 1958 में फरार हुआ था। 1965 में अपना गिरोह बनाया, बाद में माधो सिंह के साथ मिलकर चंबल के इतिहास में 500 डाकुओं का सबसे बड़ा गिरोह बनाया। 1972 में सभी डाकुओं ने जयप्रकाश नारायण के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। मोहर सिंह पर 85 क़त्ल और 500 अपहरण के मामले थे।
मलखान सिंह
मलखान सिंह को बागी परिस्थितियों ने बनाया। उसके गांव के सरपंच ने मंदिर की ज़मीन हड़प ली। जब मलखान सिंह ने इसका विरोध किया तो सरपंच ने उसे गिरफ़्तार करवा दिया और उसके एक दोस्त की हत्या करवा दी। बदला लेने की मंशा से मलखान सिंह ने बंदूक उठा ली और बागी बन गया।
माधो सिंह
इस कुख्यात डकैत ने 23 क़त्ल और 500 अपहरण किए। 1960 से 1970 के दशक में माधो सिंह का चंबल में आतंक था, लेकिन अंत में उसने और उसके 500 साथियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था।
फूलन देवी
अपने साथ हुए बलात्कार का बदला लेने के लिए फूलन 16 साल की उम्र में डाकू बनी। जिन 22 लोगों ने बलात्कार किया था, उन्हें लाइन में खड़ा कर गोली मार दी। 1983 में फूलन ने आत्मसमर्पण कर दिया और जेल से छूटने के बाद राजनीति में आ गईं। मिर्जापुर से दो बार सांसद रह चुकी फूलन की 2001 में गोली मार कर हत्या कर दी गई।