बुंदेलखंड में 1000 घंटे: ये कदम उठाए जाएं तो बदल सकती है बुंदेलखंड की सूरत

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बुंदेलखंड का ज़िक्र आता है तो आपको सिर्फ सूखे का ख्याल आता होगा। लेकिन इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की असली समस्याएं, चुनौतियां व उपलब्धियां अक्सर सुर्खियों तक नहीं पहुंच पाती। 

बुंदेलखंड से भारत के इस सबसे बड़े न्यूज़ प्रोजेक्ट में गाँव कनेक्शन टीम अगले कई हफ्तों तक बुंदेलखंड के अलग-अलग हिस्सों में 1,000 घंटे बिताकर आपके लिए वो कहानियां लाएगी जो अब तक कही नहीं गईं। 

23. ये कदम उठाए जाएं तो बदल सकती हैबुंदेलखंड की सूरत

बुंदेलखंड अभी जिंदा है: बुंदेलखंड की समस्याओं और संभावनाओं पर गाँव कनेक्शन की 23 दिनों की स्पेशल सीरीज़ को लाखों लोगों ने पढ़ा और सराहना की। उसके लिए आप सबका शुक्रिया। हमने हर मुद्दे के ज़मीनी पहलू को उजागर करने की कोशिश की। आठ संवाददाताओं ने हजारों किलोमीटर का सफर कर 1000 घंटे से ज्यादा वक्त बुंदेलखंड की धरती पर बिताया है। जो समस्याएं थीं, उन्हें तो हमने उठाया ही, साथ ही क्षेत्र में हो रहे सार्थक प्रयासों पर चर्चा की। इन दिनों में बुंदेलखंड के ग्रामीणों, किसानों, महिलाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिकारियों से चर्चा कर कुछ सुझाव तैयार किए हैं, इस उम्मीद के साथ कि अगर इन्हें पूरी ईमानदारी के साथ जमीन पर लागू किया गया तो बुंदेलखंड की सूरत ज़रूर बदलेगी।

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22. देर नहीं हुई, बनाया जा सकता है एक नया बुंदेलखण्ड

आप के ध्यान में होगा समुद्र तट पर राम की सेना मायूस बैठी थी यह सोचते हुए कि कैसे पार करें समुद्र और पहुंचें लंका। तब जामवन्त ने हनुमान को याद दिलाया था कि उनमें शक्ति है उड़कर समुद्र पार करके लंका पहुंचने की। तब क्या था, उड़ चले पवन पुत्र हनुमान, खोज कर ली सीता की। यही हालत बुन्देलखंड की है जहां गाँव कनेक्शन के जुझारू संवाददाताओं ने कई बार जोखिम उठाते हुए जानकारी इकट्ठा की है जामवंत की भूमिका आगे पढ़ें… 

21. तकनीक की कमी से तबाह हुई बुंदेलखंड में खेती

अस्सी साल के किसान चंदेलाल ने बुंदेलखंड के कई सूखे देखे हैं। वो याद करते हैं कि जब वो जवान थे तो खेती की हालत इतनी बुरी नहीं थी। लेकिन बातों-बातों में उन्होंने 2004-06 के दौरान खेती में हुए एक महत्वपूर्ण बदलाव की बात कही। उस समय बुंदेलखंड के किसानों ने

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20. पलायन का श्राप लेकर यहां पैदा होता हर युवादाएं कान में छोटी गोल बाली पहने सौरभ खेल में डूबा है, हंसी-मज़ाक में जमकर हंस रहा है, लेकिन दोस्तों और परिवार का ये साथ बस कुछ ही घंटों का और है, क्योंकि उसके पास अन्य 19 साल के नौजवानों की तरह अपने परिवार के साथ रहने की स्वतंत्रता नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि वो बुंदेलखंड में पैदा हुआ है, आगे पढ़ें…

