बंदरबांट चालू रहेगी

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बड़े बिल्डरों पर सरकार नकेल कसने जा रही है लेकिन छोटे शहरों और गाँवों में ज़मीन माफि़या व दलालों पर इसका कोई असर नहीं होगा

लखनऊ। नए रियल एस्टेट कानून के आने से उपभोक्ताओं को धोखा देने वाले बिल्डरों पर सरकार का अंकुश लगेगा, लेकिन सरकारी ज़मीन हड़पने वालों और प्लाट काट कर लाखों लोगों को धोखा देने वाले स्थानीय ज़मीन के ठगों पर कोई नकेल नहीं होगी। 

इस बिल के दायरे में सिर्फ बड़े बिल्डर आएंगे -पांच सौ वर्ग मीटर से कम के मकान और हाउसिंग सोसायटी बनाने वाले और बंदरबांट करने वाले ज़मीन माफिया और बिल्डरों की मनमानी जारी रहेगी।

“गाँवों में चरगाह, खलिहान, तालाब आदि के नाम पर करीब 20 तरह की जमीनें सरकारी होती है। लेकिन प्रॉपर्टी डीलर किसी एक किसान की रजिस्ट्री कराते हैं उसके आसपास की जमीनों पर कब्जा कर लेते हैं,”लखनऊ की सदर तहसील में राजस्व के अधिवक्ता, कौशल कुमार सिंह बताते हैं, “जब वे दूसरों को बेचते हैं तो उसी किसान से रजिस्ट्री करा देते हैं, जिसका वो दाखिल खारिज करा चुके हैं। इस तरह की जालसाजी से ग्राम पंचायत और सरकार के राजस्व का बड़ा नुकसान होता है लेकिन इस पर पाबंदी लगाने का कोई ज़रिया नहीं है।”

ऐसे फर्जीवाड़े छोटे शहरों और गाँवों में ज्यादा होते हैं। राजस्व परिषद के आंकलन के अनुसार हर साल पांच करोड़ लोग तहसील और कलेक्ट्रेट के चक्कर लगाते हैं। लखनऊ की सदर तहसील में मंगलवार को आयोजित तहसील दिवस में कई दर्जन लोगों ने पहुंच कर एक बिल्डर पर आरोप लगाया कि कंपनी के पास मात्र साढे तीन बीघे जमीन थी जबकि उसने लोगों को सैकड़ों बीघे जमीन होना का सपना दिखाकर पैसे हड़प लिए। पीड़ित लोग अब पुलिस और प्रशासन के चक्कर लगा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में दो तिहाई मामले जमीन जायजाद से जुड़े हैं। अधिकारियों के अनुसार अगर नागरिक सजग रहें तो ऐसे मामले कम हो जायेंगे।

“अधिकारी रजिस्ट्री कराते वक्त तो नहीं बताया जा सकता है कि जमीन कितनी बार बिकी है। लेकिन उपभोक्ता अगर चाहे तो खरीदने से पहले रजिस्ट्री ऑफिस में एक प्रार्थना पत्र देकर उक्त ख़सरा नंबर की जमीन के मालिकाना हक के बारे में पता लगा सकता है,” राजकमल यादव, एसडीएम बीकेटी, लखनऊ ने गाँव कनेक्शन को बताया, “लेकिन अमूमन लोग ऐसा करते नहीं है फिर धोखाध़ड़ी के शिकार होते हैं।”

उन्होंने कहा, “जब हमें किसी के खिलाफ शिकायत मिलती है तो हम आईपीसी की धारी 420 के तहत उस पर धोखाधड़ी का केस करते हैं।”

लेकिन शहरी नागरिकों, और फ्लैट खरीदने वाले लोगों के लिए नया कानून बेहद असरदार होगा।

वादे से नहीं मुकर पाएंगे बिल्डर

लखनऊ। आपको घर या फ्लैट का सपना दिखाकर बिल्डर आंपका पैसा हड़प नहीं कर पाएंगे। बिल्डर अपने विज्ञापन और घर बुक कराते समय किए गए वादों से भी पीछे नहीं हट पाएगा। अब बिल्डर सही क्षेत्रफल का घर तय वक्त में देने को बाध्य होंगे। ऐसा नहीं करने पर उन पर ना सिर्फ जुर्माना और जेल भेजने का प्रावधान होगा बल्कि उनका लाइसेंस भी निरस्त हो सकेगा। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद, लखनऊ समेत देश के कई शहरों में बिल्डरों पर पैसे लेकर भी घर नहीं देने के आरोप लगते रहे हैं।

