लखनऊ। गुरूवार, सात फरवरी को उत्तर प्रदेश सरकार ने 2019-20 सत्र के लिए बजट पेश किया। इस बजट में बंद पड़ी गन्ना मिलों के पुनर्संचालन के लिए 50 करोड़ रुपए की व्यवस्था करने की घोषणा की गई। किसानों पर इसका क्या असर होगा ये जानने के लिए गाँव कनेक्शन ने कुछ गन्ना किसानों से बात की।
बरेली के गन्ना किसान जबरपाल सिंह ने बताया कि अगर मिलें दोबार चालू होती हैं तो किसानों को बहुत फायदा मिलेगा। फिलहाल गन्ना सप्लाई में दिक्कत होती है, मिल दूर है तो गन्ना पहुंचाने में समस्या सामने आती है, कई बार बहुत ज़रूरत होने पर किसानों को बिचौलियों को गन्ना बेचना पड़ता है।
वो बताते हैं कि बरेली में प्राइवेट गन्ना मिल है। बरेली से लगभग 26 किमी दूर सेमीखेड़ा में एक पुरानी सरकारी चीनी मिल है। गन्ना मिल को ही चीनी मिल कहा जाता है। ये मिल बहुत छोटी है, अगर इसको बढ़ाने का काम होता है तो आस-पास के गाँवों के किसानों को निश्चित तौर पर फायदा होगा।
अमरोहा जिले के मंडी धिनौरा गाँव में रहने वाले फरमान हैदर कहते हैं कि,
“घोषणाएं तो होती हैं लेकिन अधिकारी लोग उसको फॉलो नहीं करते, ज़मीनी स्तर पर काम नहीं होता। कहा गया कि गन्ना किसानों को 14 दिन के भीतर फसल का दाम मिल जाएगा लेकिन अब तक पैसा नहीं मिला है। किसानों को साल-साल भर बाद पैसा मिलता है। 2017-18 की फसल का पैसा अब जाकर मिला है। नवंबर, 2018 में जो फसल हमने दी थी उसके पैसे अब तक नहीं आए हैं। प्राइवेट मिल सरकारी दामों पर फसल लेती तो है लेकिन पैसा देने में बहुत देर कर देती है।”
फिलहाल उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल का दाम 325 रुपए प्रति क्विंटल है, ये अर्ली फसल का दाम है। गन्ने की फसलें तीन तरह की होती हैं अर्ली, सामान्य और रिजेक्ट। अर्ली फसल से सबसे ज़्यादा चीनी का मिलती है, सामान्य से उससे थोड़ी कम और रिजेक्ट फसल से और कम। ज़्यादातर मिलें अर्ली फसलों को तरजीह देती हैं। गोंडा जिले के नवाबगंज शहर में गन्ने की खेती करने वाले मनोज कुमार बताते हैं कि अर्ली फसल का दाम 325 रुपए प्रति क्विंटल है, सामान्य का 310 और रिजेक्ट का 305 रुपए प्रति क्विंटल। एक क्विंटल में 100 किलोग्राम होते हैं, यानी 100 किलो गन्ने की फसल का दाम 325 रुपए है।
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गन्ना फसल कौन सी है ये लैब में टेस्ट होने के बाद तय होता है, उसके बाद मिल किसानों से उस हिसाब से फसल खरीदती है। मनोज कुमार का कहना है कि सरकारी चीनी मिलें तो समय पर पैसा दे देती हैं लेकिन प्राइवेट मिल समय पर पैसा नहीं देतीं। वो बताते हैं कि लगभग 40% मिलें समय पर फसल के दाम दे देती हैं लेकिन 60% मिलें साल-साल भर बाद तक किसानों की फसल का भुगतान नहीं करती हैं। कई बार किसानों को अपने गाँव में बिचौलियों को ही फसल बेचनी पड़ती है, ये बिचौलिए 100 रुपए कम में और कभी-कभी आधे दामों पर फसल खरीदते हैं।
“अगर किसी के घर शादी हो या कोई बीमार हो तो किसान तुरंत चीनी मिल में जाकर फसल का पैसा ले सकता है लेकिन सामान्यतः फसलों के दाम का भुगतान देर से ही होता है। ये सुविधा भाजपा के सरकार में आने के बाद से हुई है। अगर और चीनी मिलें खुलती हैं तो छोटे किसानों को ज़रूर फायदा मिलेगा,”- मनोज।
मेरठ के किसान राजदीप तोमर दौराला श्रीराम ग्रुप की मिल पर अपनी फसल बेचते हैं, उनका कहना है कि, “गन्ना किसानों को कुछ फायदा तो होगा पर असल दिक्कत फसलों का कम दाम और जो मिलें पहले से चल रही हैं उनसे सही समय पर भुगतान नहीं होना है।” वो बताते हैं कि श्रीराम ग्रुप की मिल में 7 जनवरी तक का पैसा किसानों को मिल चुका है। जो दाम सरकार तय करती है वही किसानों को दिया जाता है। बजाज ग्रुप, मोदी ग्रुप और सिंभावली ग्रुप की मिलें सही समय पर किसानों को भुगतान नहीं करतीं।
उत्तर प्रदेश सहकारी चीनी मिल संघ के मैनेजिंग डायरेक्टर, वी. के. दुबे बताते हैं कि, “पब्लिक प्राइवेट पार्टनर्शिप के तहत बंद पड़ी मिलों को शुरू करने का काम होगा। ये ई-टेंडर के ज़रिए जारी की जाएगी। लंबे समय से बंद मिलों की पहले जांच होगी, ये देखा जाएगा कि वो शुरू होने लायक हैं भी कि नहीं। जहां मिल है वहां फसलों की पैदावार कितनी है, वो उस मिल के लिए उपलब्ध है या नहीं क्योंकि गन्ने की फसलें पहले ही गन्ना मिलों को आवंटित होती हैं कि इस जगह की फसल इस मिल में बेची जाएगी। ये भी देखा जाएगा कि किस समय कहां पर फसल होती है जैसे पूर्वांचल में फरवरी-मार्च तक समाप्त हो जाती है तो अब वहां मिल शुरू करने का कोई फायदा नहीं।”
उत्तर प्रदेश में फिलहाल 24 सरकारी चीनी मिलें कार्यरत हैं जिनमें से एक उत्तर प्रदेश चीनी निगम की है। साथ ही 152 गन्ना विकास परिषदें काम कर रही हैं।