19. दूसरों के घर चूल्हा-चौका फिर ब्यूटी पार्लर का कोर्सपुष्पा रोज सुबह घर से साइकिल लेकर निकल पड़ती है, उसे रोज़ दूसरे गाँव में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना और फिर सुबह आठ बजे 15 किमी दूर अपने ट्रेनिंग सेंटर पहुंचना होता है। “जब हमने इंटर पास किया तो पापा ने कह दिया कि हमारे पास पैसे नहीं हैं आगे पढ़ाने के, अगर तुम अपने आप कमा के पढ़ सकती हो तो कर सकती हो।” आगे पढ़ें…

18. बुंदलेखंड में सूखे से लड़ रही महिलाओं की फौजजालौन ज़िले के माधौगढ़ तहसील मुख्यालय की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर अचानक बहुत सी महिलाओं ने डेरा डालकर, जाम लगा दिया। जाम लंबा हो गया तो आनन-फानन में वहां पहुंचे अधिकारियों ने जब महिलाओं से वजह जानी तो वो भौचक्के रह गए, आगे पढ़ें…

17. पर्यटन बदल सकता है बुंदेलखंड की किस्मतविंध्य पहाड़ियों पर 700 फीट की ऊंचाई पर बना जो कलिंजर का किला कभी जीता न जा सका, वो पर्यटकों के मन को जीत नहीं पा रहा है। कलिंजर किले में जाने के लिए घुमावदार सड़क पर जैसे-जैसे ऊपर बढ़ेंगे नीचे का दृश्य अद्भुत दिखेगा, लेकिन यहां हर रोज मात्र 100 से 200 पर्यटक ही पहुंचते हैं। वहीं कलिंजर किले से 400 किमी दूर ताजमहल का हर रोज आगे पढ़ें…

16. मुर्दा हो चुके क्षेत्रों में नई जान फूकने का प्रयास

वर्ष 2000 के बाद से तेरहवां सूखा झेल रहे बुंदेलखंड के जालौन जि़ले में दूर तक फैले नीले रंग के सौर ऊर्जा के पैनल बुंदेलखंड की आशा हैं। कानपुर से जालौन जिले के मुख्यालय उरई को मिलाने वाले बारिश से ढके राष्ट्रीय राजमार्ग 25 से कुछ ही किमी अंदर सौ एकड़ में फैले इस यूपी के सबसे बड़े सौर ऊर्जा पार्क से बुंदेलखंड में मुर्दा हो चुके आगे पढ़ें…

15.तालाबों के साथ बुंदेलखंड में सूख गया मछली व्यवसाय

महोबा। औसतन एक हेक्टेयर के तालाब से सालभर में एक लाख बीस हज़ार रुपए की मछलियां निकलती हैं। बुंदेलखंड में 50 हजार से ज्यादा तालाब हैं। यानी अगर आगे पढ़ें…14. बुंदेलखंड में घोंटा जा रहा नदियों का गलाकानपुर से हमीरपुर की ओर हाइवे से बढ़ने पर आप को एक लाइन से हरे रंग के डंफर और ट्रकों की कतार मिलेगी। जो दिन-रात नदियों से खनन करके बालू और मौरंग निकालते रहते हैं। इसका असर यह हुआ है कि केन और बेतवा नदी में खुदाई से बड़े-बड़े पोखर होने से धारा रुक गई है, या फिर आगे पढ़ें…13. बुंदेलखंड के इन किसानों से सीखने आते हैं विदेशीबुंदेलखंड में सूखे से त्राहि-त्राहि भले ही हो लेकिन यहां कुछ किसान ऐसे हैं, जिनसे अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे प्रगतिशील देशों के किसान खेती के गुर सीखने आते हैं। बांदा जिले के बड़ोखर गाँव में रहने वाले प्रेम सिंह इन किसानों को खेती का वो प्राकृतिक तरीका बताते हैं, जो ये अपने देशों में आजमाते हैं, आगे पढ़ें…12. हर दिन धीमी मौत मर रही बुंदेलखंड की धरती