ग्रेटर नोएडा आवंटियों के अधिकारों को लेकर पिछले एक दशक से लड़ाई लड़ रहे न्यू ईरा फ्लैट ऑनर वेलफेयर एसोशिशन (नेफोवा) के अध्यक्ष अभिषेक कुमार बताते हैं, “अधिकांश लोग बैंक से लोन लेकर घर खरीदते हैं, बिल्डर वादे के मुताबिक पजेशन नहीं देता है तो आदमी पर बैंक की ईएमआई के साथ घर का किराया भी देना पड़ता है। पैसे लेकर तय वक्त पर घर न देना, नक्शे में फेरबदल कर देना आम समस्या हो गई थी। हम लोग सड़क से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक फरियाद लगाई। बिल आने से हम लोग बहुत खुश हैं।” अभिषेक कुमार के संगठन में इस वक्त 50 हजार से ज्यादा सदस्य हैं। राष्ट्रीय राजधीनी क्षेत्र के साथ ही छोटे शहरों में भी बिल्डर पहुंचे हैं और बहुमंजिला इमारते टाउनशिप बन रही हैं। लखनऊ में भी कई नामी बिल्डरों पर पैसा लेकर वक्त पर घर नहीं देने के आरोप लगते रहे हैं।

बिल को लेकर उपभोक्ताओं के साथ कुछ बिल्डर भी ख़ुश हैं। बिल्डरों के संगठन कॉन्फ्रिडेशन ऑफ रियल स्टेट डेवलपर्स एसोशिएशऩ ऑफ इंडिया के सदस्य और बुनियाद बिल्डर के वाइस प्रेसीडेंट शोभित बत्रा बताते है, “ग्राहकों को काफी ताकत मिलेगी इससे लेकिन हम लोगों का भी कोई नुकसान नहीं है। हमारे काम भी आसानी से होते जाएंगे। जो गलत करते हैं या थे उऩ्हें जरूर मुसीबत होगी।”

एनसीआर की बड़ी रियल स्टेट कंपनी गौडसंस इंडिया लिमिटेड के लीगल एडवाइजर प्रदीप वर्मा बताते हैं, “इंडिया का रियल स्टेट कारोबार और इंफ्रास्ट्रैक्चर विश्व स्तर पर है। इस बिल आने से रियल स्टेट बिजनेस में गंदगी कम होगी। कुछ लोग लोगों के जुटाए पैसे का दुरुपयोग कर रहे थे। अब फंड अलॉट (प्रोजेक्ट का पैसा) रखना होगा, बिल्डर पर नकेल रहेगी। इससे रियल स्टेट पर निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा।”

यूपी अपार्टमेंट एक्ट 2010 प्रभावी नहीं

बिल्डरों की इस मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश में यूपी अपार्टमेंट एक्ट 2010 बनाया गया था, लेकिन यह एक्ट प्रभावी नहीं हो सका। लखनऊ के गोमतीनगर स्थित विभूतिखंड में पार्श्वनाथ प्लानेट के आवंटी वर्ष 2010 से कब्जा पाने के लिए बड़ी संख्या में आवंटी आंदोलन कर रहे है। कई ऐसे आवंटी है जो किराए के मकान पर रहने के साथ मोटी किस्त भी चुका रहे है। निजी क्षेत्र की बिल्डरों के साथ ही एलडीए और आवास विकास जैसी सस्था भी तय समय पर आंवटियों का आवास उपलब्ध नहीं करा सही। लखनऊ के कैसरबाग सब्जी मंडी के रहने वाले संजय सोनकर (48 वर्ष) ने बताया, “एलडीए की अपना आवास योजना का छह किश्तों में पूरी धनराशि जमा कर चुके है, चार वर्ष बीत जाने के बाद कब्जा नहीं दिया।

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