बुंदेलखंड में महोबा जि़ले के थाना पखवारा गाँव के रहने वाले सुखराम (50 वर्ष) ने दो बीघे में गेहूं बोए थे, लेकिन उत्पादन एक कुंतल गेहूं का भी नहीं हुआ। सुखराम इसके लिए सिर्फ सिंचाई न होने को वजह मानते रहे लेकिन पानी के साथ उनके खेत की मिट्टी भी कम उत्पादन के लिए जिम्मेदार है। सुखराम जैसे बुंदेलखंड के करोड़ों किसानों की ज़मीन पर कार्बन आगे पढ़ें…11. उद्योगों से भेदभाव न होता तो हज़ारों करोड़ कमाता बुंदेलखंडअस्सी के दशक से लेकर नब्बे के दशक के अंत तक, जब देश में अर्थव्यवस्था से जुड़े नियमों में हुए बदलावों के चलते उद्योगों में नई ऊर्जा आ रही थी, और उद्योग प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने के साथ ही देश के विकास को धक्का दे रहे थे, उस समय भारत का एक बहुत बड़ा हिस्सा इस औद्योगिक विकास की धारा में शामिल नहीं हो पाया, बहुत पीछे छूट गया। वो थाआगे पढ़ें…

10. बुंदेली महिलाओं की हमने सुनी कहानी थीरोज तड़के जंगलों में जाकर लकड़ी लाना, उन्हें बेचने के लिए ट्रेन से शहर जाना वहां से राशन लाना, मनरेगा व खेतों में काम, तेंदू पत्ते लाकर बीड़ी बनाना, ये है 80 लाख से अधिक बुंदेली महिलाओं आगे पढ़ें…9. कर्ज़ के चक्रव्यूह में फंसा बुंदेलखंड

बुंदेलखंड की लोक कहावत बताती है कि कैसे कर्ज़ यहां के लोगों के जीवन का हिस्सा है। सूखे ने फसलें बर्बाद की, तो बैंकों के बाहर घूम रहे दलालों ने उन्हें कर्ज़ के चंगुल में फंसा दिया। इससे बचने के लिए साहूकारों तक पहुंचे तो जान तक गंवानी पड़ रही है। जिंदगी कर्ज़ में ही डूबी है आगे पढ़ें…

8. सड़क, अस्पताल व मनरेगा: हर जगह डकैतों का कमीशन

ग्राम प्रधान इंद्राज के पूरे परिवार को घर में बंद करके आग लगाने के बाद डकैत बाहर से उनके जिंदा जलने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन जानकारी के बाद जब पुलिस पुहंची तो करीब आधे घंटे की मुठभेड़ के बाद अंदर बंद लोगों को जिंदा बाहर निकाला जा सका। डकैतों ने मानिकपुर तहसील के खांचर गाँव के प्रधान के घर पर हमला इसलिए बोला कि वह विकास कार्यों में कमीशन मांग रहे थे, लेकिन प्रधान से कुछ बात बनी नहीं।बुंदेलखंड में पनप रहे डकैत इसकी बदहाली का बड़ा कारण जानने के लिए आगे पढ़े..

7. सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ, इन तालाबों में ज़िंदा है भविष्य

जहां पूरा बुंदेलखंड पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है, वहीं बांदा जि़ले में एक गाँव ऐसा भी है जहां के चार तालाब लबालब हैं। गाँव के सभी 36 हैंडपंप पानी दे रहे हैं। कुओं में भी पानी 28-40 फीट पर है। बांदा ज़िला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में महुआ ब्लॉक के जखनी गाँव की तस्वीर बुंदेलखंड के दूसरे गाँवों से बिल्कुल अलग है। 3500 की आबादी वाले इस गाँव में पानी की एक-एक बूंद को सहेजने की कोशिश की गई है। पानी को लेकर हमेशा से सजग रहे इस गाँव में पानी के आगे पढ़ें…

6. हजारों पशु मर चुके हैं, कुपोषित और बीमार गायें हो रहीं बाँझ

बुंदेलखंड में पशुओं की मौत हो रही है। बुंदेलखंड में 57 लाख पशुओं में से ज्यादातर कुपोषित हैं, जबकि छुट्टा घूमने वाली लाखों गायें बांझ हो रही हैं। जो गर्भवती हो भी रही हैं वो अंधे और मरे बच्चों को जन्म दे रही हैं। चारे के अभाव और बीमारियों के चलते इसी वर्ष यूपी के सात जिलों में ही 30 हजार पशुओं के आगे पढ़ें…

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अगर इन जानवरों से सरकारें मुंह न मोड़तीं तो लाखों परिवार कई गुना कमाते

बुंदेलखंड का किसान अगर मौसम की मार के बाद अपने आप को किसी के सामने मजबूर पाता है तो वो हैं वहां लाखों की संख्या में लोगों द्वारा छोड़ दिए गए और खेतों में फसलें रौंदते गाय और बैल। लेकिन इस विशाल क्षेत्र की 15 लाख गायों को भरपेट चारा, बांझ गायों का कृत्रिम गर्भाधान और नस्ल सुधार की व्यवस्था हो तो ये गायें करीब चार लाख लीटर रोजाना दूध दे सकती हैं, जो बुंदेलखंड

 

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4“मां ने कहा है बर्थडे पे लैपटॉप देंगी”

बुंदेलखंड के एक पिछड़े इलाक़े में, सामाजिक लक्ष्मण रेखाओं को तोड़ कर, चार साल तक आदिवासी समुदाय के कमल कुमार सहरिया (48 वर्ष) अपनी बेटी रूपा को साइकिल पर स्कूल ले जाते रहे, जब तक वो ग्रेजुएट नहीं हो गयी। रूपा देवी सहरिया अब 24 साल की हैं और आदिवासी समाज में अपने क्षेत्र की एकमात्र स्नातक हैं। जंगल से लकड़ी बीन कर लाने वाली रूपा अब आगे पढ़ें…

3. यहां हर पहाड़ किसी नेता के नाम बुक है

बुंदेलखंड के महोबा जि़ले में एक झील दिखी, जहां कभी एक पहाड़ हुआ करता था। ये क़ुदरत का करिश्मा या सदियों में हुआ कोई भूवैज्ञानिक बदलाव नहीं था– सिर्फ अंधाधुंध अवैध खनन का नतीजा था। लगभग 70,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले खनन के गढ़ बुंदेलखंड में पहाड़ों, नदियों, तालाबों– सब को अवैध खनन वर्षों से नेस्तनाबूद कर रहा है और सारे इलाक़े को आगे पढ़ें…

2. कभी यहां पहाड़ियां दिखती थीं, अब पहाड़ियों से भी गहरे गड्ढे 

बहुत सम्भावना है कि जिस घर या दफ्तर में बैठ कर आप ये पढ़ रहे हैं, उसकी दीवारों या छत में किसी पहाड़ी से टूटा थोड़ा सा बुंदेलखंड है और जिस सड़क पर आप अपनी कॉलोनी में चल के आते हैं, उसकी सड़कों की गिट्टी-मौरंग में भी थोड़ा सा बुंदेलखंड है। लेकिन आशंका ये है कि आने वाले वर्षों में शायद 70,000 वर्ग किलोमीटर में फैला बुंदेलखंड भी दोहन, अवैध खनन व शोषण के कारण थोड़ा सा ही बचे। देश के 18,000 करोड़ रुपये के रियल एस्टेट के कारोबार में बुंदेलखंड के पत्थर, मौरंग और बालू की बड़ी हिस्सेदारी है, लेकिन आगे पढ़ें…

1. 

एक था बुंदेलखंड

हमारे पत्रकर, नेता और विचारक यह कहते नहीं थकते कि बुन्देलखंड के लोग घास की रोटी खाते हैं। यदि मान भी लें ऐसा है तो क्या करें बुन्देलखंड के रहने वाले जब अनाज की पैदावार की कमी है। लेकिन ठहरिए, दुनिया में सिंगापुर जैसे तमाम देश हैं जहां खाद्यान्न कम या बिल्कुल पैदा नहीं होता फिर भी वे घास की रोटी नहीं खाते हैं। खेतों में फावड़ा चलाने के अलावा भी रोटी रोजी के साधन हो सकते हैं जो पेट भरने के लिए अनाज दे सकेंगेें। बुन्देलखंड की समस्याओं के समाधान खोजते समय धान गेहूं के साथ ही वैकल्पिक साधनों पर भी आगे पढ़ें…

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